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समाज को नशा ने किया बर्बाद। ।

कुछ लोग लूट-मार जैसी वारदातें केवल इसीलिए अंजाम देते हैं, ताकि नशीले पदार्थों की अपनी जरूरतें पूरी कर सकें।

खास कर वे युवा, जो बेरोजगार हैं, या जिनकी आमदनी कम है, वे अगर नशे के चंगुल में फंस गए तो उनके पास अपनी यह जरूरत पूरी करने के लिए केवल गलत रास्ते ही हैं।

नशे के गिरोह आम तौर पर कच्ची उम्र के लड़कों को इसीलिए अपना शिकार बनाते हैं क्योंकि उनके लिए इनकी चालबाजी को समझना मुश्किल होता है।

देश का युवा वर्ग इस दलदल में और अधिक न फंसने पाए, इसके लिए जरूरी है कि इन पदार्थों की तस्करी पर प्रभावी रोक लगाई जाए।

उन तक नशीले पदार्थों की आपूर्ति के सारे रास्ते बंद कर दिए जाएं।

यह काम मुश्किल जरूर है, लेकिन नामुमकिन कतई नहीं।

हमें यह देखना होगा कि वे कौन-कौन से रास्ते हैं, जहां से नशीले पदार्थ हमारे देश में आते हैं।

साथ ही, उन जगहों पर भी नजर रखनी होगी, जहां से ये पदार्थ लोगों तक पहुंचते हैं।

सामान्य जनता तक इनकी आपूर्ति आम दुकानों से ही की जाती है।

सीमावर्ती क्षेत्रों में ऐसी कई जगहें हैं, जहां जाहिर तौर पर कुछ और कारोबार होता है, लेकिन पर्दे के पीछे नशीले पदार्थों की आपूर्ति भी की जाती है।

नशे की तस्करी में भ्रष्ट पुलिसकर्मियों की संलिप्तता रोकने की जिम्मेदारी भी पुलिस के आला अफसरों को ही उठानी होगी।

इसमें कोई दो राय नहीं कि कुछ भ्रष्ट पुलिसकर्मियों का संरक्षण इन गिरोहों को प्राप्त है।

हाल ही में 2 पुलिसकर्मी पंजाब के कपूरथला में हैरोइन के साथ पकड़े गए।

जब खुद पुलिसकर्मी नशीले पदार्थों के साथ पकड़े जा रहे हैं तो यह कैसे सोचा जा सकता है कि वे इन चीजों की तस्करी करने वालों को संरक्षण नहीं देते होंगे?

सीमा पार कराने से लेकर विभिन्न इलाकों में ऐसी चीजों को बिकवाने तक में कुछ पुलिसकर्मियों की भूमिका होती है।

यह स्थिति अकेले पंजाब में ही नहीं, कमोबेश पूरे देश में है।

इसका एकमात्र निदान केवल जागरूकता ही है। इसके लिए समाज के सभी तबकों को आगे आना होगा।

इस तरह के गलत कार्यों को रोकने के लिए सामाजिक दबाव बनाया जाए।

इसका अर्थ बिल्कुल नहीं कि हम नशाखोरी में फंस चुके युवाओं का सामाजिक बहिष्कार करें।

ऐसी स्थिति में वे और भी अधिक अकेले पड़ जाएंगे।

होना तो यह चाहिए कि उनसे सामान्य व्यवहार करते हुए हम उन्हें इस बात का एहसास दिलाएं कि नशा किस तरह उनके जीवन का नाश कर रहा है।

कैसे उनसे धन और सम्मान के साथ-साथ सुख-शांति भी छीन रहा है।

सच तो यह है कि समझा-बुझा कर किसी को भी गलत रास्ते पर जाने से रोका जा सकता है।

असल में नशा लोगों से उनका आत्मविश्वास छीन लेता है।

वे सामान्य जीवन में सक्रिय हो सकें, इसके लिए जरूरी है कि उनमें फिर से आत्मविश्वास जगाया जाए।

शासन-प्रशासन की भूमिका तो महत्वपूर्ण है ही, समाज के गण्यमान्य लोगों और बड़े-बुजुर्गों को भी यह दायित्व अपने ऊपर लेना चाहिए।

किसी भी देश की तरक्की व विकास उस देश के लोगों और खासकर युवा शक्ति पर निर्भर करता है लेकिन देश का युवा ही नशे की ओर चल पड़े तो दिमाग में स्थिति स्वयं निर्मित हो जाती है कि देश का भविष्य किस प्रकार का होने वाला है।

क्या ऐसी परिस्थितियों के बाद युवा देश को ‘विश्व गुरु’ बना पाएगा? युवाओं में नशा एक फैशन की तरह हो गया है।

युवा अपनी एक अलग ही दुनिया बनाने के लिए अपनी मस्ती में चूर रहने के लिए नशे में ही अपनी जिंदगी खोजता है।

लेकिन नशे से जिन्दगी नहीं, अंधकार देखने को मिलता है।

नशे की एक विशेष बात यह है कि नशा युवाओं को कभी बुढ़ापा नहीं दिखाता, यानि युवा कभी बूढ़ा नहीं होता… क्योंकि वह युवा अवस्था में ही नशे का शिकार होकर अपनी जान गंवा बैठता है!

मनोचिकित्सकों का कहना है कि युवाओं में नशे के बढ़ते चलन के पीछे बदलती जीवनशैली, परिवार का दबाव, पारिवारिक झगड़े, इन्टरनैट का अत्यधिक इस्तेमाल, एकाकी जीवन, परिवार से दूर रहने जैसे अनेक कारण हो सकते हैं।

ऐसा नहीं है कि देश के सारे ही युवा नशे की गिरफ्त में हैं लेकिन अधिकांश युवा वर्ग इसकी चपेट में जरूर है, जो स्वयं तो अपनी जिंदगी बर्बाद कर रहे हैं बल्कि अपने परिवार, समाज व देश को भी अंधकार में धकेल रहे हैं।

वहींं देश के बहुत से युवा विभिन्न क्षेत्रों में अपनी उत्कृष्ट सेवाएं देकर प्रेरणा स्रोत भी बन रहे हैं।

भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु जैसे युवा क्रान्तिकारियों ने देश के लिए खुशी-खुशी फांसी के फंदे चूम लिए थे।

युवाओं को अगर नशा करना ही है तो पढ़ाई का करें, देशभक्ति का ऩशा करें, समाजसेवा का नशा करें, माता-पिता की सेवा का नशा करें, गरीबों की सहायता का नशा करें, रक्त दान का नशा करें।

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