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सुप्रीम कोर्ट ने सरोजिनी नगर में झुग्गियों को गिराने पर रोक लगाते हुए कहा- लोगों के साथ मानवीय व्यवहार करें

नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को दिल्ली के सरोजिनी नगर इलाके में करीब 200 झुग्गियों को गिराने की प्रक्रिया पर रोक लगाते हुए कहा कि एक आदर्श सरकार को मानवीय ²ष्टिकोण अपनाना चाहिए क्योंकि इसमें मौलिक अधिकार शामिल हैं। शीर्ष अदालत ने कहा कि सुनवाई की अगली तारीख तक अधिकारियों द्वारा कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी। अदालत ने मामले की सुनवाई अगले सोमवार को निर्धारित की है।

शीर्ष अदालत ने झुग्गीवासियों की प्रार्थना पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा और इस बात पर जोर दिया कि उचित राहत और पुनर्वास योजना के बिना कोई विध्वंस नहीं होगा।

जस्टिस के. एम. जोसेफ और हृषिकेश रॉय की पीठ ने कहा, “कोई जबरदस्ती कार्रवाई नहीं होगी। सुनवाई सोमवार को निर्धारित की जाती है।”

शुरुआत में झुग्गियों के निवासियों का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने कहा कि लगभग 1,000 लोगों के पुनर्वास के लिए कोई योजना होनी चाहिए, जिसमें स्कूल जाने वाले बच्चे भी शामिल हैं।

सिंह ने कहा, “उन्हें हवा में गायब होने के लिए नहीं कहा जा सकता।” केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के. एम. नटराज ने तर्क दिया कि किसी ने अगर सरकारी जमीन पर कब्जा कर लिया है और वह मतदाता के रूप में नामांकित भी हो गया है तो उसे रहने का अधिकार नहीं मिल सकता है। वहीं दिल्ली सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले एक वकील ने कहा कि लोगों की रक्षा की जानी चाहिए।

जस्टिस जोसेफ ने कहा कि सरकारी नोटिस में कहा गया है कि ‘सरकार को जमीन सौंप दो’। उन्होंने नटराज से कहा कि पूरा विचार यह है कि वे वहां रह रहे हैं और सरकार को लोगों के साथ मानवीय व्यवहार करना चाहिए। उन्होंने कहा, “जब आप एक आदर्श सरकार के रूप में उनके साथ व्यवहार करते हैं, तो आप यह नहीं कह सकते कि आपके पास कोई नीति नहीं होगी और बस उन्हें निकाल फेंक दिया जाए। आप परिवारों के साथ डील कर रहे हैं।”

नटराज ने प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ताओं को राहत दी जा सकती है, लेकिन वे एक जनहित याचिका की आड़ में सभी का समर्थन नहीं कर सकते। नटराज ने कहा, “खुद एक याचिकाकर्ता होने के नाते वह यह नहीं कह सकते कि वह दूसरों के लिए भी (राहत) मांग रहा है।”

पीठ ने नोट किया कि कुछ लोग 1995 से विवादित जमीन पर रह रहे हैं। न्यायमूर्ति रॉय ने कहा कि इस मामले का सभी लोगों पर प्रभाव पड़ता है। उन्होंने नटराज से पूछा, “क्या ऐसा होना चाहिए कि अदालत के समक्ष केवल दो व्यक्ति सुरक्षित हैं और अन्य नहीं हैं?”

शीर्ष अदालत ने दिल्ली उच्च न्यायालय के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि प्रत्येक झुग्गी व्यक्ति का व्यक्तिगत अधिकार है, जो मौलिक अधिकारों में आता है।

मामले में विस्तृत सुनवाई के बाद पीठ ने कहा कि सुनवाई की अगली तारीख तक कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं होनी चाहिए। शीर्ष अदालत ने कहा कि याचिका की प्रति एएसजी को दी जानी चाहिए, क्योंकि उन्होंने अदालत को संबोधित करने के लिए समय मांगा था।

याचिकाकर्ताओं में से तीन नाबालिग स्कूल जाने वाले बच्चे और उक्त मलिन बस्तियों के निवासी हैं। उनमें से दो को 26 अप्रैल से शुरू होने वाली बोर्ड परीक्षाओं के लिए उपस्थित होना है। नितिन सलूजा और अमन पंवार के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है, “उक्त झुग्गियों के निवासी धोबी, दिहाड़ी मजदूर, कूड़ा बीनने वाले, घरों में काम करने वाले, रेहड़ी वाले आदि जैसे बेहद गरीब व्यक्ति हैं और उनके पास कोई रहने का कोई अन्य स्रोत नहीं है। याचिकाकर्ता संख्या 1, 2 और 4 स्कूल जाने वाले नाबालिग बच्चे हैं (वे सरोजिनी नगर क्षेत्र में ही स्कूल जा रहे हैं)।”

याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता सरकार द्वारा शुरू किए गए किसी भी विकास कार्य/सार्वजनिक परियोजनाओं में बाधा डालने की कोशिश नहीं करते हैं और केवल सरकार की नीतियों के अनुसार पुनर्वास की मांग कर रहे हैं।

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