दो साल के बच्चे के यूरिन में प्रोटीन आना : शरीर की गंदगी को हम रोज़ाना नहाकर निकाल देते हैं, ठीक यही काम शरीर के अंदर हमारी किडनी (गुर्दा) करती है। किडनी शरीर के टॉक्सिन्स और बेकार चीज़ों को बाहर निकाल हमें स्वस्थ रखती है । हम सभी के शरीर में दो किडनी होती हैं, लेकिन केवल एक ही किडनी सारी जिंदगी सभी महत्वपूर्ण कार्यों को पूरा करने में सक्षम होती है।
किडनी हमारे शरीर के अनावश्यक कचरे को बाहर निकालकर हमें स्वस्थ रखने का काम करती है। हाल के वर्षों में डायबिटीज़ और उच्च रक्तचाप के मरीज़ों की संख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है। यही वजह है कि दुनिया भर के सैकड़ों लोगों जिनमें बच्चे भी शामिल हैं, इस रोग से प्रभावित हैं। किडनी रोग के प्रति जागरूकता पैदा करने के उद्देश्य से हर साल मार्च के दूसरे गुरूवार को ‘वर्ल्ड किडनी डे’ मनाया जाता है।
इस वर्ष 10 मार्च को वर्ल्ड किडनी डे मनाया जाएगा । यह लोगों में किडनी की बीमारियों की समझ, निवारक व्यवहार के बारे में जागरूकता, जोखिम कारकों के बारे में जागरूकता और किडनी की बीमारी के साथ कैसे रहना है, इसके बारे में जागरूकता को बढ़ायेगा।
हम ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि हम किडनी की अच्छी सेहत चाहते हैं। प्रतिवर्ष यह किसी थीम पर आधारित होता है और इस वर्ष की थीम है ‘बच्चों में किडनी रोग: बचाव के लिए जल्द प्रतिक्रिया करें!’
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किडनी की बीमारी बच्चों को कई तरह से प्रभावित करती है जिसमें दो साल के बच्चे के यूरिन में प्रोटीन आना या इलाज किये जाने वाले विकारों के साथ ही जीवन को खतरे में डालने वाले लंबे समय वाले परिणाम शामिल हैं। बच्चों में बढ़ते अस्वस्थ्य जीवन के चलते उनकी किडनियों पर खतरा मंडरा रहा है। बच्चों में होने वाले मुख्य किडनी डिसीज –
नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम
यह एक आम किडनी की बीमारी है। पेशाब में प्रोटीन का जाना, रक्त में प्रोटीन की मात्रा में कमी, कोलेस्ट्रॉल का उच्च स्तर और शरीर में सूजन इस बीमारी के लक्षण हैं।
किडनी के इस रोग की वजह से किसी भी आयु में शरीर में सूजन हो सकती है, परन्तु मुख्यत: यह रोग बच्चों में देखा जाता है। उचित उपचार से रोग पर नियंत्रण होना और बाद में पुन: सूजन दिखाई देना, यह सिलसिला सालों तक चलते रहना यह नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम की विशेषता है।
लम्बे समय तक बार-बार सूजन होने की वजह से यह रोग मरीज और उसके पारिवारिक सदस्यों के लिए एक चिन्ताजनक रोग है। सरल भाषा में यह कहा जा सकता है की किडनी शरीर में छन्नी का काम करती है, जिसके द्वारा शरीर के अनावश्यक उत्सर्जी पदार्थ अतिरिक्त पानी अर्थात पेशाब द्वारा बाहर निकल जाते हैं।
नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम में किडनी के छन्नी जैसे छेद बड़े हो जाने के कारण अतिरिक्त पानी और उत्सर्जी पदार्थों के साथ-साथ शरीर के लिए आवश्यक प्रोटीन भी पेशाब के साथ निकल जाते हैं, जिससे शरीर में प्रोटीन की मात्रा कम हो जाती है और शरीर में सूजन आने लगती है।
श्वेतकणों में लिम्फोसाइट्स के कार्य की खामी के कारण यह रोग होता है ऐसी मान्यता है। इस बीमारी के 90 प्रतिशत मरीज बच्चे होते हैं जिनमें नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम का कोई निश्चित कारण नहीं मिल पाता है। इसे प्राथमिक या इडीओपैथिक नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम भी कहते हैं।
वेसिको यूरेटेरिक रिफ्लक्स (वीयूआर) – यह एक ऐसी स्थिति है, जिसमें मूत्र मूत्राशय से पीछे, किडनी की ओर प्रवाह करने लगता है।
वीयूआर
कई बार बड़े बच्चे भी बिस्तर खराब कर देते हैं। ऐसे में उन्हें वेसिको यूरेटेरिक रिफ्लक्स या वीयूआर की आशंका हो सकती है। यह वह रोग है, जिसमें (वाइल यूरिनेटिंग) यूरिन वापस किडनी में आ जाती है। वीयूआर में शिशु बार-बार मूत्र संक्रमण (यूटीआई) का शिकार होता है और इसके कारण उसे बुखार आता है।
आमतौर पर फिजिशियन बुखार कम करने के लिए एंटीबायोटिक देते हैं लेकिन वीयूआर धीरे-धीरे आर्गन को डैमेज करता रहता है। वीयूआर नवजात शिशुओं और छोटे बच्चों की आम समस्या है, लेकिन इससे बड़े बच्चे और वयस्क भी प्रभावित हो सकते हैं।
सौ नवजात शिशुओं में से एक या दो शिशु वीयूआर से पीडि़त होते हैं। अध्ययन बताते हैं कि वीयूआर से प्रभावित बच्चे के भाई या बहन में से 32 प्रतिशत में यह समस्या देखी गई है। वीयूआर एक आनुवांशिक रोग है। अगर शुरुआती दौर में वीयूआर का इलाज किया जाए तो आसानी से ठीक किया जा सकता है, लेकिन बाद की स्टेज में यह किडनी फेलियर और ट्रांसप्लांट का मुख्य कारण बनता है।
यूटीआई
बच्चों में गुर्दे का संक्रमण बहुत आम है। इसे मूत्र संक्रमण यानी यूरीनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन (यूटीआई) के नाम से भी जाना जाता है। आमतौर पर इसके लिए ई. कोली नामक जीवाणु जिम्मेदार होता है।
बच्चों में यूटीआई को डायग्नोज करना कठिन होता है। उपचार न कराया जाए तो आयु बढ़ने के साथ लक्षण भी बढ़ने लगते है जैसे नींद में बिस्तर गीला करना, उच्च रक्तचाप, यूरिन में प्रोटीन आना, किडनी फेलियर। लड़कियों में इसके होने की आशंका लड़कों से दोगुना होती है।
अगर यूटीआई का उपचार नहीं कराया जाए तो किडनी के ऊतकों को स्थायी नुकसान पहुंचता है, जिसे रिफ्लक्स नेफ्रोपैथी कहा जाता है। जब यूरिन का बहाव उल्टा होता है तो किडनी पर सामान्य से अधिक दबाव पड़ता है। अगर किडनी संक्रमित हो जाती है तो समय के साथ उतकों के क्षतिग्रस्त होने की आशंका बढ़ जाती है।
इससे उच्च रक्तचाप और किडनी फेलियर होने का खतरा अधिक हो जाता है। अगर यूटीआई का उपचार नहीं कराया जाए तो किडनी के ऊतकों को स्थायी नुकसान पहुंचता है, जिसे रिफ्लक्स नेफ्रोपैथी कहा जाता है। जब यूरिन का बहाव उल्टा होता है तो किडनी पर सामान्य से अधिक दबाव पड़ता है।
अगर किडनी संक्रमित हो जाती है तो समय के साथ उतकों के क्षतिग्रस्त होने की आशंका बढ़ जाती है। इससे उच्च रक्तचाप और किडनी फेलियर होने का खतरा अधिक हो जाता है।
क्रोनिक किडनी डिसीज
दो साल के बच्चे के यूरिन में प्रोटीन आना : किडनी क्रोनिक डिसीज का मतलब है कि आप की किडनी ख़राब है और ब्लड को सही तरीके से फ़िल्टर नहीं कर सकती है। इसी ख़राबी की वजह से आपके शरीर में अपशिष्टों का जमाव हो सकता है। इसकी वजह से आपको अन्य समस्याएं भी हो सकती है ,जो आपके स्वस्थ के लिए हानिकारक होती हैं।
मधुमेह और उच्च रक्तचाप CKD के सामान्य कारण हैं। किडनी कई वर्षो में धीरे धीरे ख़राब होती है। बीमारी बहुत गंभीर होने से पहले तक कई लोगों को इसके लक्षणों का भी पता भी नहीं चलता है।
यह शिशु में बर्थ डिफेक्ट (शिशु केवल एक किडनी के साथ या किडनी की असामान्य संरचना के साथ पैदा हो), आनुवांशिक रोग (जैसे पॉलिसिस्टिक किडनी डिसीज), इंफेक्शन, नेफ्रोटिक सिंड्रोम (ऐसे लक्षणों का समूह जिसमें यूरिन में प्रोटीन और पानी का खत्म होना और शरीर में नमक प्रतिधारणा जो यह किडनी डैमेज का संकेत है), सिस्टेमिक डिसीज (जिसमें किडनी के साथ ही शरीर के कई अंग शामिल हों जैसे फेफेड़े), यूरिन ब्लॉकेज आदि शामिल है।
जन्म से लेकर चार वर्ष तक बर्थ डिफेक्ट और आनुवांशिक रोग किडनी फेलियर का कारण बनते हैं। पांच से चौदह वर्ष की आयु तक किडनी फेलियर का मुख्य कारण आनुवांशिक रोग, नेफ्रोटिक सिंड्रोम और सिस्टेमिक डिसीज बनता है।
किडनी रोग के लक्षण
- चेहरे पर सूजन
- भूख में कमी, मितली, उल्टी
- उच्च रक्तचाप
- पेशाब संबंधित शिकायतें, झांग आना
- रक्त अल्पता, कमजोरी
- पीठ के निचले हिस्से में दर्द
- शरीर में दर्द, खुजली, और पैरों में ऐंठन
ये सभी किडनी की बीमारियों की सामान्य शिकायतें हैं। मंद विकास, छोटा कद और पैर की हडिड्यों का झुकना आदि, किडनी की ख़राबी वाले बच्चों में आम तौर पर देखा जाता है।