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अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने 22 जून से शुरू हुई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आधिकारिक राजकीय यात्रा की मेजबानी की:

संयुक्त राष्ट्र में योग दिवस समारोह का नेतृत्व करने के लिए प्रधानमंत्री समय पर पहुंचे।

सदन और सीनेट की संयुक्त बैठक में मोदी का संबोधन हुआ जो वाशिंगटन द्वारा विदेशी गण्यमान्य व्यक्तियों को दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मानों में से एक है।

जब से बाइडेन 2020 में अमरीका के राष्ट्रपति बने हैं उन्होंने तर्क दिया है कि लोकतंत्र और निरंकुशता के बीच संघर्ष वर्तमान समय का निर्णायक संघर्ष है।

दरअसल बाइडेन ने अक्सर लोकतांत्रिक संस्थानों को मजबूत करने, कानून के शासन और मानवाधिकारों की सुरक्षा की जरूरत को रेखांकित किया है और निरंकुश शासनों के प्रति अपना विरोध प्रकट किया है।

चीन और रूस जैसे निरंकुश शासनों के खिलाफ जीत हासिल करने के अपने प्रयास में अमरीकी राष्ट्रपति भारत के साथ संबंधों को मजबूत करने के लिए उत्सुक रहे हैं।

हालांकि वाशिंगटन की झुंझलाहट के बावजूद नई दिल्ली रूस से कच्चे तेल की खरीद बढ़ा रही है, जो यूक्रेन युद्ध में रूस के लिए धन का एक प्रमुख स्रोत है।

वाशिंगटन नई दिल्ली पर यूक्रेन पर हमले के लिए रूस को दंडित करने के लिए और अधिक दबाव डाल रहा है।

इस सप्ताह की शुरूआत में कई डैमोक्रेट्स ने जो बाइडेन से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपनी राजकीय यात्रा के दौरान मानवाधिकार के मुद्दे को उठाने का आग्रह किया था।

डैमोक्रेट्स ने बाइडेन को लिखे पत्र में कहा, ‘‘स्वतंत्र, विश्वसनीय रिपोर्टों की एक शृंखला भारत में राजनीतिक स्थान के सिकुडऩे, धार्मिक असहनशीलता के बढऩे, नागरिक समाज संगठनों और पत्रकारों को निशाना बनाने और प्रैस की स्वतंत्रता तथा इंटरनैट पर बढ़ते प्रतिबंधों के परेशान करने वाले संकेतों को दर्शाती है।

इन चिंताओं के बावजूद हाल के वर्षों में भारत-अमरीका संबंध लगातार बढ़ रहे हैं और विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने इस प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है।

उन्होंने कहा कि यह रिश्ता काफी क्षमता वाला है और इसके बढऩे की अभी भी काफी गुंजाइश है।

अमरीकी विदेश मंत्री एंटनी ङ्क्षब्लकन के साथ 2022 की प्रैस कांफ्रैंस में जयशंकर ने कहा, ‘‘यदि आप भारत-अमरीका संबंधों को देखें तो यह केवल एक-दूसरे के लाभ के लिए समर्पित एक संकीर्ण संबंध नहीं हैं।

आज हमारा रिश्ता बाकी दुनिया को प्रभावित करता है। निश्चित रूप से यह इंडो-पैसेफिक को प्रभावित करता है।

अपनी एक पुस्तक ‘द इंडिया वे : स्ट्रैटेजीज फॉर एन अनसर्टेन वल्र्ड’ में जयशंकर ने पिछले कुछ दशकों में भारत-अमरीका संबंधों के विकास पर चर्चा की है।

भारत-अमरीका संबंध प्रगति पर हैं। यह समय के साथ विकसित हुए हैं और भविष्य में भी विकसित होते रहेंगे, लेकिन एक बात स्पष्ट है कि ये संबंध दोनों देशों की सुरक्षा और समृद्धि के लिए आवश्यक हैं।

भारत-अमरीका संबंधों के विकास में योगदान देने वाले कारकों में स्वतंत्रता और लोकतंत्र के सांझा मूल्य, आर्थिक परस्पर निर्भरता और आतंकवाद का आम खतरा शामिल हैं।

एक महत्वपूर्ण सैन्य शक्ति के रूप में चीन के प्रभाव ने भारत और संयुक्त राज्य अमरीका के बीच सहयोग को बढ़ावा दिया है।

जैसा कि कहा गया है कि पाकिस्तानी मुद्दे, चीन के साथ अमरीका की प्रतिद्वंद्विता और दोनों देशों के बीच राजनीतिक सोच में मतभेद जैसी चुनौतियों का उल्लेख करना उचित है, जो संभावित रूप से सांझेदारी को कमजोर कर सकते हैं।

जयशंकर अपनी पुस्तक में टकराव वाले मूल्यों के खिलाफ शक्ति संतुलन तक पहुंचने के लिए एक-दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा करने वाली ‘बहुध्रुवीय दुनिया’ का संदर्भ देते हैं।

वह इसे उन दुविधाओं से जोड़ते हैं जिनका सामना महाभारत में पांडवों और कौरवों को करना पड़ा था।

हालांकि यह एक व्यवसाय जैसा वैश्विक दृष्टिकोण है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि दीर्घकालिक सांझेदारी संभव नहीं है।

दो देशों के बीच संबंध, सहयोग और प्रतिस्पर्धा के बीच एक सतत् खेल है। इसलिए जब मजबूत सांझेदारी बनाने की बात आती है तो मतभेदों का प्रबंधन आवश्यक है।

कम से कम यह तो कहा जा सकता है कि भारत और अमरीका के बीच संबंध जटिल रहे हैं, हालांकि रिश्ते के सामने आने वाली चुनौतियों और अवसरों के साथ-साथ इसका विकास जारी है।

वाशिंगटन के विपरीत भारत दुनिया को दोहरी दुनिया के रूप में नहीं देखता है।

भारत के लिए यह बड़ी शक्तियों अमरीका-चीन-रूस का एक उभरता हुआ संतुलन है और भारत विभिन्न स्तरों पर कई सांझेदारों के साथ जुड़ेगा।

इसलिए भारत और अमरीका के लिए एक-दूसरे से अपेक्षाओं के बारे में स्पष्ट और पारदर्शी होना जरूरी है।

एक मजबूत सांझेदारी को बनाए रखने के लिए बीच का रास्ता खोजने के लिए तैयार रहना महत्वपूर्ण है।

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