सतवंत दुगरी। 79 साल के कैप्टन अमरिंदर सिंह, 74 साल के कमल नाथ और 70 साल के अशोक गहलोत को जब कांग्रेस पार्टी ने 2017 और 2018 में पंजाब, मध्य प्रदेश और राजस्थान के मुख्यमंत्रियों के रूप में चुना तो इसे पार्टी आला कमान की ओर से एक संकेत माना गया कि उसका विश्वास अभी भी नई पीढ़ी की जगह पुरानी पीढ़ी के नेताओं में हैं। पंजाब में राजस्थान और मध्य प्रदेश से तस्वीर थोड़ी अलग थी। मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया और राजस्थान में सचिन पायलट के रूप में अगली पीढ़ी के नेता विकल्प के रूप में मौजूद थे। पंजाब में कैप्टन का कोई विकल्प नहीं था। इसके अलावा वो बड़ी संख्या में विधायकों का समर्थन दिखा कर अपने प्रतिद्वंदी प्रताप सिंह बाजवा के खेमे के मुकाबले में अपने वर्चस्व का प्रदर्शन कर चुके। नतीजतन राज्य में पार्टी की पूरी बागडोर उनके हाथ में सौंप दी गई।
उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया और उनके ही विश्वासपात्र सुनील जाखड़ को प्रदेश अध्यक्ष, लेकिन अब सिद्धू को नया प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त कर पार्टी आला कमान ने कैप्टन को बदलते हालात को स्वीकार कर लेने का संकेत दिया है। प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किए जाने के बाद सिद्धू ने 21 जुलाई को कुछ वैसा ही शक्ति-प्रदर्शन किया जैसा कैप्टन ने 2017 में किया था। उनके बुलावे पर कैप्टन के मंत्रिमंडल के चार मंत्रियों सहित कई विधायक अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में माथा टेकने पहुंचे। सिद्धू के खेमे का दावा था कि कुल 62 विधायक वहां जमा हुए थे, इन दावों की स्वतंत्र रूप से पुष्टि नहीं हो पाई है, लेकिन बड़ी संख्या में विधायक वहां मौजूद थे।
कैसे आगे आए सिद्धू
साफ है कि सिद्धू कैप्टन को चुनौती देने की स्थिति में हैं लेकिन आखिर यह हुआ कैसे? 12 साल बीजेपी में रह कर सिर्फ चार साल पहले कांग्रेस से जुड़ने वाले सिद्धू पंजाब कांग्रेस के सबसे प्रभावशाली नेता कैप्टन अमरिंदर सिंह को चुनौती देने की स्थिति में आखिर पहुंचे कैसे। जानकार इसके पीछे दो मुख्य कारण बताते हैं।
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पहला कारण सीधे पंजाब से जुड़ा है, अक्टूबर 2015 में पंजाब के कई हिस्सों में सिखों की पवित्र किताब गुरु ग्रन्थ साहिब की प्रतियों के फटे हुए पन्ने मिलने लगे, जिसे पूरे राज्य में काफी आक्रोश फैल गया। 14 अक्टूबर को फरीदकोट के बरगारि गांव में विरोध प्रदर्शनों में पुलिस की गोली से दो लोगों की जान चली गई। तत्कालीन अकाली सरकार को भी इस आक्रोश का खामियाजा उठाना पड़ा और 2017 के चुनाव में वो सत्ता से बाहर हो गई। कैप्टन ने मुख्यमंत्री बनने के बाद पुलिस का एक विशेष जांच दल (एसआईटी) गठित किया जिसने अपनी रिपोर्ट 2021 में पेश की, 9 अप्रैल 2021 को पंजाब और हरियाणा के हाई कोर्ट ने इस एसआईटी के तरीकों पर ऐतराज जाहिर करते हुए इस रिपोर्ट को ही खारिज कर दिया। यही कैप्टन के भविष्य लिए एक नया मोड़ था।