![guard of relief after great restlessness](https://khojinarad.com/wp-content/uploads/2023/01/Guard-of-relief-after-great-restlessness.jpg)
आज दस्तक दी है मेरी धड़कनो ने, धमनियो को, कि आज ही बाज़ार खुला है खोजी नारद के इंतज़ार में।
उस बाज़ार में क्या बेचूँगा मैं, मेरी उल्फत क्या होंगी किरदार में, काले कौऊये मुर्गो की तरह बांग दे रहे है, माज़रा के बाज़ार में।
अब उनकी भी बारी है कटने की कागार में, कोई अपना ही उनको बेचेगा, खोजी नारद के बाज़ार में।
ये सनद कर लो ताकि होशो हवास रहे, अंतिम कगार में।
ये चंद लाइन बहुत कुछ बयां करेंगी खोजी नारद की, आने वाले दिनों में राजनीति के बाज़ार में।