यह ध्रुवीकरण का वक्त है और कोई एक कह रहा है कि हमारी अर्थव्यवस्था डांवाडोल है जबकि अन्य चिल्ला कर कह रहे हैं कि यह सफलता की ओर अग्रसर है।
सच्चाई इन दोनों बातों में कहीं छिपी बैठी है। यह सत्य है कि भारतीय रुपया आज गिरावट की ओर चल रहा है तथा मुद्रास्फीति 7.41 प्रतिशत की उच्चतम दर पर है।
मगर यह तो वैश्विक समस्याएं हैं। आभासी तौर पर देखा जाए तो विश्व की सभी मुद्राएं अमरीकी डालर के आगे धराशायी हो रही हैं और मुद्रास्फीति एक वैश्विक चिंता का विषय बन चुकी है।
भारत विशेष तौर पर रोजगार सृजन के मामले में बेहतर नहीं कर पा रहा।
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भारत की बेरोजगारी दर ऊंची है।
अक्तूबर में यह 7.8 प्रतिशत की दर पर खड़ी थी।हालांकि जो असली ङ्क्षचता करने वाली बात है वह यह है कि देश में युवा लोगों के मामले में बेरोजगारी बहुत ज्यादा है।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आई.एल.ओ.) के आंकड़ों जिन्हें कि विश्व बैंक द्वारा पेश किया गया है, उसके अनुसार भारत की युवा बेरोजगारी की समस्या 15 से लेकर 24 वर्ष से बीच के लोगों की है, जो कार्य की तलाश में है।
जो युवा किसी भी तरह का कार्य नहीं कर पा रहे उनकी दर 28.3 प्रतिशत की है।
इस समस्या को लेकर भारत पश्चिम एशियाई राष्ट्रों में शामिल है।
यदि ईरान की बात करें तो वहां पर यह दर 27.2 प्रतिशत, मिस्र में 24.3 तथा सीरिया में यह दर 26.2 प्रतिशत की है।
इंडोनेशिया में यह दर बेहद चिंताजनक है वहां पर यह दर 16 प्रतिशत है।
जबकि मलेशिया में 15.6 तथा बंगलादेश में मात्र 14.7 प्रतिशत है।
मिश्रित वृद्धि कहानी : भारत की वृद्धि कहानी और मिश्रित है।
2021-22 में देश की सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) वृद्धि दर 8.7 प्रतिशत की थी जोकि विश्व में ऊंची दर मानी गई।
2020-21 में भारत की वृद्धि दर माइनस 6.6 प्रतिशत थी जिसने देश को वैश्विक वृद्धि चार्ट के नीचे रखा।
2022-23 के लिए अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष (आई.एम.एफ.) ने भारत की वृद्धि दर की भविष्यवाणी 6.1 प्रतिशत आंकी।
इसको लेकर 2 प्रकार की विशेष ङ्क्षचताएं थीं।
पहली यह कि भारत की ज्यादातर वृद्धि दर शीर्ष पर घट रही थी जिसमें लाभ का हिस्सा विषम और बेरोजगारी बहुत ज्यादा थी।
सामान्यत: आबादी का ज्यादातर हिस्सा वास्तव में नकारात्मक वृद्धि को देख रहा था।