उत्तराखण्ड

देहरादून: पूर्व स्पीकर प्रेमचंद अग्रवाल ने विधानसभा में छोटे पदों पर तोमन मानी नियुक्तियां, चहेते शोध अधिकारी को बनाया विस का सचिव.

यहां बता दें कि चंद्रशेखर स्व. दीनदयाल उपाध्याय के पोते हैं और वे जज, एडिशनल एडवोकेट जनरल (एएजी) समेत विधि विभाग के अहम पदों पर रहे हैं।

उपाध्याय ने स्पीकर को एक पत्र 22 अप्रैल को दिया है। इसमें कहा गया है कि उन्होंने विस में प्रमुख सचिव पद के लिए 22 जून-2019 को आवेदन किया था।

पूर्व स्पीकर प्रेमचंद अग्रवाल उन्हें बुलाकर सात बैठकें कीं। दो बैठकों में प्रमुख सचिव न्याय और विधायी भी मौजूद रहे थे। इस दौरान उन्होंने पूर्व स्पीकर की तमाम आपत्तियों, शंकाओं का लिखित में विधिपूर्वक समाधान किया।

अहम बात यह रही कि इन बैठकों में स्पीकर ने तत्कालीन शोध अधिकारी सिंघल को भी शामिल किया गया और इन्हीं के माध्यम से उनके आवेदन पर आपत्तियां लगवाईं गईं। बाद में सिंघल को ही अनियमित तरीके से सचिव बना दिया गया।

सचिव की नियुक्ति गोपनीय और अवैधानिक तौर पर की गई है। उन्हें अनिवार्य अर्हताओं में भी शिथिलीकरण का लाभ दिया गया। ये नियम विरुद्ध है। उन्हें बिना किसी परीक्षा या फिर साक्षात्कार के ही मूलतः शोध अधिकारी के पद पर मानवीय और सहानुभूति के आधार पर नियुक्त किया गया था।

इन्हें सचिव बनाने के लिए पहले इनका पदनाम बदला गया। पदनाम बदलते वक्त वित्त एवं कार्मिक विभाग ने शर्त लगाई थी कि शोध एवं संदर्भ शाखा के पद धारकों को अन्य संवर्गों में शामिल नहीं किया जाएगा। लेकिन सिंघल के मामले में यह शर्त तोड़ दी गई।

पत्र में कहा गया है कि विस सचिव की नियुक्ति में गोपन, वित्त, कार्मिक, न्याय एवं संसदीय कार्य विभाग की राय भी नहीं ली गई। यह रूल्स ऑफ बिजनेस के खिलाफ है।

संविधान की धारा 187 (3) के अनुसार राज्यपाल की सहमति जरूरी लिखा गया है। इसका तात्पर्य कैबिनेट की सहमति होता है।

लेकिन इस मामले में पूर्व स्पीकर ने केवल अपने ही हस्ताक्षरों से नियुक्ति कर दी। संविधान किसी भी उच्च पदधारक को शासकीय संवर्ग में स्वःविवेक ने नियुक्ति का अधिकार नहीं देता है।

उपाध्याय ने अपने पत्र में लिखा है कि सचिव ने अपना वेतनमान और पदोन्नति वेतनमान खुद ही तय करके आदेश जारी कर दिया।

सचिव पद पर तैनात सिंघल के शैक्षिक प्रमाणपत्रों की जांच के साथ ही मूलतः शोध अधिकारी के पद पर नियुक्ति की प्रक्रिया की जांच की मांग भी की गई।

 

 

 

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