श्री राम को मर्यादा पुरुषोत्तम क्यों कहते हैं? : भारतीय संस्कृति में भगवान राम का स्थान अत्यंत विशिष्ट है। उन्हें ‘मर्यादा पुरुषोत्तम’ के रूप में पूजा जाता है, जिसका अर्थ है ‘सम्मान और न्याय में सर्वोच्च व्यक्ति’। रामायण, जो एक महाकाव्य है, उसमें भगवान राम के जीवन और उनके गुणों का विस्तार से वर्णन मिलता है।
भगवान राम, भगवान विष्णु के सातवें अवतार माने जाते हैं, और उन्होंने त्रेता युग में अवतार लिया था। उनके अवतार का मुख्य उद्देश्य रावण जैसे असुरी शक्तियों का नाश करना और धर्म की स्थापना करना था। उनका जीवन एक आदर्श मानव के जीवन का उदाहरण है।
भगवान राम के जीवन की सबसे बड़ी परीक्षा तब आई जब माता कैकेयी ने उनके लिए 14 वर्ष के वनवास की मांग की। उन्होंने बिना किसी द्विधा के इसे स्वीकार किया और ‘रघुकुल रीति’ का पालन करते हुए दिखाया कि ‘प्राण जाए पर वचन न जाए’।
उनकी दया, करुणा और सत्यनिष्ठा उनके चरित्र के मुख्य अंग थे। उन्होंने अपने शासनकाल में सदाचार और धर्म के मार्ग को अपनाया और एक न्यायप्रिय और खुशहाल राज्य की स्थापना की। उनका ‘रामराज्य’ आज भी एक आदर्श समाज के रूप में देखा जाता है, जहां सभी नागरिक सुखी और संतुष्ट थे।
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भगवान राम के विचारों और आदर्शों का पालन करना न केवल व्यक्तिगत जीवन में बल्कि समाजिक जीवन में भी महत्वपूर्ण है। उनकी शिक्षाओं को अपनाने से हमें जीवन की कठिनाइयों से लड़ने की शक्ति मिलती है और हम एक सफल जीवन जी सकते हैं।
आज के युग में भी भगवान राम के गुण अत्यंत प्रासंगिक हैं। उनकी ईमानदारी, समर्पण, परोपकारिता और अपने कर्तव्य के प्रति निष्ठा आज के युग में भी हमारे लिए प्रेरणा हैं। उनकी ये शिक्षाएँ हमें नैतिकता और अच्छाई की ओर ले जाती हैं।
इस प्रकार, भगवान राम का जीवन और उनका राज्य सिर्फ एक ऐतिहासिक घटना नहीं है, बल्कि एक ऐसा प्रकाश स्तंभ है जो समय-समय पर मानवता को रास्ता दिखाता रहता है। उनका जीवन हमें बताता है कि किस प्रकार से एक इंसान अपनी आदर्शों के प्रति सच्चा रहते हुए अपने धर्म और कर्तव्यों का पालन कर सकता है। उनकी कहानियाँ और शिक्षाएँ आज भी हमारे लिए उतनी ही महत्वपूर्ण हैं, जितनी कि सदियों पहले थीं।