उत्तराखण्ड

उत्तराखंड में अंकिता भण्डारी हत्याकांड के मामले में सीबीआई से कराए जाने को लेकर हुई सुनवायी.

कोर्ट ने उनसे पूछा है कि आपको एसआईटी की जाँच पर क्यों संदेह हो रहा है।

सुनवाई के दौरान एसआईटी ने अपना जवाब पेस किया।

कोर्ट ने जाँच अधिकारी से पूछा कि फोरेंशिक जांच में क्या साक्ष्य मिले।

जाँच अधिकारी कोर्ट को सन्तुष्ट नही कर पाए।

उनके द्वारा कहा गया कि कमरे को डिमोलिस्ट करने से पहले सारी फोटोग्रफी की गई है।

मृतका के कमरे से एक बैग के अलावा कुछ नही मिला।

मामले की अगली सुनवाई 18 नवम्बर की तिथि नियत की है।

आज सुनवाई में अंकिता की माता सोनी देवी व पिता बीरेंद्र सिंह भंडारी ने अपनी बेटी को न्यायलय दिलाने व दोषियों को फांसी की सजा दिए जाने को लेकर याचिका में अपना प्राथर्ना पत्र दिया।

उनके द्वारा प्रार्थना में कहा गया कि एसआईटी इस मामले की जाँच में लापरवाही कर रही है ।

इसलिए इस मामले की जाँच सीबीआई से कराई जाए।

सरकार इस मामले में शुरुआत से ही किसी वीआईपी को बचाना चाह रही है।

सबूत मिटाने के लिए रिसॉर्ट से लगी फैक्टरी को भी जला दिया गया।

जबकि वहाँ पर कई सबूत मिल सकते थे।

स्थानीय लोगो के मुताबिक फैक्ट्री में खून के धब्बे देखे गए थे।

सरकार ने किसी को बचाने के लिए जिला अधिकारी का स्थानान्तरण तक कर दिया।

याचिकाकर्ता का कहना है कि उनपर इस केस को वापस लिए जाने का दवाब डाला जा रहा है।

उनपर क्राउड फंडिंग का आरोप भी लगाया जा रहा है।

अंकिता के परिजन आशुतोष नेगी ने याचिका दायर कर कहा है कि पुलिस व एसआईटी इस मामले के महत्वपूर्ण सबूतों को छुपा रहे है।

एसआईटी द्वारा अभी तक अंकिता का पोस्टमार्टम की रिपोर्ट सार्वजनिक नही की।

जिस दिन उसका शव बरामद हुआ था उसकी दिन शाम को उनके परिजनों के बिना अंकिता का कमरा तोड़ दिया।

जब अंकिता का मेडिकल हुआ था पुलिस ने बिना किसी महिला की उपस्थिति में उसका मेडिकल कराया गया।

जो माननीय सर्वोच्च न्यायलय के आदेश के विरुद्ध है। मेडिकल कराते समय एक महिला का होना आवश्यक था जो इस केस मे पुलिस द्वारा नही किया।

जिस दिन उसकी हत्या हुई थी उस दिन छः बजे पुलकित उसके कमरे में मौजूद था वह रो रही थी ।

याचिका में यह भी कहा गया है कि अंकिता के साथ दुराचार हुआ है जिसे पुलिस नही मान रही है।

पुलिस इस केस में लीपापोती कर रही है।

इसलिए इस केस की जाँच सीबीआई से कराई जाए।

 

 

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