अगर बात लगभग 7 साल पुरानी है किसी पर खोजी नारद का पुरजोर पहरा था , और उसी पहरे के मध्य पत्रकारिता का नारद भी अपने सूत्रों से राजनीति के राजनितज्ञ पर इंगित हुआ ।
कुछ ऐसा हासिल हुआ कि राज्य स्थापना दिवस के दिन अपने दो सिपहसालारो के सामने उस दिग्गज नेता को माफी मांगनी पड़ी बड़े भाई की उलाहना देकर।
खोजी नारद ने सम्पूर्ण प्रकरण को विराम देकर बिना किसी प्रभाव के उस राजनितज्ञ के क्रिया कलापों पर पूर्णविराम लगा दिया।
अब ये बातें खोजी नारद क्यो लिख रहा है इसके पीछे भी एक कारण है क्योंकि उत्तराखंड के वर्तमान अपने पसंदीदा इलाही पर इसी राजनितज्ञ का एक चक्रव्यू तैयार किया जा रहा है जिसमे इस राज्य के कई पूर्व इलाही भी सम्मलित है।
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अब एक काले कौव्वे की अकूत दौलत के सहारे प्रेम नगर से सहसपुर तक एक पूर्व निर्धारित सुनियोजित किला तैयार किया जा रहा है जो यमुना की कालोनी से संचालित है।
अब जब इसकी भनक खोजी नारद को लगी तो बात तो सार्वजनिक करना फ़र्ज़ बनता है क्योंकि वर्तमान इलाही के प्रशंसको में, मैं भी एक हूँ।
बात जब जुबां से निकलती है तब दूर तलक जाती है पर खोजी नारद के शब्द जब सार्वजनिक माध्यम पर अंकित होते है तो उसके मायने कुछ खास होते है ।
बाकी स्मृति अभी शेष है जरा संभल कर रहिएगा क्योकि नेह के संदर्भ अभी बौने नही हुए है।