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रोज करें प्राणायाम,,,शारीरिक,,,मानसिक परेशानियां होंगी दूर,,, बेहतर होगी.....?

See from spiritual point of view, Pranayama will improve your physical and mental health.

प्राणायाम से पूर्व कम से कम तीन बार ‘ओ३म्’ का लम्बा उच्चारण करना, प्राणायाम का अभ्यास करने के लिए गायत्री, महामृत्युंजय या अन्य वैदिक मंत्रों का विधिपूर्वक उच्चारण या जप करना आध्यात्मिक दृष्टि से लाभप्रद है।

प्राणायाम करते समय मुख, आँख, नाक आदि अंगों पर किसी प्रकार तनाव न लाकर सहजावस्था में रखना चाहिए। प्राणायाम के अभ्यास-काल में ग्रीवा, मेरुदण्ड, वक्ष, कटि को सदा सीधा रखकर बैठें, तभी अभ्यास यथाविधि तथा फलप्रद होगा।

प्राणायाम का अभ्यास धीरे-धीरे बिना किसी उतावली के, धैर्य के साथ, सावधानी से करना चाहिए।जिस प्रकार सिंह, हाथी और बाघ धीरे-धीरे वश में हो जाते हैं। इसी प्रकार वायु को वश में किया जाता है अन्यथा वह साधक को मार डालता है।

जैसे सिंह, हाथी या बाघ जैसे हिंसक जंगली प्राणियों को बहुत धीरे-धीरे अति सावधानी से वश में किया जाता है। उतावलापन करने से ये प्राणी हमला कर हानि भी पहुँचा सकते हैं।

इसी प्रकार प्राणायाम को धीरे-धीरे बढ़ाते हुए प्राण पर नियंत्रण करना चाहिए अन्यथा साधक को नुकसान हो सकता है।

जो ठीक से खाता है, ठीक से खेलता है और ठीक से चलता है, उसके कार्यों में। धर्मात्मा आत्म-साक्षात्कार का योग दुखों का नाश करने वाला है।

जिस व्यक्ति का आहार-विहार ठीक है, जिस व्यक्ति की सांसारिक कायों के करने की निश्चित दिनचर्या है और जिस व्यक्ति के सोने-जागने का समय भी निश्चित है, ऐसा व्यक्ति ही योग कर सकता है, तथा उसका योगानुष्ठान दुःखों का नाशक बनता है, अन्यों का नहीं।

प्राणायाम शौचादि नित्यकर्म से निवृत्त होकर करना चाहिए। यदि किसी को कब्ज़ रहता हो तो रात्रि में भोजन के उपरांत आंवला एवं घृतकुमारी (ऐलोवेरा) का जूस पीना चाहिए। इससे कब्त नहीं होगा।

प्राणायाम स्नान करके करते हैं तो अधिक आनन्द, प्रसन्नता व पवित्रता का अनुभव होता है। यदि प्राणायाम के बाद स्नान करना हो तो 10-15 मिनट बाद स्नान कर सकते हैं। साथ ही प्राणायाम करने के 10-15 मिनट बाद प्रातः जूस, अंकुरित अन्न या अन्य खाद्य पदार्थ ले सकते हैं।

प्राणायाम के तुरंत बाद चाय, कॉफी या अन्य मादक, उत्तेजक या नशील पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए। प्राणायाम के बाद दूध, दही, छाछ, लस्सी, फलों का जूस, हरी सब्जियों का जूस, पपीता, सेब, अमरूद या चेरी आदि फलों का सेवन आरोग्यदायक है।

अंकुरित अन्न, दलिया या अन्य स्थानीय आहार जो पचने में भारी न हो. प्राणायाम के बाद लेना चाहिए। प्रथम बात तो परांठे, हलवा या अन्य नाश्ते से बचें तो ही श्रेष्ठ है और यदि परांठा आदि खाने का बहुत दिल करे तो स्वस्थ व्यक्ति सप्ताह में एक या अधिकतम दो बार ही भारी नाश्ता ले।

रोगी व्यक्ति को भारी भोजन से परहेज़ करना चाहिए। प्रतिदिन एक जैसा नाश्ता उचित नहीं। शरीर के सम्पूर्ण पोषण के लिए सप्ताह भर के क्रम में नाश्ते के लिए किसी दिन अंकुरित अन्न तो कभी दलिया, कभी दूध, कभी केवल फल, कभी केवल जूस या दही, छाल आदि लेना चाहिए।

इससे शरीर को सम्पूर्ण पोषण भी मिलेगा और आपको नाश्ते में बोरियत नहीं लगेगी। परिवर्तन जीवन का सिद्धान्त है और हमारी चाहत भी।

योगाभ्यासी का भोजन सात्विक होना चाहिए। हरी सब्जियों का प्रयोग अधिक मात्रा में करें, अन्न कम लें, दालें छिलके सहित प्रयोग करें। ऋतमुरु मितभुक् व हितभुक् बनें। शाकाहार ही श्रेष्ठ, सम्पूर्ण व वैज्ञानिक भोजन है।

सुबह उठकर पानी पीना, ठंडे पानी से आंखों को साफ करना, पेट व नेत्रों के लिए अत्यंत हितकर है।नाश्ते व दोपहर के भोजन के बीच एक बार तथा दोपहर व सायंकाल के भोजन के बीच में थोड़ा-थोड़ा करके जल अवश्य ही पीना चाहिए।

इससे हम पाचन तन्त्र, मूत्रसंस्थान, मोटापा व कोलेस्ट्रॉल आदि बहुत से रोगों से बच जाते हैं।गर्भवती महिलाओं को कपालभाति, बाह्य प्राणायाम और अग्निसार क्रिया को छोड़कर बाकी प्राणायाम और बटरफ्लाई आदि सूक्ष्म व्यायाम धीरे-धीरे करने चाहिए।

माहवारी के समय माताओं को बाह्य प्राणायाम व कठिन आसन नहीं करने चाहिए। सूक्ष्म व्यायाम व बाह्य प्राणायाम को छोड़कर शेष सभी प्राणायाम माहवारी के समय भी नियमित रूप से अवश्य करें।

गर्भवती महिलाओं को सर्वांगासन, हलासन आदि कठिन आसनों का अभ्यास नहीं करना चाहिए।

उच्च रक्तचाप व हृदयरोग से पीड़ित व्यक्ति को सभी प्राणायामों का अभ्यास धीरे-धीरे अवश्य करना चाहिए। इनके लिए प्राणायाम ही एक- मात्र उपचार है।

बस सावधानी इतनी ही है कि भस्त्रिका, कपालभाति व अनुलोम-विलोम आदि प्राणायाम धीरे-धीरे करें, अधिक बल का प्रयोग न करें।

कुछ लोग अज्ञानवश यह भ्रम फैलाते हैं कि उच्च रक्तचाप व हृदयरोग से पीड़ित व्यक्ति प्राणायाम न करें। यह नितान्त अज्ञान है।

किसी भी ऑपरेशन के बाद कपालभाति प्राणायाम 4 से 6 माह बाद करना चाहिए। हृदयरोग में बाइपास या एञ्जियोप्लास्टी के एक सप्ताह बाद ही अनुलोम-विलोम, भ्रामरी व उद्‌गीथ प्राणायाम, सूक्ष्म व्यायाम व शवासन का अभ्यास अवश्य करना चाहिए। इससे उनको शीघ्र लाभ मिलेगा।

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