खोजीनारद। आज जब जौलीग्रांट हवाई अड्डे से उत्तराखंड के जनप्रिय नेता हरीश रावत और नव निर्वाचित अध्यक्ष गणेश गोदियाल जी काफिला निकला तो जनता का हुजूम देखकर ये समझ आ गया कि हरीश रावत की जरूरते कम कम है इसलिए उनमें दम है।
चार सालों से इस प्रदेश में कांग्रेस के अध्यक्ष रहे अपने कुनबे के साथ एक जीप में समा गए और दो जगह से चुनाव हारे हरीश रावत के काफिले ने आज ये दर्शा दिया कि उनका हारना मशीनी प्रायोजित था या मतदाताओं की भूल। ये आज प्रत्यक्ष रूप से नजर आया।
हरीश रावत हमेशा से विपक्षी पार्टियों द्वारा और स्वयं अपनी पार्टी में स्थानीय तौर पर हमेशा से उपेक्षित रहे है। आज कांग्रेस के सोशल मीडिया के फेसबुक पेज पर उनके कार्यक्रम को फिर से स्थान नही मिला पर उनके बारे में अनर्गल बोलने वालों को पार्टी स्तर पर कार्यकारी अध्यक्ष का स्थान जरूर मिला ।
हरीश रावत के विरोधी आज तक ये नही समझे कि वो आज जो कुछ भी है वो उस नेता की देन है जो इस राज्य का जन नेता है। कभी उसके पक्ष में और विरोध के कारण ही उनको कार्यकारी अध्यक्ष का स्थान मिला है।
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किसी नेता का कभी मान और वर्तमान में अपमान करने का उपहार ऐसा होता है क्या?
ये बातें हरीश रावत के उन विरोधियों को सोचनी चाहिए जो आज एक इतने महत्वपूर्ण पद पर आकर भी एक गाड़ी में सिमट कर रह गए।
अगर राजनीति इसी का नाम है तो इस राज्य की जनता को क्या ऐसे नेताओं का सम्मान करना चाहिए? ये सवाल है मेरा।
जिस नेता का विरोध करने से मात्र प्रदेश में पार्टी का द्वितीय सर्वोच्च पद मिलता हो,वो सौभाग्य है या दुर्भाग्य?
ये सब इस राज्य की जनता 2022 में अपने मतों से तय करेगी, पर आज के हरीश रावत को देखकर ऐसा जरूर लगा कि राजनैतिक स्तर पर हरीश रावत फेल साबित हो सकते है पर इस राज्य के लोगो के दिल के नेता तो वो है।