INDIA

राजनीति को मतदाताओं ने नहीं राजनेताओं ने किया दूषित:

आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की तरह कुछ निर्वाचित नेताओं को लगातार उप-राज्यपाल के हाथों अपमान का सामना करना पड़ा है।

सर्वोच्च न्यायालय ने उन्हें उनके साहस, स्वभाव और धीरज की विशाल निधि के लिए पुरस्कृत किया है।

2013 में दिल्ली विधानसभा के अपने पहले चुनाव में वह 28 सीटों के साथ सबसे बड़ी एकल पार्टी के रूप में शीर्ष पर आए।

तीन बार सत्ता पर काबिज कांग्रेस ने ‘आप’ को गठबंधन में उलझा दिया, ‘‘हम तो डूबे हैं सनम, तुमको भी ले डूबेंगे’’ (मैं डूब रहा हूं लेकिन तुम्हें अपने साथ ले जाऊंगा)।

कांग्रेस के साथ गठबंधन करने से ‘आप’ की ताजगी और चमक कुछ कम हो जाएगी।

दिल्ली कांग्रेस के पूर्व प्रमुख अरविंदर सिंह लवली ने कहा, ‘‘जब तक वे नष्ट नहीं हो जाते हम उन्हें गठबंधन पर नकेल कसते रहेंगे।

लवली ही नहीं हर कांग्रेसी, भाजपा पदाधिकारी का सपना था कि इस पार्टी को अप्रभावी, अक्षम और शून्य में बदल दिया जाए। ‘आप’ का अचानक उभरना और बढऩा डरावना था।

फरवरी 2015 के परिणामों ने न केवल दिल्ली में दो शासक वर्ग पाॢटयों बल्कि पूरे राष्ट्रीय राजनीतिक स्पैक्ट्रम को झटका दिया।

आप को 70 में से 67 सीटें मिलीं। जोकि एक अटूट रिकार्ड रहा। ‘आप’ के रिकार्ड तोड़ प्रदर्शन ने असुरक्षा को प्रेरित किया।

भाजपा से ज्यादा कांग्रेस ‘आप’ से नफरत करती थी क्योंकि उसने उसे विस्थापित किया था।

वैसे ही भाजपा को कांग्रेस से ज्यादा नफरत थी। भ्रामक पूंजीवादी ढांचे में स्थापित इसकी सामाजिक कल्याण नीतियां भाजपा के कार्पोरेट समर्थकों के लिए खतरा थीं।

आम आदमी पार्टी को सभी तरह के प्रयासों से रोकना पड़ा।

चुनी हुई सरकार को चूर-चूर करने के लिए जो सबसे ज्यादा चीज काम आई वह थी जस्टिस अशोक भूषण का 2019 का बंटा हुआ फैसला।

भूषण ने कहा कि ‘सेवाएं’ पूरी तरह से राज्य सरकार के दायरे से बाहर हैं। कल्याणकारी उपायों के रूप में शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, पानी और बिजली के त्वरित वितरण ने दोगुने त्वरित समय में समझौता किए गए राजनीतिक वर्ग को हतोत्साहित किया।

उप-राज्यपाल हरकत में आए और उन्होंने कहा कि ‘आप’ के लिए कोई ङ्क्षबदू नहीं है।

बेशक घर-घर जाकर खाने-पीने के सामान की डिलीवरी रोक दी जाएगी लेकिन गरीबों के बीच ‘आप’ की लोकप्रियता बढ़ाने वाले किसी भी उपाय को नाकाम कर दिया जाएगा।

उन्होंने सोचा कि ‘आप’ को आगे भी चुनाव के लायक नहीं बनाया जाना चाहिए।

फिर पंजाब को कांग्रेस से ‘आप’ ने छीन लिया।

दिल्ली नगर निगम के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा था लेकिन ‘आप’ ने एक बार फिर से बाजी मार ली।

उप-राज्यपाल की नियम पुस्तिका के अनुसार, निगम में चुनावी जीत का मतलब यह नहीं था कि ‘आप’ का अपना मेयर हो सकता है।

मनोनीत सदस्यों को मेयर का पद ‘आप’ से छीनने के लिए लाया गया था। सदन में हाथापाई शुरू हुई और उप राज्यपाल ‘नीरो’ की तरह देखते रहे।

अरविंद केजरीवाल की केंद्र सरकार और उसके प्रतिनिधि उप-राज्यपाल के खिलाफ शिकायतों की सूची एक दुर्जेय दस्तावेज होगा।

विदेशों में प्रतिष्ठित सम्मेलनों में भाग लेने से उन्हें रोका गया। एक अच्छी खबर दूसरी हो जाती है। राऊज एवेन्यू कोर्ट ने तथाकथित शराब लाइसैंस घोटाले में हिरासत में लिए गए दो लोगों को जमानत पर रिहा कर दिया है।

85 पन्नों के आदेश में कोई वित्तीय गड़बड़ी नहीं हुई है। कथित तौर पर 100 करोड़ रुपए ‘आप’ द्वारा अपने गोवा अभियान के लिए डायवर्ट किए गए थे।

केजरीवाल के दूसरे नंबर के मनीष सिसौदिया और मंत्री सत्येंद्र जैन जल्द ही जमानत पर बाहर हो सकते हैं।

दोनों के खिलाफ कुछ भी साबित नहीं हुआ। आखिरकार सत्ता एक ऐसी पार्टी के पास आ गई है जिसने रिकार्ड समय में अपनी स्थापना के एक दशक बाद एक राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल कर लिया है।

भारत में राजनीतिक दल अपने निर्वाचन क्षेत्रों को मजबूत करने के लिए समय लेते हैं।

‘आप’ एक अपवाद है क्योंकि अन्य पाॢटयां इसे खतरनाक मानती हैं। एक व्यावहारिक कल्याणवाद के लिए ‘आप’ ने लंगर डाला। ‘आप’ एक विचारधारा से घिरी नहीं है। उसके लिए लाभ और बाधा दोनों है।

 

 

 

 

 

 

 

 

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