INDIA

गांधी वध’ और उनके विचारों पर हमले अब भी जारी:

महात्मा गांधी के हत्या के कारणों की पड़ताल करें तो पता चलता है कि महात्मा गांधी एक ऐसे भारत की कल्पना करते थे जो समावेशी हो, जहां विभिन्न धर्मों और जातियों के लोग बिना किसी भेदभाव के रहें।

अपनी इसी कल्पना की वजह से वो हिन्दू राष्ट्रवादी रथ-यात्रा चलाने वालों के लिए सबसे बड़ी रुकावट बन थे और उनकी हत्या कर दी गई।

उनकी हत्या करने वालों को ये उम्मीद थी कि गांधी के चले जाने के बाद उनका हिन्दू राष्ट्र का सपना पूरा हो जाएगा पर गांधी के विचार अब इस राष्ट्र के विचार बन गए थे और गांधी की शवयात्रा में शामिल लाखों लोग इसकी गवाही दे रहे थे.
एक हत्यारे की प्रशंसा अब भी जारी है।

आज सालों बाद भी गांधी वध यानी उनके विचारों को खत्म करने के प्रयास जारी हैं. पिछले साल महात्मा गांधी की पुण्यतिथि पर उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर के शारदा रोड स्थित अखिल भारत हिंदू महासभा के कार्यालय में न सिर्फ गांधी के राष्ट्रपिता होने पर सवाल उठाया गया था, बल्कि गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे का गुणगान करते हुए 30 जनवरी का दिन शौर्य दिवस के रूप में मनाया गया था।

देश की अखंडता में एकता को तोड़ने के लिए समय-समय पर हिन्दू-मुस्लिमों के बीच टकराव करवाया जाता रहा है और इसके लिए किसी विशेष धर्म का राष्ट्र बनवाए जाने की बात कही जाती है।

2002 में हुए गुजरात दंगे, 2013 के मुजफ्फरनगर दंगे और 2020 में हुए दिल्ली दंगे, आज भी अपने गुनहगारों को तलाश रहे हैं।

इस लड़ाई का कोई अंत नहीं है, इसका अंकित शिकार है तो आरोप है कि वारिस भी इसका शिकार है. बस इन सब की वजह से विकास हमसे कहीं दूर हो गया है।

अपनी गलतियों को छिपाने के लिए किसी एक धर्म को किस प्रकार निशाना बनाया जाता है. ये हम कोरोना काल में तब्लीगी जमात के उदाहरण से देख ही चुके हैं।

बॉम्बे हाईकोर्ट ने तब्लीगी जमात को लेकर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते कहा था कि, दिल्ली स्थित तब्लीगी जमात मरकज में शामिल होने वाले म्यांमार के नागरिकों का एक समूह कोरोना के प्रसार के लिए जिम्मेदार नहीं था।

महामारी या विपत्ति के दौरान एक राजनीतिक सरकार बलि का बकरा खोजने की कोशिश करती है और हालात बताते हैं कि इस बात की संभावना है कि इन विदेशियों को बलि का बकरा बनाने के लिए चुना गया था।

महात्मा गांधी को तो किताबें प्यारी थीं और हमें:

इन पर निर्भर न रहकर किताबों पर निर्भर रहना ही सबसे सही तरीका जान पड़ता है. महात्मा गांधी के महात्मा बनने के पीछे भी इन्हीं किताबों का अहम योगदान था।

अंटू दिस लास्ट’ किताब का जिक्र करते हुए एक बार उन्होंने कहा था ‘इस किताब ने मेरी अंतरात्मा को ही नहीं बदला, लेकिन बाहरी-जीवन में भी मैंने सकारात्मक परिवर्तन अनुभव किया. स।

महात्मा गांधी के लिए 1947 की उथल-पुथल के बीच कश्मीर आशा की किरण था क्या हम अपना आदर्श चुनने में चूक रहे हैं?

आज के युवा अपने आदर्शों को गलत चुन रहे हैं. ऐसे बहुत कम लोग हैं जो महात्मा गांधी, भगत सिंह, स्वामी विवेकानंद को पढ़ते हों.  प्रोफेसर, एक्टिविस्ट या वैज्ञानिक को छोड़कर एक्टर, खिलाड़ी, डांसर या किसी गायक के अधिक फॉलोवर्स दिखते हैं. कोई लेखक या वैज्ञानिक समाज के लिए कितना भी बड़ा काम कर ले पर उसे वो पहचान नहीं मिलती जो अश्लीलता फैला रही रील्स से मिल जाती है।

सही मार्ग पर चलने के लिए एक गांधीवादी के सुझाव:

विनोबा भावे और सुंदरलाल बहुगुणा से जुड़े गांधीवादी अनिरुद्ध जडेजा देश में हिन्दू मुस्लिमों के बीच बनाई जा रही दूरी के प्रयासों को कम करने के किए कुछ उपायों को सुझाते हैं।

1984 के गुजरात दंगों के बाद गांधीवादी लोगों द्वारा गुजरात में बहुत से लोगों ने शांति केंद्र चलाए गए थे, उन्हीं में से एक संस्था गुजरात बिरादरी बनाई गई. मैं भी उससे जुड़ा, हम अलग-अलग मौकों पर कौमी एकता का प्रयास करते थे. हम लोग कलेक्टर के साथ किसी विशेष त्यौहार से पहले मीटिंग रखते थे, हम किसी जुलूस में सबसे आगे चलते थे।

इसमें हर धर्म के लोग शामिल होते थे, इसी तरह की संस्थाएं बनाई जानी चाहिए. इनमें नौजवानों को शामिल करना जरूरी है क्योंकि अधिकतर टकराव नौजवानों के बीच ही होता है।

अपनी बात आगे बढ़ाते उन्होंने कहा कि स्कूली बच्चों को भी सभी धर्मों के बारे में पढ़ाया जाना चाहिए, उन्हें बताया जाना चाहिए कि सभी धर्मों में क्या अच्छाई है. कबीर जैसे महापुरुषों द्वारा प्रदान की गई मनुष्यता की शिक्षा इन छात्रों को देना बहुत जरूरी है।

सरकार के कला, शिक्षा जैसे विभागों को भी कौमी एकता की बात करने वाले लोगों के साथ मिलकर काम करना चाहिए. बच्चों के कोर्स में भाईचारे वाली घटनाओं को पढ़ाया जाना चाहिए।

 

 

 

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