पत्रकारों को ठेकेदार बना रहा सूचना विभाग ; प्रदेश मे फिलहाल ये हाल हो चुका है की अगर डले पर भी हाथ लगा दे तो वो भी पत्रकार निकलेगा … हालत ये हो गई है की पत्रकारिता का स्तर ही नहीं बचा है मोची, सलमान पेंटर , रहीम ठेकेदार, सादब सब्जी , रॉयल नाईवाला ना जाने कौन कौन पत्रकार बने घूम रहे है… फिलहाल आज हम उस कड़वे सच पर रोशनी डाल रहे हैं।
जिसकी अंधेरी गली में फल फूल रहे हैं स्वयंभू पत्रकार
अंधेर नगरी में उत्तराखंड लोक सूचना एवं लोक सम्पर्क विभाग का दावतनामा निकला है कि अगर आपके पास पोर्टल है तो बन जाइए पत्रकार , शर्तें भी ऐसी कि कोई भी टेंडर में शामिल हो जाए….न पत्रकारिता का अनुभव, न किसी प्रतिष्ठित मीडिया संस्थान में कार्य का अनुभव प्रमाण पत्र बस ठेका लो पैसा लगाओ और पत्रकार बन जाओ
न्यूज़ पोर्टल को सूचिबद्ध करने के लिए सूचना विभाग का टेंडर निकला हुआ है….जिसके मानको के अनुसार कम से कम 3 हजार से 30 हजार तक विजिटर होने अनिवार्य है
लेकिन इस तरह के मैसेज पूरी मीडिया मार्किट मे घूम रहे है ……
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नमस्कार, सर 🙏
आपको सूचित करना चाहता हूँ उत्तराखंड सूचना विभाग में वेबसाइट/न्यूज़ पोर्टल प्रमोशन और एम्पैनलमेंट
के लिए मंथली Google Analytics ट्रैफ़िक को आपने न्यूज़ पोर्टल पर ऑप्टिमाइज़ करें।
हम आपको 600 रुपये/प्रति माह में 50,000 से ऊपर विज़िटर देते हैं.
सर अगर आप अगर इच्छुक हों तो मुझे मैसेज कर दीजियेगा।
इस तरह गूगल एनालिटिक से खिलवाड़ करके सूचना विभाग की आँखों मे धूल झोंकि जा रही है ….. एक ओर जहाँ मान्यता प्राप्त करने के लिए सूचना विभाग की शर्त होती है की पत्रकार को पूर्णतः श्रमजीवी होना अनिवार्य है, तो वही दूसरी और ऐसे टेंडर निकालकर सूचना विभाग पत्रकारों को ठेकेदार बना रहा है!
सूचना विभाग में ही कार्यरत कई अधिकारियों के परिजनों और परचितों के नाम से सकड़ों की संख्या में पोर्टल चल रहे है जो पिछली टेंडर प्रक्रिया में भी सूचीबद्ध थे और इस बार और ज्यादा संख्या में सूचीबद्ध होने के लिए तैयार बैठे है इससे ये काहवत चरितार्थ होती है कि अंधी पिस री कुत्ते खा रहे ! आपको बता दे की वास्तव में सूचना विभाग ने कई पत्रकारों को ठेकेदार बना दिया है आप मात्र 2 हजार रुपए/प्रति माह में अपने एक पोर्टल पर बिना घर से बाहर निकले महीने भर कि खबर डलवा सकते है और मात्र 600 रुपए में 50 हजार प्रति/माह का फर्जी ट्रेफिक अपने पोर्टल पर दर्शा सकते हैं।
जबकि वास्तविक पत्रकार आज भी सच बोलने से और सच लिखने से घबराता नहीं है
राज्य की सरकार की ब्रांडिंग का सबसे नाजुक जिम्मा संभालता है सूचना विभाग, यानी उसके कंधे पर होती है प्रदेश के मुखिया और उसके मंत्रिमंडल , सरकारी योजनाओं और सभी विभागों की शानदार उपलब्धियों को जनता तक पहुँचाना जिसमें सबसे अहम किरदार होता है मीडिया का फिर वो चाहे प्रिंट हो इलेक्ट्रॉनिक हो या फिर आजकल की बेलगाम हांफती दौड़ती सोशल मीडिया की भीड़ हो … यानी किरदार अहम और ख़ास होता है पत्रकार का उसके संस्थान का लेकिन आजकल क्या मीडिया के ये स्वघोषित पत्रकार और पोर्टल्स संचालक क्या वाकई कलमकार , पत्रकार हैं है?
सूचना विभाग द्वारा इस तरह के न्यूज़ पोर्टलों के टेंडर पर मजबूत नियमावली न बनाना कभी कभी सरकार और विभाग की गले की फांस बन जाता है और फिर स्थिति ऐसी बन जाती है कि इन बेलगाम पोर्टल संचालकों के लिए अलग से सूचना विभाग को सरकार का पक्ष रखने के लिए ट्रोलर्स टीम का भी टेंडर करना पड़ता है।
क्या सूचना विभाग को ऐसी टेंडर प्रक्रिया कि आवश्यकता है कि सरकार के अच्छे कामों को ऐसे स्वघोषित ठेकेदार पत्रकारों के जरिये आम जन तक पहुंचाना पड़े।
खोजी नारद की अगली ख़बर में पढ़ें कि कौन-कौन कितने पानी में है।