
रिटायर्ड जज और एक्टिविस्ट भारत विरोधी गिरोह का हिस्सा बनकर कोशिश कर रहे हैं कि भारतीय न्यायपालिका विपक्ष की भूमिका निभाए।
इतना ही नहीं उन्होंने न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित कॉलेजियम प्रणाली की जमकर आलोचना भी की और कहा था कि यह कांग्रेस पार्टी के दुस्साहस का परिणाम है।
जजों की नियुक्ति में इस प्रणाली को अपारदर्शी बताया तो कभी संविधान से अलग वह प्रणाली बताई जो दुनिया में अकेली है और जजों को अपने चहेतों को नियुक्त करने का मौका देती है।
मामला उस समय और सुर्खियों में आ गया जब इसी कॉनक्लेव में भारत के प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने कॉलेजियम प्रणाली का न केवल बचाव किया बल्कि यहां तक कह दिया कि हर प्रणाली दोष से मुक्त नहीं है।
लेकिन कॉलेजियम सबसे अच्छी प्रणाली है जिसे हमने ही विकसित किया है।
जिसका उद्देश्य न्यायपालिका की स्वतंत्रता की रक्षा करना है जो एक बुनियादी मूल्य भी है।
उनके बयानों को लेकर देश में काफी हो-हल्ला मचा था।
समर्थन और विरोध में खेमेबाजी भी हुई।
कई वकीलों और संगठनों ने कहा कि ऐसे बयान देना एक मंत्री वह भी कानून मंत्री को शोभा नहीं देता।
एक ओर रिजिजू अपने समर्थन में किए गए ट्वीट को रिट्वीट करते रहे जबकि देश के 90 पूर्व नौकरशाहों ने खुली चिट्ठी लिखकर यह तर्क दिया कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखने की खातिर कोई समझौता नहीं हो सकता।
उनके बयानों को संवैधानिक मर्यादाओं का उल्लंघन बताकर काफी बहस भी हुई। कहा गया कि सरकार की आलोचना न तो राष्ट्र के खिलाफ है और न ही कोई देशद्रोही गतिविधि है।
नाराज वकीलों ने सार्वजनिक रूप से अपनी टिप्पणी वापस लेने और आगे ऐसी टिप्पणियों से बचने की सलाह भी दी।
वहीं किरेन रिजिजू ने यह भी कहा कि देश के बाहर और भीतर भारत विरोधी ताकतें एक ही भाषा का इस्तेमाल करती हैं कि लोकतंत्र खतरे में है।
भारत में मानवाधिकारों का अस्तित्व नहीं है। भारत विरोधी समूह जो कहता है वैसी ही भाषा विपक्षी भी बोलते हैं।
यह भारत की अच्छी छवि का विरोध है। इसके बाद उन्हें वकीलों ने याद दिलाया था कि प्रधानमंत्री मोदी ने खुद कहा है कि सरकार से कठिन सवाल पूछे जाने चाहिएं और आलोचनाएं भी होनी चाहिएं जिससे सरकार सतर्क और उत्तरदायी बनी रहे।
यकीनन कानून मंत्री कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच एक कड़ी होते हैं और उन्हें पद, प्रतिष्ठा का ध्यान रख ऐसी कोई भी सार्वजनिक बात नहीं कहनी चाहिए जिससे लोकतंत्र और सरकार पर उंगली उठे।
हालांकि उन्होंने माना कि न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच कोई टकराव जैसी बात नहीं हैं।
लेकिन वहीं न्यायाधीशों की न्यायिक आदेशों के जरिए नियुक्ति को भी गलत ठहराया।
रिजिजू इस बात की वकालत करते रहे कि न्यायाधीशों की नियुक्ति की जिम्मेदारी सरकार के पास होनी चाहिए।
एक मौके पर यहां तक कह दिया था कि जब कोई जज बनता है तो उसे चुनाव का सामना नहीं करना पड़ता है।
जजों की कोई सार्वजनिक जांच भी नहीं होती। स्थिति उस समय थोड़ी और चर्चित तथा परेशानी वाली हो गई जब सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर कॉलेजियम प्रणाली के खिलाफ की गई टिप्पणी पर कार्रवाई की मांग की गई जिसमें उपराष्ट्रपति धनखड़ भी चर्चाओं में आए।
बीते सोमवार को ही सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में दायर एक याचिका यह कहते हुए खारिज की कि उसके पास इससे निपटने के लिए व्यापक दृष्टिकोण है।
किरेन रिजिजू न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली को अस्पष्ट और पारदर्शी बताते रहे जबकि उपराष्ट्रपति धनखड़ ने 1973 के केशवानंद भारती के ऐतिहासिक फैसले पर सवाल उठाए थे जिसने बुनियादी ढांचे का सिद्धांत दिया था।
जिससे यह कहना मुश्किल होगा कि हम एक लोकतांत्रिक देश हैं।
आखिर उनका इशारा किसी प्राधिकरण द्वारा संविधान में संशोधन करने की संसद की शक्ति पर सवाल उठाने को लेकर भी था।
इसी पर सुप्रीम अदालत ने न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए न्यायपालिका और कॉलेजियम प्रणाली पर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू की टिप्पणी पर राहत देते हुए दोनों के खिलाफ दाखिल जनहित याचिका खारिज करने के बॉम्बे हाई कोर्ट के निर्णय को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार करने से इंकार कर दिया।
बॉम्बे लॉयर्स एसोसिएशन ने उच्चतम न्यायालय में बॉम्बे हाई कोर्ट के 9 फरवरी के उस आदेश को चुनौती की खातिर एक याचिका दायर की थी।
जिसमें याचिका को इसलिए खारिज कर दिया गया था कि यह रिट लागू करने के लिए उपयुक्त मामला नहीं है।
माना जा रहा है कि कई कारणों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किरेन रिजिजू से नाराज थे।
खासकर पूरे देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू कराने पर प्रधानमंत्री की गंभीरता से वे बेफिक्र थे जबकि भाजपा शासित राज्यों में लागू हो रहा था।
वहीं एक बड़ा कारण न्यायपालिका और कानून मंत्री के बीच का वह चर्चित सार्वजनिक टकराव भी रहा जिससे उनके न्यायपालिका पर दिए बयानों से सरकार नाराज थी।
कर्नाटक चुनाव के चलते रिजिजू को थोड़ा जीवन दान जरूर मिला था जो कि चुनाव निपटते असर कर गया।
अब उन्हें भू-विज्ञान मंत्रालय मिला है। जबकि कानून मंत्रालय की जिम्मेदारी स्वतंत्र प्रभार के रूप में अर्जुन राम मेघवाल को सौंपी गई है।
यह राजस्थान विधानसभा चुनाव के चलते भी अहम है। शायद इसे ही कहते हैं एक तीर से दो निशाने।