अपने एक प्रवचन में स्वामी दयानंद सरस्वती ने कहा था, ‘‘प्राचीन काल में दरिद्रों के घर में भी विमान थे। उपरिचर नामक राजा सदा हवा में ही फिरा करता था, पहले के लोगों को विमान रचने की कला, विद्या भली प्रकार से विदित थी।
पहले के लोग विमान आदि के द्वारा लड़ाई लड़ते थे। मैंने भी आर्यों की एक विमान-रचना की पुस्तक देखी है। भला आप सोचें कि उस व्यवस्था और विज्ञान के सन्मुख आज इस रेलगाड़ी की प्रतिष्ठा ही क्या हो सकती है।
ए.ओ. ह्यूम जिन्होंने बाद में भारतीय कांग्रेस की स्थापना की, ने स्वामी जी का उपहास करते हुए कहा, ‘‘व्यक्ति का उड़ना गुब्बारों तक ही सीमित रह सकता है, यान बनाकर तो केवल सपनों में ही उड़ा जा सकता है।
वहीं जब विमान का आविष्कार हुआ तो ए.ओ. ह्यूम ने बाद में उदयपुर में स्वामी श्रद्धानंद जी से क्षमा मांगी थी। उस समय स्वामी दयानंद देह त्याग चुके थे और स्वामी श्रद्धानंद उनके उत्तराधिकारी समझे जाते थे।
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उसी ए.ओ. हयूम ने महर्षि जी के बारे में अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा, ‘‘स्वामी दयानंद के सिद्धांतों के विषय में कोई मनुष्य कैसी भी विचारधारा रखे परन्तु यह सबको मान लेना पड़ेगा कि स्वामी दयानंद अपने देश के लिए गौरव स्वरूप थे।
दयानंद को खोकर भारत को महान हानि उठानी पड़ी है। वे महान और श्रेष्ठ पुरुष थे।