शिव का स्वरूप स्वयं में अद्भुत तथा रहस्यमय हैं। चाहे उनके शिखर पर चंद्रमा हो या उनके गले की सर्प माला हो या मृग छाला हो, हर वस्तु जो भगवान शंकर ने धारण कर रखी है, उसके पीछे गूढ़ रहस्य है।
आज हम बात करेंगे भगवान शिव की तीसरी आंख के बारे में। भगवान शिव की तीसरी आंख से जुड़ी कथा महाभारत के छठे खंड के अनुशासन पर्व में मिलती है।
इसके अनुसार, एक बार हिमालय पर्वत पर भगवान शिव समस्त देवी-देवता, ऋषि-मुनि और ज्ञानी लोगों के साथ सभा कर रहे थे।
तभी सभा में माता पार्वती आईं और उन्होंने उपहास के तौर पर शिव जी की दोनों आंखों पर अपने हाथ रखकर उन्हें बंद कर दिया।
जैसे ही माता पार्वती ने शिव जी की आंखें ढकी समस्त पृथ्वी पर अंधेरा छा गया। इससे धरती पर मौजूद सभी जीव-जंतुओं में हाहाकार मच गया।
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महादेव ने अपने माथे पर आंख के रूप में एक ज्योतिपुंज प्रकट किया। जिससे पूरी सृष्टि में पुनःप्रकाश छा गया।
तब उन्होंने माता पार्वती से इसका कारण पूछने पर बताया कि मेरी आंखें जगत की पालनहार हैं। ऐसे में यदि वह बंद हो जाएं तो पूरी सृष्टि का विनाश हो सकता है।
यही कारण है कि पूरे संसार की रक्षा के लिए शिव जी ने तीसरी आंख प्रकट की। शिवजी के तीनों नेत्र अलग-अलग गुणों के प्रतीक माने गए हैं।
महादेव के दांए नेत्र को सत्वगुण और बांए नेत्र को रजोगुण का वास माना गया है। तो वहीं तीसरे नेत्र में तमोगुण का वास है। कहा जाता है कि भगवान शिव की दो आंखें भौतिक जगत की सक्रियता पर नजर रखती हैं, तो वहीं तीसरी आंख का कार्य है पापियों पर नजर रखना।
यह आंख इस बात की ओर संकेत करती है कि समस्त विश्व का न तो आदि है और न ही अंत।
हिंदू पुराणों के अनुसार, भगवान शिव के तीनों नेत्र को त्रिकाल यानी भूत, वर्तमान और भविष्य का प्रतीक माना गया है। वहीं, स्वर्गलोक, मृत्युलोक और पाताल लोक भी इन्हीं तीनों नेत्रों के प्रतीक माने गए हैं।
यही कारण है कि शिव जी को तीनों लोकों का स्वामी माना जाता है। ऐसी कई पौराणिक कथाएं मिलती हैं, जिसमें बताया गया है कि मुख्य रूप से भगवान शिव को अत्यधिक क्रोध आने पर ही उनकी तीसरी आंख खुलती है।
हिंदू धर्म शास्त्रों में वर्णन मिलता है कि यदि भगवान शिव की तीसरी आंख खुल जाए तो संसार में प्रलय आ सकती है, जो विश्व के सर्वनाश की क्षमता रखती है।
यदि विज्ञान की बात करे तो मस्तिष्क के दो भागों के बीच एक पीनियल ग्लेंड होती है। तीसरी आंख इसी को दर्शाती है। इसका काम है एक हार्मोन्स को छोड़ना जिसे मेलाटोनिन हार्मोन कहते हैं, जो सोने और जागने के घटना चक्र का संचालन करता है।
जर्मन वैज्ञानिकों का ऐसा मत है कि इस तीसरे नेत्र के द्वारा दिशा ज्ञान भी होता है। इसमें पाया जाने वाला हार्मोन्स मेलाटोनिन मनुष्य की मानसिक उदासी से सम्बन्धित है।
अनेकानेक मनोविकारों एवं मानसिक गुणों का सम्बन्ध यहां स्रवित हार्मोन्स स्रावों से है। यह ग्रंथि लाइट सेंसटिव है इसलिए कफी हद तक इसे तीसरी आंख भी कहा जाता है।
आप भले ही अंधे हो जाएं लेकिन आपको लाइट का चमकना जरूर दिखाई देगा जो इसी पीनियल ग्लेंड के कारण है।
यदि आप लाइट का चमकना देख सकते हैं तो फिर आप सब कुछ देखने की क्षमता रखते हैं। यही वो पीनियल ग्लेंड है जो ब्रह्मांड में झांकने का माध्यम है।
इसके जागृत हो जाने पर ही कहते हैं कि व्यक्ति के ज्ञान चक्षु खुल गए। उसे निर्वाण प्राप्त हो गया या वह अब प्रकृति के बंधन से मुक्ति होकर सबकुछ करने के लिए स्वतंत्र है।
इसके जाग्रत होने को ही कहते हैं कि अब व्यक्ति के पास दिव्य नेत्र है। यह पीनियल ग्लेंड लगभग आंख की तरह होती है।
पीनियल ग्लेंड जीवधारियों में पूर्व में आंख के ही आकार का था। इसमें रोएंदार एक लैंस का प्रति रूप होता है और एक पार दर्शक द्रव भी अन्दर रहता है इसके अतिरिक्त प्रकाश संवेदी कोशिकायें एवं अल्प विकसित रेटिना भी पाई जाती है।
मानव में इसका वजन दो मिलीग्राम होता है। यह मेंढक की खोपड़ी में तथा छिपकलियों में चमड़ी के नीचे पाया जाता है।
इन जीव−जन्तुओं में यह तीसरा नेत्र रंग की पहचान कर सकता है। छिपकलियों में तीसरे नेत्र से कोई फायदा नहीं क्योंकि वह चमड़ी के नीचे ढका रहता है।
आदमियों में यह ग्लेंड या ग्रंथि के रूप में परिवर्तित हो गई है इसमें तंत्रिका कोशिकाएं पाई जाती हैं।