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नोटबंदी के असर का अध्ययन करना जरूरी: मोदी

2016 में 1000 रुपए और 500 रुपए के करंसी नोटों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। लेकिन इस तरह के महत्वपूर्ण फैसलों पर फिर से विचार करना महत्वपूर्ण होता है यदि भविष्य के लिए सबक लेने के लिए ऐसा किया गया हो।

क्या नोटबंदी का फैसला जल्दबाजी में लिया गया था? इस पर क्या पर्याप्त विचार नहीं किया गया था? क्या इसने उन लक्ष्यों को प्राप्त किया जिनके लिए निर्णय लिया गया था। नोटबंदी से लाखों ही लोग प्रभावित हुए थे।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की टैलीविजन पर उस फैसले की घोषणा करने और सिर्फ 4 घंटे का नोटिस देने का वीडियो देश की सामूहिक स्मृति में बना रहेगा।

विमुद्रीकृत नोटों को जमा करने की तारीख उसी वर्ष 30 दिसम्बर थी। तत्काल प्रभाव से विमुद्रीकृत नोटों को जमा करने और नए करंसी नोटों को वापस लेने के लिए बैंकों के बाहर टेढ़ी-मेढ़ी लम्बी-लम्बी कतारें लगी हुई थीं।

शादियों का सीजन नजदीक आने से हर आम, खास लोगों में भी अफरा-तफरी मच गई। उद्योग और अर्थव्यवस्था के लिए यह एक बड़ा झटका साबित हुआ।

छोटे व्यापारियों और उद्यमियों के अलावा असंगठित क्षेत्र सबसे बुरी तरह से प्रभावित हुए और कई अपने व्यवसाय में कभी भी वापिस नहीं लौट सके।

नोटबंदी का निर्णय बिना किसी योजना के लिया गया था। यह बात इस तथ्य से स्पष्ट है कि 8 नवम्बर 2016 को विमुद्रीकरण की शुरूआत के बाद नियमों में लगभग 70 संशोधन हुए थे।

इनमें से ज्यादातर संशोधन पहले 2 महीनों में हुए। इनमें से कुछ नकदी की उस राशि से संबंधित है जिसे या तो बैंकों से या ए.टी.एम. के माध्यम से निकाला जा सकता है।

सरकार ने यहां तक कि पुरानी करंसी को जमा करवाने के लिए संशोधित समय सीमा तय कर दी।

इसी तरह प्रधानमंत्री मोदी ने सार्वजनिक रूप से घोषणा की थी कि 2.5 लाख रुपए तक नकद जमा करवाने वालों को जांच के दायरे में नहीं लाया जाएगा।

इसका उद्देश्य गृहिणियों और अन्य लोगों के लिए था जो किसी आपात स्थिति के लिए नकदी को संभाल कर रखना पसंद करते थे।

हालांकि बाद में 2 लाख रुपए जमा करने वालों को भी आयकर जांच के दायरे में लाया गया।

जिन प्रश्रों का उत्तर दिया जाना चाहिए वह यह है कि क्या विमुद्रीकरण के मूल उद्देश्य पूरे हुए थे? भ्रष्टाचार या काला धन, जाली मुद्रा को समाप्त करना और आतंकवाद को वित्त पोषित धन की आपूर्ति को समाप्त करना जैसी बातें शामिल थीं।

कम ही लोग होंगे जो मानते होंगे कि भ्रष्टाचार का स्तर कम हुआ है या काले धन पर लगाम लगी है। लगभग सभी विमुद्रीकृत मुद्रा नोटों को वापस बैंकों में जमा कर दिया गया था जो साबित करता है कि नकली नोटों की उपस्थिति नगण्य थी।

काले धन का कोई बड़ा जमाखोर बरामद नहीं हुआ और आतंकवादियों को धन मुहैया कराने से निपटने पर तत्काल कोई प्रभाव नहीं पड़ा।

हां, मुद्रा के डिजिटलीकरण में कुछ प्रगति हुई है और अधिक से अधिक लोग ऑनलाइन या हस्तांतरण के माध्यम से धन का भुगतान करना पसंद करते हैं।

हालांकि पैसे का गुप्त लेन-देन जारी है। सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में इस मुद्दे को उठाया और घोषणा की कि वह उचित है या नहीं, इस पर एक अकादमिक मुद्दा उठाना पड़ेगा कि क्या नोटबंदी की घोषणा से पहले प्रक्रिया का पालन किया गया था?

 

 

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