देहरादून नेहरू कालोनी क्षेत्र में हाल ही में हुई साइबर ठगी का मामला, फर्जी सिम कार्ड और फर्जी बैंक खातों का इस्तेमाल साइबर ठगों के लिए कितना आसान हो गया है।
इस मामले में एक महिला को एक फर्जी कॉल के जरिए ठगा गया और उसके बैंक खाते से पैसे चुराए गए। यह घटना बस एक उदाहरण है, क्योंकि आजकल साइबर ठगों के लिए ये तकनीक सामान्य हो गई है।
साइबर ठगों का हथियार सबसे अहम हैं, बैंक खाता और मोबाइल नंबर।
इन्हें फर्जी आइडेंटिटी के साथ उपयोग करके वे विश्वासयोग्य लोगों को ठग रहे हैं।
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पुलिस इस मामले में उनके पीछे पहुंचने में असमर्थ रहती है, क्योंकि फर्जी सिम कार्ड और बैंक खातों के बड़े नेटवर्क का इस्तेमाल होता है, जिन्हें बहुत कठिनाई से ट्रेस किया जा सकता है।
यह एक गंभीर समस्या है क्योंकि साइबर ठगों के आगे पुलिस के लिए कई चुनौतियाँ हैं।
जब वारदात होती है, तो पुलिस को उन नंबरों की जानकारी नहीं मिलती है, जिनसे कॉल आया था या जिन खातों में पैसे भेजे गए थे।
साइबर ठगों को पकड़ने के लिए तमाम संसाधनों की आवश्यकता होती है, जो वक्त की बड़ी खोज के बाद भी निकलते हैं।
देहरादून पुलिस अब साइबर कमांडो को तैयार कर रही है।
इन कमांडों को साइबर एक्सपर्ट्स द्वारा प्रशिक्षित किया जा रहा है, ताकि वे साइबर ठगी की घटनाओं की जांच कर सकें और आम लोगों को साइबर ठगी से बचाने के लिए जागरूक कर सकें।
एडवांस टूल भी विकसित किए जा रहे हैं ताकि पुलिस ठगों तक पहुंच सके और इस खतरे को नियंत्रित कर सके।
साइबर ठगी का मकड़जाल तेजी से फैल रहा है और इससे लोगों के लिए बड़ा खतरा है।
इसलिए, सामाजिक जागरूकता और साइबर सुरक्षा के मामले में सतर्क रहना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
आम लोगों को अपनी निजी और वित्तीय जानकारी को सुरक्षित रखने के लिए सतर्क रहना होगा, ताकि वे साइबर ठगों के शिकार न बनें।