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"पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के पाकिस्तान वाले बयान पर कैबिनेट मंत्री जोशी ने किया पलटवार, कहा- 'उन्हें इलाज की जरूरत है'

"Ganesh Joshi's reply: 'Harish Rawat needs treatment'"

उत्तराखंड : सियासी घमासान में हरीश रावत के विवादित बयान के साथ, उत्तराखंड की राजनीति में उठ रहे बड़े सवाल।
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत द्वारा किए गए विवादास्पद बयानों ने उत्तराखंड की सियासी मंच पर तहलका मचा दिया है। उनके बयानों का प्रतिक्रियाएं उत्तराखंड राज्य में हलचल मचा रही हैं और इसके चलते कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी ने भी उन्हें आपत्तिजनक बताया।

विवाद की शुरुआत हुई थी, जब हरीश रावत ने हरिद्वार में कांग्रेस के कार्यक्रम के दौरान भाजपा को पाकिस्तान बताकर मोहम्मद अली जिन्ना को सावरकर का मानस पुत्र बताया था।

इसके बाद गणेश जोशी ने पलटवार किया और कहा कि हरीश रावत अपना मानसिक संतुलन खो चुके हैं और उन्हें इलाज की जरूरत है। वे सिर्फ सुर्खियों में बने रहने के लिए अनाप-शनाप बयान बाजी कर रहे हैं।

इस मामले में जब गणेश जोशी ने हरीश रावत को गंगा की शरण में आकर प्रायश्चित करने की सलाह दी। देर शाम हरिद्वार के कनखल स्थित जगत गुरु आश्रम पहुंचे मंत्री गणेश जोशी ने शंकराचार्य राज राजेश्वराश्र से मुलाकात की।

पूर्व सीएम हरदा के बयान की खास चर्चा हो रही है, क्योंकि वे उत्तराखंड की सीएम पद की चुनावी योजनाओं में हैं। उनके इस विवादास्पद बयान से नहीं सिर्फ उनकी बुरी छवि पर दाग लगा है बल्कि उत्तराखंड की सियासी मंच पर भी इसका असर पड़ा है।

गणेश जोशी के इस पलटवार ने सियासी दलों में भी बवाल मचा दिया है। विपक्षी दलों ने हरीश रावत की इस बात को लेकर उन्हें घेरा है कि उनके इस बयान से खुलकर साफ हो रहा है कि भाजपा उत्तराखंड में धार्मिक और सांस्कृतिक विषयों का उपयोग चुनावी फायदे के लिए कर रही है।

हरीश रावत के बयानों को लेकर उत्तराखंड में लोगों के बीच में खींचतान भी देखी जा रही है। कुछ लोग तो उन्हें नेतृत्व की भूमिका में असमर्थ दिखाने लगे हैं, जबकि कुछ उन्हें तानाशाही की नकल करने वाले मुख्यमंत्री के रूप में देख रहे हैं।

राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि इस बयान ने उत्तराखंड में सियासी समीकरण में नई दशा दे दी है। उनका कहना है कि इससे विपक्षी दलों के हाथ मजबूत हो जाएंगे और भाजपा को चुनावी मैदान में नुकसान हो सकता है।

हरीश रावत के बयानों के बाद से उत्तराखंड में उनकी बुरी छवि तय हो गई है और इससे उनके प्रशंसकों में भी निराशा दिखाई दे रही है।

अब देखना होगा कि इस विवाद के बाद कैसे बदलती है उत्तराखंड की सियासी दस्तकहैरी और कैसे इसका असर पड़ता है उत्तराखंड के नागरिकों पर। चुनावों के नजदीक यहां की सियासी माहौल और भी गरम होने की संभावना है।

 

 

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