देहरादून: सुबह जब एनडीआरएफ व एसडीआरएफ की टीमें यहां पहुंची तो पता चला कि राणा व उनकी पत्नी सहित पांच लोग मलबे में दबे हुए हैं लेकिन बड़े-बड़े पत्थरों के मलबे के बीच उन्हें खोजना आसान नहीं था।
आनन-फानन में जिला प्रशासन ने पोकलैंड मशीन का इंतजाम किया। पोकलैंड मशीन तो लालपुल तक पहुंच गई लेकिन वहां से आगे सड़क पूरी तरह टूट जाने के कारण पोकलैंड को तीन किलोमीटर दूर सरखेत तक पहुंचाना नामुमकिन लग रहा था।
अब एक ही रास्ता बचता था कि पोकलैंड मशीन को नदी में उतार कर तेज बहाव के बीच घटनास्थल तक पहुंचाया जाए लेकिन इसके लिए कोई ऑपरेटर तैयार नहीं हुआ।
इस बीच चाचा राजेंद्र सिंह राणा व चाची अनीता देवी के साथ घटित हादसे की खबर सुनकर उनका भतीजा सूरज चमोली से दून पहुंच चुका था सूरज राणा चमोली में एक कंपनी के लिए पोकलैंड मशीन चलाता है।
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उसे जब पता चला कि राहत व बचाव कार्य के लिए पोकलैंड मशीन का पहुंचना बहुत जरूरी है तो सूरज ने मशीन लेकर नदी के रास्ते जाने का फैसला किया।
उसने तेज बहाव के विपरीत पोकलैंड मशीन को हिम्मत और बहादुरी दिखाते हुए सरखेत गांव तक न केवल पहुंचाया बल्कि खुद मशीन चलाकर मलबे में दबे लोगों की तलाश में जुट गया। सूरज के इस जज्बे को स्थानीय निवासी ही नहीं बल्कि एनडीआरएफ एसडीआरएफ सहित जिला प्रशासन भी सलाम कर रहा है।