सोलर जियोइंजीनियरिंग : आज पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन (Climate Change) और ग्लोबल वॉर्मिंग (Global Warming) की गंभीर समस्या से जूझ रही है। तापमान में लगातार वृद्धि, बेमौसम बारिश, सूखा, बाढ़ और चक्रवात जैसी आपदाएं इसका प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। ऐसे में वैज्ञानिकों ने एक नई तकनीक पर काम करना शुरू किया है जिसे सोलर जियोइंजीनियरिंग (Solar Geoengineering) या सोलर रेडिएशन मॉडिफिकेशन (SRM) कहा जा रहा है। इसका उद्देश्य सूरज से धरती पर आने वाली गर्मी को नियंत्रित करना है ताकि धरती के तापमान को कम किया जा सके।
क्या है सोलर जियोइंजीनियरिंग?
सोलर जियोइंजीनियरिंग एक ऐसी तकनीक है जिसमें वायुमंडल की समताप मंडल (Stratosphere) में सल्फर डाइऑक्साइड जैसी पदार्थों का छिड़काव किया जाता है। यह प्रक्रिया सूरज की किरणों को परावर्तित (reflect) कर देती है जिससे वे धरती पर पूरी तरह नहीं पहुँच पातीं और धरती का तापमान नियंत्रित रहता है। यह ठीक वैसा ही है जैसा ज्वालामुखी विस्फोट के बाद होता है – जब राख और धूल सूरज की किरणों को रोकती हैं और वातावरण कुछ समय के लिए ठंडा हो जाता है।
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सोलर जियोइंजीनियरिंग के फायदे:
इस तकनीक के माध्यम से वैश्विक तापमान को तेजी से घटाया जा सकता है, जो पारंपरिक उपायों जैसे कार्बन उत्सर्जन में कटौती से बहुत तेज़ है। इसके प्रयोग से बर्फबारी, बाढ़, गर्मी और तूफानों की तीव्रता में कमी लाई जा सकती है, जिससे मानव जीवन और जैवविविधता की रक्षा हो सकती है। कार्बन-कटौती और नवीकरणीय ऊर्जा की तुलना में यह तकनीक काफी सस्ती है। रिपोर्ट्स के अनुसार रिसर्च के लिए 9 लाख डॉलर की फंडिंग पर्याप्त बताई गई है। इस परियोजना में 15 देशों के वैज्ञानिक शामिल हैं, जिससे अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और वैज्ञानिक समन्वय को बल मिल रहा है।
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सोलर जियोइंजीनियरिंग के नुकसान
सूरज की किरणों को कम करने से कुछ क्षेत्रों में सूखा, मानसून में परिवर्तन और खाद्य उत्पादन पर असर पड़ सकता है। जैसे – दक्षिण अफ्रीका में सूखा बढ़ सकता है या फिलीपीन्स में चावल की पैदावार घट सकती है। तापमान और वर्षा में अप्राकृतिक बदलाव से जीव-जंतुओं और पौधों की प्रजातियों को खतरा हो सकता है अगर कुछ देश इस तकनीक का इस्तेमाल करते हैं और बाकी देश इसके खिलाफ हैं, तो यह अंतर्राष्ट्रीय विवाद का कारण बन सकता है। इसके असर सीमाओं से परे हो सकते हैं। यह तकनीक ग्लोबल वार्मिंग की जड़ – ग्रीनहाउस गैसों – को नहीं हटाती। जैसे ही इसका प्रयोग बंद होगा, तापमान फिर बढ़ने लगेगा। वैज्ञानिक अभी भी इस तकनीक के दीर्घकालिक प्रभावों को पूरी तरह नहीं समझ पाए हैं। एक छोटी गलती भी बड़े पर्यावरणीय संकट को जन्म दे सकती है।
सोलर जियोइंजीनियरिंग एक क्रांतिकारी विचार है जो दुनिया को बढ़ते तापमान से राहत दिला सकता है, लेकिन इसके साथ गंभीर जोखिम भी जुड़े हैं। यह तकनीक एक अस्थायी समाधान हो सकती है लेकिन दीर्घकालीन समाधान नहीं। हमें इस दिशा में संतुलन बनाए रखते हुए काम करने की ज़रूरत है – ताकि न केवल धरती को बचाया जा सके बल्कि जीवन के हर रूप की सुरक्षा भी सुनिश्चित की जा सके। जब तक हम कार्बन उत्सर्जन कम करने, हरित ऊर्जा अपनाने और प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा नहीं करेंगे, तब तक कोई भी तकनीक स्थायी समाधान नहीं दे सकती।