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India

भारत छोड़ो आंदोलन : कभी जेल गए, कभी वेष बदला, पर नहीं थमने दिया आंदोलन का सिलसिला

admin
Last updated: 2024/10/02 at 5:41 AM
admin
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4 Min Read
quit india movement sometimes jailed
quit india movement sometimes jailed
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भारत छोड़ो आंदोलन : हर्षल सिंह राठौड़, इंदौर (नईदुनिया)। महात्मा गांधी ने 8 अगस्त 1942 को बंबई से भारत छोड़ो आंदोलन की जो मशाल जलाई थी, उसकी दमक इंदौर में भी दिखी। यहां एक बार फिर नए सिरे से क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल बजा दिया। भारत छोड़ो आंदोलन के साथ करो या मरो के नारे ने शहर के क्रांतिकारियों की रगों में मानों बिजली दौड़ा दी। शहर में अंग्रेज तो थे, लेकिन होलकर शासकों की बदौलत उनका दायरा सीमित था। इसका लाभ क्रांतिकारियों को भरपूर मिला।

Contents
छह माह तक छुपकर किया जागरूककभी दाड़ी-मूंछ रखते, तो कभी हटाते18 दिन जेल में रहे

क्रांति का उग्र रूप ऐसा हुआ कि कई क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया और कई महीनों तक छुपकर रहते हुए अंग्रेजों के खिलाफ जंग छेड़ते रहे। शहर में उस वक्त रैली, जुलूस, नारेबाजी और सभा को लेकर कोई स्थान तय नहीं था। जनजागृति की यह ज्वाला राजवाड़ा के आसपास जैसे सुभाष चौक, सराफा, कृष्णपुरा छत्री, जेल रोड, खातीपुरा, सराफा में जला ही करती थी। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की जुबानी ही हम आपको बता रहे हैं भारत छोड़ो आंदोलन के वक्त शहर में अंग्रेजों को खदेड़ने के प्रयास।

छह माह तक छुपकर किया जागरूक

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रखबचंद्र बाबेल बताते हैं कि जिस वक्त भारत छोड़ो आंदोलन शुरू हुआ था, उस वक्त मेरी उम्र करीब 19 वर्ष थी। महात्मा गांधी और सुभाषचंद्र बोस दोनों का ही मेरे मन पर गहरा प्रभाव था। हम राऊ में रहा करते थे। इंदौर में उस वक्त आंदोलन का नेतृत्व नारायणसिंह सपूत, कन्हैयालाल खादीवाल, श्रीराम आगार, नगेंद्र आजाद, श्यामकुमार आजाद आदि करते थे। मैं साइकिल से इंदौर आकर क्रांतिकारी भाइयों के साथ कार्य करता था। शहर में मैं प्रजामंडल पत्रिका से जुड़ा जो अंग्रेजों के खिलाफ जनजागृति लाने का कार्य करती थी। पत्रिका से जुड़ने के कारण मुझे गिरफ्तार करने का वारंट निकला और छह माह तक मुझे छुपकर रहना पड़ा। इस दौरान भी जनजागरूकता का कार्य जारी था।

कभी दाड़ी-मूंछ रखते, तो कभी हटाते

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आनंद मोहन माथुर बताते हैं इस आंदोलन का प्रभाव इंदौर, उज्जैन, देवास, शाजापुर में भी व्यापक रूप लिए था। गांधीजी के संदेश, समाचार आदि हम दिन में कागज पर छापते थे और रात के अंधेरे में उन कागज को दीवारों पर चिपकाते थे। रैलियां, हड़ताल, नारेबाजी, सभाओं को लेकर शहर के मध्यक्षेत्र में कोई रोकटोक नहीं थी। शहर के बड़े नेता जेल में बंद हुए तो जिम्मेदारी हम युवाओं पर आई। हम आंदोलन करते और कालेजों में जाकर हड़ताल कराते थे। जो कार्य युवा विद्यार्थी गोपनीय तरीके से करते थे अब उन्हें खुले तौर पर वह कार्य करने का मौका मिलना शुरू हो गया था। अंग्रेज सिपाही हर वक्त तलाशी पर रहते थे, इसलिए हमें कई बार वेष बदलकर कार्य करना पड़ता था। घुड़सवार सिपाही तंग रास्तों पर भी डंडे मारते हुए चलते थे। अंग्रेज सिपाहियों से बचने के लिए कभी दाढ़ी-मूछ बढ़ा लेते तो कभी हटा लेते। कभी नकली मूंछ लगाकर पुलिस को चकमा देते

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18 दिन जेल में रहे

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी नवल किशोर शर्मा बताते हैं कि आजादी की लड़ाई में इस आंदोलन के साथ ही कदम रखा था। एक दिन तोपखाना से घर की ओर आ रहा था। प्रजामंडल के दफ्तर से लौटते वक्त एक इंस्पेक्टर व तीन कांस्टेबल ने मुझे गिरफ्तार कर लिया। उस वक्त मेरी उम्र 18-19 वर्ष ही थी। मुझे सेंट्रल जेल भेज दिया गया। जेल में मेरे साथ मेडिकल कालेज के 15 से अधिक विद्यार्थी भी थे। नेता हरिनाथ शर्मा, डा. मोतीवाले और उनके बेटे भी हमारे साथ कैद थे। हम सब 18 दिन तक जेल में रहे।

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admin October 2, 2024 August 9, 2022
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