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"बद्रीनाथ धाम के कपाट बंद होने की प्रक्रिया, कुछ हटके, चूड़ी और बिंदी पहन कर स्त्री वेश में पूजा करते है पुजारी"

There is a unique secret hidden in the process of closing the doors of Badrinath Dham, the address of which we will tell you.

बद्रीनाथ धाम के कपाट आज यानी की आज  (शनिवार) को शीत काल के लिए बंद कर दिए जाएंगे। ये ख़बर तो हमने आपको बता दी लेकिन क्या आपको ये पता है की बद्रीनाथ धाम के कपाट बंद करने की प्रक्रिया क्या है।

नही पता तो चलिए हम आपको बताते है !

उत्तराखंड को देवों की भूमि कहा जाता है उत्तराखंड से कई प्राचीन परंपरा और मान्यताएं जुड़ी है। ऐसी ही एक खास और अनूठी परंपरा है बद्रीनाथ धाम से जुड़ी हुई।

क्या आपको पता है ….

बद्रीनाथ धाम मंदिर के पुजारी चूड़ी और बिंदी पहनकर साल में दो बार मंदिर में प्रवेश कर पूजा अर्चना करते है।

उत्तराखंड के बद्रीनाथ मंदिर में भगवान विष्णु अपने 24 स्वरूपों में से एक नर – नारायण रूप में विराजमान है. मंदिर में भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी, भगवान गणेश , कुबेर और उद्धव के विग्रह भी विराजित है।

कपाट बंद होने की प्रक्रिया लगभग 5 दिनों तक चलती है और इस दौरान भगवान गणेश आदि केदार खड़क पुस्तक और माता महालक्ष्मी की पूजा की जाती है।

ये तो हमने आपको बताया इस अनूठी प्रक्रिया के बारे में अब हम आपको बताते हैं कि आखिर क्यों यह अनूठी परंपरा सदियों से चली आ रही है?

बातचीत के दौरान मंदिर के पूर्व धर्माधिकारी भुवन उनियाल ने बताया कि उद्धव जी भगवान कृष्ण के बाल सखा होने के साथ-साथ श्री कृष्ण से उम्र में भी बड़े है, जिस रिश्ते से वह माता लक्ष्मी के जेठ हुए और ये तो सभी को पता है की जेठ के सामने बहू नहीं आती है।

इसीलिए मंदिर से उद्धव जी के बाहर आने के बाद ही माता लक्ष्मी बद्रीनाथ धाम के गर्भ ग्रह में प्रवेश करती है।

माता लक्ष्मी की विग्रह डोली को पर पुरुष न छुए इसीलिए मंदिर के पुजारी माता लक्ष्मी की सखी अर्थात स्त्री रूप धारण कर माता के विग्रह को उठाते हैं यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है।

 

 

 

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