भस्त्रिका प्राणायाम : किसी ध्यानोपयोगी आसन में सुविधानुसार बैठकर दोनों नासिकाओं से स्वास को पूरा अन्दर डायाफ्राम तक भरना तथा बाहर सहजता के साथ छोड़ना भस्त्रिका प्राणायाम’ कहलाता है।
भस्त्रिका के समय शिवसंकल्प
भस्त्रिका प्राणायाम में श्वास को अन्दर भरते हुए मन में विचार (संकल्प) करना चाहिए कि ब्रह्माण्ड में विद्यमान दिव्य शक्ति, ऊर्जा, पवित्रता, शान्ति और आनन्द आदि जो भी शुभ है, वह प्राण के साथ मेरे देह में प्रविष्ट हो रहा है।
मैं दिव्य शक्तियों से ओत-प्रोत हो रहा हूँ। इस प्रकार दिव्य संकल्प के साथ किया हुआ प्राणायाम विशेष लाभप्रद होता है।
भस्त्रिका प्राणायाम करने का समय
ढाई सेकण्ड में श्वास अन्दर लेना एवं ढाई सेकण्ड में श्वास को एक लय के साथ बाहर छोड़ना। इस प्रकार बिना रुके एक मिनट में 12 बार भस्त्रिका प्राणायाम होगा।
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एक आवृत्ति में पाँच मिनट करना चाहिए। प्रारम्भ में थोड़ा रुकना पड़ सकता है। लगभग एक सप्ताह में निरन्तर पाँच मिनट बिना व्यवधान के अभ्यास हो जाता है।
स्वस्थ एवं सामान्यतया रोगग्रस्त व्यक्तियों को प्रतिदिन 5 मिनट भस्त्रिका का अभ्यास करना चाहिए। कैंसर, लंग फाइब्रोसिस, मस्क्यूलर डिस्ट्रॉफी, एम. एम. एस.एल.ई. एवं अन्य असाध्य रोगों में 10 मिनट तक अभ्यास करना चाहिए।
भस्त्रिका एक मिनट में 12 बार इसी प्रकार पाँच मिनट में 60 बार अभ्यास हो जाता है। कैंसर आदि असाध्य रोगों में 2 आवृत्ति करने पर 120 बार प्राणायाम होता है।
सामान्यतः प्राणायाम खाली पेट किया जाये तो उत्तम है। किसी कारणवश प्रातः प्राणायाम नहीं कर पायें तो दोपहर के खाने के 5 घंटे बाद भी प्राणायाम किया जा सकता है।
असाध्य रोगी प्रातः सायं दोनों समय प्राणायाम करें तो शीघ्र ही अधिक लाभ होगा।
विशेष जिनको उच्च रक्तचाप तथा हृदयरोग हो, उन्हें तीव्र गति से भस्त्रिका नहीं करनी चाहिए। इस प्राणायाम को करते समय जब श्वास को अन्दर भरें, तब पेट नहीं फुलाना चाहिए।
श्वास डायाफ्राम तक भरें, इससे पेट नहीं फूलेगा, पसलियों तक छाती ही फूलेगी। डायाफ्रैग्मेटिक डीप ब्रीदिंग का नाम ही भस्त्रिका है। ग्रीष्म ऋतु में धीमी गति से करें।
कफ की अधिकता या साइनस आदि रोगों के कारण जिनके दोनों नासाछिद्र ठीक से खुले हुए नहीं होते, उन लोगों को पहले दायें स्वर को बन्द करके बायें से रेचक और पूरक करना चाहिए।
फिर बायें को बन्द करके दायें से यथाशक्ति मन्द, मध्यम या तीव्र गति से रेचक तथा पूरक करना चाहिए।
फिर, अन्त में दोनों स्वरों इडा एवं पिंगला से रेचक पूरक करते हुए भस्त्रिका प्राणयाम करें।
इस प्राणायाम को पाँच मिनट तक प्रतिदिन अवश्य करें। प्राणायाम की क्रियाओं को करते समय आँखों को बन्द रखें और मन में प्रत्येक श्वास-प्रश्वास के साथ ‘ओ३म्’ का मानसिक रूप से चिन्तन और मनन करना चाहिए।
इस से मिलेगा यह लाभ
सर्दी-जुकाम, एलर्जी, श्वासरोग, दमा, पुराना नजला, साइनस आदि समस्त कफ रोग दूर होते हैं। फेफड़े सबल बनते हैं तथा हृदय और मस्तिष्क को भी शुद्ध प्राणवायु मिलने से आरोग्य-लाभ होता है।
थायरॉयड एवं टॉन्सिल आदि गले के समस्त रोग दूर होते हैं। त्रिदोष सम होते हैं। रक्त परिशुद्ध होता है तथा शरीर के विषाक्त, विजातीय द्रव्यों का निष्कासन होता है।प्राण और मन स्थिर होते हैं। यह प्राणोत्थान और कुण्डलिनी जागरण में सहायक है।