उत्तराखण्ड

15 अगस्त 1947 को मसूरी में नहीं फहराया गया था तिरंगा, शहर में लगा था कर्फ्यू.

मसूरी: पहाड़ों की रानी मसूरी में 15 अगस्त 1947 को सार्वजनिक तौर पर राष्ट्रीय ध्वज नहीं फहराया गया था। इस दौरान स्वतंत्रता दिवस मनाए जाने को लेकर मसूरी के सवाय होटल में कुछ लोगों ने गुपचुप तरीके से राष्ट्रीय ध्वज फहराकर स्वतंत्रता दिवस मनाया था। स्वतंत्रता से पूर्व अंग्रेज मसूरी के गांधी चौक पर झंडा फहराते थे। आज इसी चौक पर आजादी का जश्न धूमधाम से मनाया जा रहा है।

इतिहासकार गोपाल भारद्वाज ने बताया कि 15 अगस्त को मसूरी में कर्फ्यू लगे होने के कारण सार्वजनिक तौर पर गांधी चौक पर राष्ट्रीय ध्वज नहीं फहराया गया था। उन्होंने बताया कि मसूरी के प्रशासक शफी अहमद किदवई (जो नेहरू सरकार में मंत्री रहे) रफी अहमद किदवई के छोटे भाई थे.
जिनके द्वारा 15 अगस्त को सार्वजनिक रूप से राष्ट्रीय ध्वज को फहराने की अनुमति नहीं दी गई थी, क्योंकि उस समय मसूरी में कर्फ्यू लगा हुआ था। गोपाल भारद्वाज ने बताया कि जब देश आजाद हो रहा था तो मसूरी में बहुत ज्यादा मुस्लिम परिवार थे, जो पाकिस्तान जा रहे थे, जिनको मसूरी के रामपुर हाउस में एकत्र किया गया।
जहां पर वर्तमान में मसूरी मॉडल स्कूल है, वही से सभी को पाकिस्तान भेजा गया, लेकिन उस दौरान कुछ असामाजिक तत्वों ने मसूरी में दंगा कर कई लोगों के ऊपर हमला कर दिया। जिसको लेकर मसूरी में कर्फ्यू लग गया। अंग्रेजों ने मसूरी के गांधी चौक पर राष्ट्रीय ध्वज नहीं फहराने दिया था, जिसके बाद मसूरी में कुछ नेताओं ने मसूरी के सवाय होटल और मसूरी क्लब में गुपचुप तरीके से राष्ट्रीय ध्वज लहराकर आजादी की खुशी मनाई थी।

स्वतंत्रता सेनानी जगन्नाथ शर्मा का जिक्र करते हुए गोपाल भारद्वाज बताते हैं कि 1938 में मसूरी के घनानंद इंटर कॉलेज से शिक्षा ग्रहण करने के दौरान गांधी और नेहरू से प्रेरित होकर उन्होंने स्कूल परिसर में राष्ट्रीय ध्वज फहरा दिया था, जो उस समय अद्भुत और विस्मयकारी घटना थी। इसको लेकर जगन्नाथ शर्मा को यातनाएं भी झेलनी पड़ी थी। उन्होने कहा कि जगनन्नाथ शर्मा ने 8वीं कक्षा में थे। उन्होने स्कूल की छत पर राष्ट्रीय ध्वज को फहरा दिया था।

इतिहासकार गोपाल भारद्वाज बताते हैं कि मसूरी गांधी, नेहरू के साथ कई नेताओं की पसंदीदा जगह थी। स्वतंत्रता से पूर्व इन सभी का यहां आना-जाना लगा रहता था. मसूरी के बंद कमरों में देश को आजाद करने के लिये रणनीति बनाई जाती थीं।
मसूरी के सिल्वर्टन ग्राउंड में कई सभाएं आयोजित की जाती थीं। गोपाल भारद्वाज ने बताया कि उनके पिता प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य ऋषि भारद्वाज को लेने के लिए गांधी जी उनके आवास पर रिक्शा भिजवाते थे। देश के बड़े नेताओं से उनके पिता का सीधा संवाद होता था। समय-समय पर पत्राचारों के माध्यम से आजादी के साथ मसूरी के विकास के लिए भी वे वार्ता करते रहते थे।

उन्होने बताया कि जो लोग मसूरी से पाकिस्तान चले गए थे, वह उसके बाद भी पाकिस्तान से पत्रचार कर उनसे संवाद कायम रखते थे। उन्होंने कहा कि मसूरी में सभी जाति धर्मों में भाईचारा था और जब देश का बंटवारा हो रहा था तो सभी लोग भावुक थे।

 

 

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