“केदारनाथ” में क्यों है कांटे की टक्कर : केदारनाथ उपचुनाव को लेकर उत्तराखंड में सियासी पारा हाई है. अयोध्या और बद्रीनाथ में हार के बाद बीजेपी अब केदारनाथ सीट को किसी भी हालत में गंवाना नही चाहती जिसके लिए बीजेपी ऐड़ी चोटी का जोर लगा रही है. खास बात ये है कि पार्टी ने परंपरा से हटते हुए दिवंगत विधायक शैला रानी रावत के परिवार से किसी को टिकट ना देकर, दो बार की पूर्व विधायक आशा नौटियाल को चुनाव में उतारा है. बीजेपी ने पूर्व विधायक आशा नौटियाल को टिकट देकर ये साफ कर दिया कि वो किसी भी हालत में केदारनाथ उपचुनाव को जीतना चाहती है.दरअसल केदारनाथ सीट पर बीजेपी हो या कांग्रेस दोनों ही पार्टियों ने पुराने चेहरों पर दांव लगाया है. कांग्रेस केदारनाथ सीट को हर हाल में जीतना चाहती है. इसके लिए उसने ‘केदारनाथ बचाओ यात्रा’ निकालकर जनता को अपनी तरफ करने की कोशिश भी की. तो वहीं बीजेपी ने भी अपने स्तर पर केदारनाथ के लिए कई तरह की घोषणाएं की है. खुद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी केदारनाथ चुनाव के लिए गंभीर दिख रहे है.ऐसे में कहा जा सकता है कि केदारनाथ सीट जीतना बीजेपी के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन चुका है. हालांकि केदारनाथ सीट पर कौन सी पार्टी जीतेगी इसका फैसला केदारनाथ के 90 हजार 540 मतदाता करेंगे. जिसमें पुरुष मतदाता- 44 हजार 765, महिला मतदाता-75 हजार 775, सर्विस वोटर- 2 हजार 24 उपचुनाव में केदारनाथ से जुड़े कई मुद्दे है।
जिन पर कांग्रेस सरकार को घेरने की तैयारी में है. इसमें केदारनाथ पीतल सोना विवाद, दिल्ली केदारनाथ मंदिर मामला, चारधाम यात्रा अनियमितता,केदारनाथ पुनर्निर्माण कार्य जैसे कई मुद्दे हैं. वही, बात करें बीजेपी की तो बीजेपी केदारनाथ उपचुनाव पीएम मोदी के सहारे जीतने की कोशिश में हैं.बीजेपी के कई नेता ये बार बार कह चुके है कि केदारनाथ से पीएम मोदी का खासा लगाव है.इतना ही नहीं पार्टी उपचुनाव के प्रचार में लगातार केंद्र के कामों का सहारा लेकर जनता का दिल जीतने की कोशिश कर रही है।
केदारनाथ सीट का क्या रहा है इतिहास
2002 में बीजेपी की आशा नौटियाल ने कांग्रेस की शैलारानी रावत को हराया और केदारनाथ की पहली महिला विधायक बनी. वहीं, 2007 में एक बार फिर बीजेपी की आशा नौटियाल विधायक बनी इस बार उन्होने कांग्रेस के कुंवर सिंह नेगी को हराया. 2012 में कांग्रेस ने शैला रानी रावत पर दांव खेला और उन्होंने आशा नौटियाल का विजय रथ रोककर कांग्रेस को जीत दिलाई. 2016 में कांग्रेस में भारी बगावत हुई और शैलारानी रावत ने बीजेपी का दामन थाम लिया.2017 के चुनाव में बीजेपी ने आशा नौटियाल का टिकट काटकर शैलारानी को अपना प्रत्याशी बनाया. आशा नौटियाल निर्दलीय लड़ी और इसका फायदा कांग्रेस प्रत्याशी मनोज रावत को पहुंचा।
2017 में मोदी लहर के बावजूद मनोज रावत कांग्रेस को इस सीट से जीत दिलाने में कामयाब रहे. उन्होने निर्दलीय कुलदीप रावत को करीबी अतंर मात दी. 2022 में बीजेपी ने फिर से शैला रानी रावत को उम्मीदवार बनाया. उन्होने निर्दलीय कुलदीप रावत को हराकर बीजेपी को जीत दिलाई. हालांकि इस साल जुलाई में केदारनाथ सीट पर बीजेपी की विधायक शैला रानी रावत के निधन से ये सीट खाली है. जिसके बाद अब यहां उप चुनाव कराए जा रहे है. जिसे बीजेपी किसी भी हाल में जीतना चाहती है. ये तो जगजाहिर है कि बीजेपी हमेशा से ही हिंदुत्व के एजेंडे पर चुनाव लड़ती आई है. लेकिन पिछले कुछ चुनावों में धार्मिक सीट पर मिली हार के बाद विपक्ष की ओर से बीजेपी पर लगातार हमला किया जा रहा है।
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याद कीजिए लोकसभा चुनाव में बीजेपी अयोध्या की फैजाबाद सीट हार गई थी. इसके बाद हुए उत्तराखंड के बद्रीनाथ विधानसभा सीट के उपचुनाव में भी बीजेपी के हाथ हार लगी. अयोध्या में जहां समाजवादी पार्टी तो बद्रीनाथ में कांग्रेस ने बाजी मारी. हिंदू राजनीति के केंद्र में अयोध्या और बद्रीनाथ दोनों के खासा मायने है.ऐसे में जब दोनों ही केंद्र बीजेपी से दूर हो गए तो विपक्ष की ओर से हमला किया जाना तो लाजमी था. अब केदारनाथ सीट पर हो रहे उपचुनाव पर पूरे देश की नजर टिकी हुई है. अयोध्या, बद्रीनाथ को गंवाने के बाद बीजेपी इस चुनाव में जी जान लगा रही है. अब ये देखने वाली बात होगी कि क्या एक बार फिर आध्यात्मिक सीट पर बीजेपी को हार का मुंह देखना पड़ेगा या फिर केदारनाथ की जीत के साथ ही बीजेपी का खोया हुआ वर्चस्व लौटेगा।