यहां ‘ब्रह्म’ शब्द का अर्थ तपस्या से है और ‘ब्रह्मचारिणी’ का अर्थ है- तप का आचरण करने वाली।
देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा करने वाले व्यक्ति को अपने हर कार्य में जीत हासिल होती है।
वह सर्वत्र विजयी होती है।
शास्त्रों के अनुसार सफेद वस्त्र धारण किए हुए मां ब्रह्मचारिणी के दो हाथों में से दाहिने हाथ में जप माला और बाएं हाथ में कमंडल है।
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इनकी पूजा करने से व्यक्ति के अंदर जप-तप की शक्ति बढ़ती है।
मां ब्रह्मचारिणी अपने भक्तों को संदेश देती हैं कि परिश्रम से ही सफलता प्राप्त की जा सकती है।
कहा जाता है कि नारद जी के उपदेश से मां ब्रह्मचारिणी ने भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए कठिन तपस्या की थी।
इसलिए इन्हें तपश्चारिणी भी कहा जाता है।
मां ब्रह्मचारिणी कई हजार वर्षों तक जमीन पर गिरे बेलपत्रों को खाकर भगवान शंकर की आराधना करती रहीं और बाद में उन्होंने पत्तों को खाना भी छोड़ दिया।
जिससे उनका एक नाम अपर्णा भी पडा।
पुराणों में बताया गया है कि मां ब्रह्माचारिणी की पूजा- अर्चना करने से सर्वसिद्धि प्राप्त होती हैं।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मां ब्रह्मचारिणी को गुड़हल, कमल, श्वेत और सुगंधित पुष्प प्रिय हैं।
ऐसे में नवरात्रि के दूसरे दिन मां दुर्गा को गुड़हल, कमल, श्वेत और सुगंधित पुष्प अर्पित करें।
मां दुर्गा को नवरात्रि के दूसरे दिन चीनी का भोग लगाना चाहिए।
मान्यता है कि ऐसा करने से दीर्घायु का आशीष मिलता है।
मां ब्रह्मचारिणी को दूध और दूध से बने व्यंजन जरूर अर्पित करें।