उत्तराखण्ड

लालकुआं आखिर में मारा गया गरीब, खनन के खेल में बदहाली का दर्द:

हर साल एक अक्टूबर से तीस जून तक मजदूरी करके परिवार चलाने वाला तबका इस साल दो जून को तरस रहा है। मोदी सरकार का राशन कार्ड न होता तो ये मजदूर और भी बदहाल स्थिति में होते।

नदियों के कारोबार से मजदूर तबका धरातल की ईंट है बिन मजदूर ये नदियां सूनी हैं लेकिन कोई इन मजदूरों का दर्द आज देखने वाला नहीं है।

वाहन मालिक और सरकार के टकराव से इन निर्दोष मजदूरों पर गाज गिर गई।

हर साल जाड़ों में नदी गेट पर मजदूरों को कंबल और भी कई सामान दिया जाता था लेकिन हड़ताल की आड़ में इस साल मजदूरों को किसी ने कंबल रहा दूर एक चादर तक नहीं दी और नहीं स्वास्थ कैंप ही लगा।

जबकि मजदूर हर नदी गेट पर आज भी है इंतजार कर रहा है कब उसका रोजगार खुलेगा। छोले चावल बेचने वाला फेरी की दुकान चलाने वाले बेरोजगार हैं।

मजदूरों को इस साल कंबल क्यों नहीं बांटे ये सवाल बार बार जेहन में उठ रहा है कि क्या संबंधित विभाग इसके लिए निंदा का पात्र नहीं है!

दुःख का विषय है कि मजदूर की तरफ किसी का ध्यान नहीं जिसके दम पर कारवां अरबों का चलता है! मानवीय आधार पर हर गेट के मजदूरों का हक उन्हें मिलता रहे इसके लिए विभाग को सोचना होगा।

 

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