"पैतृक गांव में अपनों के बीच समय बिता रहे MS धोनी, गांव की सूखी नहर से हुआ सतत पलायन का सामना"
Youth of mountains and pain of dry canal: Challenges of Dhoni's native village
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अल्मोड़ा : गांव के युवा पलायन, धोनी का गांवी अनुभव, सूखी नहर की यादें, गांव की सुविधाओं की मांग !
पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी यहां के काम कम ही आता है। यह उदाहरण धोनी के पैतृक गांव में भी देखने को मिला।
सुविधाओं के अभाव में गांव के युवा पलायन कर गए तो यहां की नहर भी सूख गई, लेकिन माही को आज भी 20 वर्ष पूर्व लबालब चलती नहर की याद है।
गांव पहुंचने पर पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी पुरानी यादें ताजा हो गई। खेती-बाड़ी कर आजीविका चलाने वाले परिवार से निकले पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी को गांव में सिंचाई की नहर सूखी दिखाई दी।
उन्होंने ग्रामीणों से पूछा कि इसमें पानी नहीं आता। दो दशक पूर्व जब धोनी गांव आए थे, तो नहर में पानी भरकर चलता था।
नहर से ल्वाली के साथ ही बसगांव, मिरई, भाबू चार गांव लाभांवित होते थे, लेकिन अब यह नहर पिछले करीब छह वर्षों से सूखी पड़ी है।
गांव में नहीं है आजीविका का साधन ग्रामीणों के अनुसार, गांव में आजीविका का कोई साधन नहीं है। अधिकतर लोग पलायन कर चुके हैं, जबकि बचे लोग एकमात्र काश्तकारी पर ही निर्भर हैं।
ऐसे में नहर सूखने से दिक्कत बढ़ गई है। खेती भी प्रभावित है। कॉटेज में ठहरे धोनी, साक्षी और जीवा कुमाऊं भ्रमण पर पहुंचे भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी पहाड़ की शांत वादियों में आराम कर रहे हैं।
अल्मोड़ा-देवीधुरा मार्ग पर शहरफाटक क्षेत्र के नाटाडोल गांव के कॉटेज में ठहरे माही बगीचे व जंगल में भ्रमण के साथ ही मंदिर में पूजा कर पहाड़ का आनंद ले रहे हैं।
माही पत्नी साक्षी व बेटी संग मंगलवार को नैनीताल और बुधवार को अपने पैतृक गांव ल्वाली (जैंती) पहुंचे थे।
बुधवार को ल्वाली से लौटने के बाद वह लमगड़ा ब्लाक के अंतर्गत नाटाडोल गांव के कॉटेज में आ गए।
जंगलों में घूमे धोनी गुरुवार सुबह उन्होंने गुनगुनी धूप के बीच हिमालय की चोटियों का दीदार किया। सेब, नाशपाती, पुलम व खुबानी के बगीचे से घिरे एकांत कॉटेज में दिन भर आराम किया और दोपहर बाद निकल पड़े गांव के मध्य स्थित शैम देवता के मंदिर।
यहां पूजा अर्चना के बाद जंगल भी घूमे। सुविधाओं के लिए तरस रहा गांव गांव में सड़क, खेल मैदान और अन्य सुविधाओं का अभाव है।
नहर सूख गई है, माही को पूर्व में भरकर चलने वाली नहर की याद है।
पास के गांव में खेल मैदान की घोषणा हुई थी। आज तक माही के गांव में खेल मैदान तो दूर सड़क सुविधा नहीं मिल सकी है। गांव की सुध लेने की जरूरत है।