देहरादून

उत्तराखंड: पूर्व सीएम बीसी खंडूडी समेत अन्य बड़े नेताओं के करिबियों पर भी बैकडोर नौकरी में, ऋतु खंडूडी के सिलेक्टिव जांच आदेश.

ऐसे में स्पीकर ऋतु खंडूड़ी के सिलेक्टिव जांच के आदेश भी सवालों के घेरे में आ गए हैं। आखिर पूर्व सीएम बीसी खंडूड़ी के सीएम रहते हुए विधानसभा में हुई नियुक्तियों को क्यों जांच के दायरे में लाए जाने से बचा जा रहा है।

इस मामले में कांग्रेस की तेज तर्रार प्रवक्ता गरिमा दसोनी ने तीखा हमला बोला।

दसोनी ने कहा की दो विधानसभा अध्यक्ष स्वर्गीय प्रकाश पंत एवं स्वर्गीय हरबंस कपूर हमारे बीच में नहीं रहे, परंतु 2007 से 2012 के बीच भी विधानसभा नियुक्तियों में बड़ा खेल हुआ है ।

दसौनी ने बताया की स्वयं जनरल बीसी खंडूरी के बहुत ही खासम खास सिपहसालार रहे तत्कालीन पर्यटन सलाहकार प्रकाश सुमन ध्यानी की सुपुत्री की विधानसभा में नियुक्ति एवं जनरल खंडूरी के ही बहुत ही नजदीकी रहे महेश्वर बहुगुणा के सुपुत्र की नियुक्ति विधानसभा में उनके सीएम रहते हुई।

देहरादून के मेयर सुनील उनियाल गामा की पत्नी की नियुक्ति, काबीना मंत्री सुबोध उनियाल के साले की नियुक्ति और भाजपा के वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट के भाई की नियुक्ति भी खंडूरी जी के ही कार्यकाल में हुई जो कि संदेह के घेरे में है।
ऐसे में भूतकाल में भी किन लोगों ने उत्तराखंड को छलने और ठगने का काम किया है वह अब पता लगाने का समय आ गया है ।
उत्तराखंड कांग्रेस की मुख्य प्रवक्ता गरिमा मेहरा दसौनी ने विगत दिवस विधानसभा अध्यक्ष रितु खंडूरी के बयान पर पलटवार करते हुए कहा की शुरुआती तौर पर देखा जाए तो रितु खंडूरी के बयानों में इच्छाशक्ति और दृढ़ निश्चय तो दिखाई पड़ता है।

परंतु उनकी कहीं कुछ बातों से विरोधाभास भी उत्पन्न हो रहा है ।
दसोनी ने कहा कि विपक्ष की बात को नकारात्मक या महज विरोध ना

समझा जाए बल्कि इसे एक सुझावात्मक, सकारात्मक और सहयोगात्मक दृष्टिकोण से देखने की जरूरत है।

दसोनी ने कहा कि जिन दिनों भर्तियों और नियुक्तियों में हुई बंदरबांट का खुलासा हुआ विधानसभा अध्यक्ष विदेश दौरे पर थी।

परंतु समस्त उत्तराखंड की जनता बहुत ही अधिक अपेक्षाओं और आशा भरी नजरों से विधानसभा अध्यक्ष के लौटने और उनके पक्ष को जानने के लिए आतुर थी।

दसौनी ने कहा कि इसमें कोई दो राय नहीं जो समिति विधानसभा अध्यक्ष ने गठित की है वह तमाम अधिकारी साफ-सुथरी छवि के और न्याय पसंद हैं परंतु जो बात सबसे अधिक उद्वेलित कर रही है।

वह यह कि आखिर विधानसभा अध्यक्ष सिलेक्टिव जांच की बात क्यों कर रही है? दसोनी ने कहा कि अब उत्तराखंड की जनता के सब्र का बांध टूट चुका है और वह पूरा सच जानना चाहती है।

दसोनी ने कहा कि यदि जांच होनी है तो उत्तराखंड के गठन से लेकर आज तक की होनी चाहिए। 2012 से लेकर आज तक की जांच का कोई औचित्य समझ में नहीं आता।

दसोनी ने कहा वैसे भी जब उत्तराखंड विधानसभा में मात्र साढ़े पांच सौ कर्मी हैं तो जो 3 सदस्यों की समिति गठित की है उन्हें इन सभी कर्मियों की जांच पड़ताल करने में ज्यादा वक्त नहीं लगना चाहिए।

दसौनी ने विधानसभा अध्यक्ष से यह भी अपेक्षा की है कि वह इन जांच समिति के सदस्यों को फ्री हैंड दें एवम इस जांच को टारगेट बेस्ड करें ताकि रिपोर्ट जल्द से जल्द पब्लिक डोमेन में आ सके।

दसोनी ने कहा कि पहले दिन से आज तक कांग्रेस पार्टी का स्टैंड बहुत ही क्लियर रहा है कि भर्तियों और नियुक्तियों के मामले में जिसने भी खिलवाड़ करने का प्रयास किया है।

उसकी पहुंच कितनी भी बड़ी क्यों ना हो उसे बख्शा नहीं जाना चाहिए।

 

 

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