पिछली स्टोरी का शीर्षक था “फर्जी कागजों के सहारे मुन्ना भाई की ‘मतस्य’ विभाग में शॉट सर्किट योजना”। अब खोजी नारद के पास कुछ ऐसे दस्तावेज़ सूचना के अधिकार के माध्यम से मिले है जिसमे मतस्य विभाग की मोबाइल फिश आउटलेट योजना ही सवालो के घेरे में है। राज्य अतिथि गृह सर्किट हाउस में बेयरर के पद पर तैनात दिलवीर सिंह को मतस्य विभाग देहारादून के जनपद प्रभारी विनोद कुमार यादव ने 14 अक्टूबर को 2019 को मोबाइल फिश आउटलेट आवंटित करने के लिए निदेशक मतस्य को पत्र लिख अपनी रिपोर्ट सौप दी थी।
मतस्य विभाग द्वारा सर्किट हाउस में तैनात एक अधिकारी के बेटे शिवांकू कुमार को और एक किचन हेल्पर दिलवीर सिंह को ब्लू रेवोल्यूशन योजना के अंतर्गत मोबाइल फिश आउटलेट आवंटित करना योजना पर बड़े सवाल खड़े कर रहा है।
अगर शिवांकू कुमार के दस्तावेज़ आप पहली बार देख ले, जो विभाग द्वारा हमे सूचना के अधिकार के माध्यम से मिले है तो उसमें ही शिवांकू कुमार संदेह के घेरे है क्यूकि उत्तर प्रदेश में ही उनका जन्म हुआ और शिक्षा उसने वही से प्राप्त की है एवं उन्होने 2015 में निवास प्रमाण पत्र वही से बनाया हुआ है तो उसने कैसे 2016 मे वो उत्तराखंड से स्थायी निवास बना लिया?
सर्किट हाउस के दूसरे कर्मचारी दिलवीर सिंह जब राज्य अतिथि गृह सर्किट हाउस एनेक्सी में काफी सालो से आउटसोर्स पर कार्य कर रहा है और वर्तमान में वो पीआरडी से किचन हेल्पर के पद पर कार्य कर रहा है, तो उसने क्यो मतस्य विभाग को लिखे पत्र में स्वरोजगार करने के लिए मोबाइल फिश आउटलेट की स्थापना के लिए आवेदन किया?
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सूत्रो से मिली जानकारी के अनुसार दिलवीर सिंह के नाम और कागज को कोई और इस्तेमाल कर रहा है जैसे लोग बेनामी संपत्ति खरीदने में करते है और अगर ऐसा नहीं है, तो दिलवीर सिंह पूर्व से अतिथि गृह में कार्य कर रहे है तो उन्हे स्वरोजगार करने के लिए मोबाइल फिश आउटलेट मतस्य विभाग से क्यो लिया? अब या वो अपना स्वरोजगार करेंगे या फिर अपनी नौकरी ? क्यूकि एक व्यक्ति दो जगह कार्य कैसे करेगा। क्या राज्य संपत्ति विभाग को उनकी सेवाएँ समाप्त कर देनी चाहिए? या दिलवीर को अपना वाहन मतस्य विभाग में सरेंडर कर देना चाहिए? क्यूकि जब आप सरकारी संस्थान में आउटसोर्स के माध्यम से कार्य कर रहे है, तो बेरोजगारो के रोजगार के लिए बनी योजना में आप सरकारी विभाग को गुमराह कर उनके हक में डाँका डाल रहे है। कहि सरकार का डंडा चल गया तो एक कहावत चरितार्थ हो जाएगी:-
संसारी से प्रीतड़ी, सरे न एको काम
दुविधा में दोनों गए, माया मिली ना राम
जब खोजी नारद द्वारा मुन्ना भाई टाइप करेक्टर के बारे में जांच पड़ताल की गयी तो कई और साक्ष्य हाथ लगे। ये सभी साक्ष्य राज्य संपत्ति विभाग से जुड़े है सूचना के अधिकार के माध्यम से हमे पता चला कि उत्तर प्रदेश से उत्तराखंड आए कर्मचारियो के बंटवारे में ये मुन्ना प्रसाद इस राज्य को, कोर्ट के आदेश पर यहाँ भेजे गए है और इनका ही पुत्र शिवांकू कुमार है।
मुन्ना प्रसाद के आवंटन संबंधी उत्तर प्रदेश के राज्य संपत्ति विभाग का पत्र
मुन्ना प्रसाद के अंतिम आवंटन पत्र को जब हमने बारीकी से देखा तो एक बड़ा खुलासा हुआ कि उस आवंटन पत्र में इनकी पत्रावली खुली ही नहीं, सिर्फ इनकी सिर्फ पासबुक उत्तर प्रदेश शासन द्वारा भेजी गयी तो क्या इनकी पत्रावली उत्तर प्रदेश में खुली ही नहीं? ये हम नहीं कह रहे है ये विभाग के कागज बोल रहे है। इनकी पत्रावली उत्तराखंड में नयी खोली गयी। जब मुन्ना प्रसाद की नई पत्रावली उत्तराखंड में खोली गयी तो हमारे मन में सवाल कौंधा कि जब उत्तर प्रदेश में इनकी पत्रावली खुली थी, तो उत्तराखंड में इनकी नयी पत्रावली क्यो खोली गयी?
शेष भाग जल्द।
“क्यो हुई मुन्ना की पत्रावली मिस्टर इंडिया!”