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मकर संक्रांति पर क्यों उड़ाई जाती है: पतंग

मकर संक्राति पर आसमान में रंग-बिरंगी उड़ती हुई पतंगे एक पल के लिए तन और मन में खुशी की लहर लेकर आती हैं।

बहुत से शहरों में लोग इस दिन पतंग उड़ा कर खूब मौज-मस्ती करते हैं।

पतंग उड़ाकर खुशी का ये संदेश देने का माध्यम आधुनिकरण के रंग में रंग चुका है।

पंतगबाजी के साथ घर की छतों पर व्यंजनों और ऊंची आवाज में लगे गीत-संगीत का खूब मजा लिया जाता है।

खुले मैदानों में तो काइट फेस्टिवल भी मनाया जाता है और बड़े पैमाने पर प्रतिस्पर्धाओं का आयोजन होता है।

पतंग उड़ाई जाती है, ये तो सबको पता है लेकिन क्यों उड़ाई जाती है ?

ये शायद काम ही लोगों को मालुम है। तो आइए जानते हैं, इसके पीछे का धार्मिक कारण:

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पतंग उड़ाने की परंपरा श्री राम के समय से जुड़ी है।

तमिल की तन्दनानरामायण के मुताबिक संक्रांति के दिन ही भगवान राम ने पतंग उड़ाई।

पतंग बहुत दूर तक उड़ी थी और उड़ते-उड़ते इंद्रलोक पहुंच गई।

तब से ही पतंग उड़ाने की परंपरा चली आ रही है।

भारत के अधिकांश हिस्सों में पतंगबाजी की जाती है।

खासकर गुजरात में पतंग बहुत ही जोरों-शोरों के साथ उड़ाई जाती है।

परंपरा के साथ-साथ इसके पीछे वैज्ञानिक कारण भी है।

मकर संक्रांति के दिन सूर्य से जो किरणें निकलती हैं, वह शरीर के लिए अमृत समान मानी जाती हैं, इस समय ठंड का मौसम होता है और पतंग उड़ाते वक्त धूप से विटामिन डी मिलता है।

इस स्थिति में सूर्य का प्रकाश औषधि का काम करता है।

सूर्य से मिलती हुई किरणें अमृत का काम करती हैं और विभिन्न तरह के रोग नष्ट होते हैं।

पतंग को आजादी व खुशी का प्रतीक माना जाता है।

पतंग उड़ाने से मन खुश रहता है और शरीर के अंदर सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव बना रहता है।

मकर संक्रांति वाले दिन कई जगह पर मेले भी लगते हैं और लोग नाचते-गाते हुए इस दिन का आनंद उठाते हैं।

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