उत्तर प्रदेश : गोरखपुर के इस अस्पताल में मुर्दे का इलाज किया जा रहा था। ताकि, तीमारदारों से ज्यादा से ज्यादा पैसा ऐंठे जा सके।
वेंटिलेटर पर लिटाकर मृत मरीज का इलाज किए जाने के बाद अस्पातल प्रशासन ने पीड़ित परिवार को लंबा-चौड़ा बि थमा दिया।
अस्पताल की इस धांधली पर जिला प्रशासन ने एक्शन लिया है। अस्पताल को सील करते हुए संचालक समेत 8 लोगों को अरेस्ट किया गया है।
यूपी के गोरखपुर में मेडिकल माफियाओं के बड़े गैंग पर शिकंजा कसा गया है। मामले में एक प्राइवेट अस्पताल के चिकित्सक, संचालक समेत कुल 8 लोगों को अरेस्ट किया गया है।
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ये सभी सरकारी अस्पतालों में आने वाले मरीजों को झांसे में लेकर प्राइवेट अस्पताल में ले जाकर उनसे मोटी रकम ऐंठते थे।
हैरत की बात ये है कि इस अस्पताल में देर रात पड़े छापे के दौरान आईसीयू में लाश का भी इलाज किया जा रहा था।
इसकी एवज में तीमारदारों से रुपये ऐंठे जा रहे थे। मामले में मृतक मरीज शिव बालक प्रसाद के बेटे ने दोषियों पर सख्त एक्शन की मांग की है। उसने कहा कि हमें लगा कि पिता जी जिंदा हैं, लेकिन डॉक्टर उनके मरने के बाद भी इलाज का ढोंग करते रहे।
अस्पताल संचालक समेत 8 लोग अरेस्ट
गोरखपुर के डीएम कृष्णा करुणेश, एसएसपी डा. गौरव ग्रोवर और एसपी सिटी कृष्ण कुमार बिश्नोई की मौजूदगी में 8 आरोपियों- ईशू अस्पताल के संचालक, चिकित्सक, प्रबंधक, एंबुलेस चालक और अन्य आरोपियों को पुलिस लाइंस सभागार में पेश किया गया।
इस दौरान एसएसपी ने बताया कि जिला प्रशासन, स्वास्थ्य विभाग और पुलिस के ज्वाइंट ऑपरेशन में 8 मेडिकल माफियाओं को अरेस्ट किया गया है।
ये लोग बीआरडी मेडिकल कॉलेज में आने वाले आसपास के ग्रामीण क्षे और बिहार के परेशानहाल मरीज और तीमारदारों को चिकित्सक और मेडिकल स्टॉफ बनकर झांसे में लेते फिर प्राइवेट अस्पताल में भर्ती कराकर इलाज करवाने के नाम पर पैसे ऐंठते।
एसएसपी ने बताया कि इसकी जानकारी मिलने के बाद रामगढ़ताल थाना क्षेत्र के पैडलेगंज- रुस्तमपुर रोड स्थित ईशू हॉस्पिटल पर जिला प्रशासन, पुलिस और स्वास्थ्य विभाग की टीम ने ज्वाइंट छापेमारी की।
इसमें वहां आईसीयू में एक ऐसे मरीज को भी पाया गया, जिसकी पहले ही मौत हो चुकी थी। वहां पर उसे इलाज के नाम पर मोटी रकम ऐंठने के लिए भर्ती किया गया था।
मृत मरीज का किया जा रहा था इलाज
बकौल एसएसपी- जांच के दौरान अस्पताल म तीन मरीज भर्ती पाए गए। अस्पताल में कोई भी चिकित्सक मौजूद नहीं मिले। वहां पर मात्र पैरामेडिकल स्टाफ उपस्थित था, जिनकी शैक्षिक योग्यता डिप्लोमा इन फॉर्मेसी है। पैरामेडिकल स्टाफ द्वारा बताया गया कि ये अस्पताल रेनू पत्नी नितिन यादव द्वारा संचालित किया जाता है। अस्पताल डा. रणंजय प्रताप सिंह के नाम से पंजीकृत है।
भर्ती मरीजों के तीमारदारों ने जानकारी दी कि ये तीनों मरीज पहले बीआरडी मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराने के लिए ले गए थे। जहां पर आरोपियों ने मेडिकल कॉलेज में मरीजों की उचित स्वास्थ्य सुविधाओं के नहीं होने की बात कहकर उन्हें विश्वास में ले लिया और फिर सबही को प्राइवेट अस्पताल में भर्ती करा दिया।
इन मरीजों को ईशू हॉस्पिटल (रुस्तमपुर) में अच्छी व्यवस्था का झांसा देकर निजी एम्बुलेंस से लाकर यहां भर्ती कराया गया था। जहां इलाज के नाम पर तीमारदारों से लाखों रुपए जमा करा लिए गए।
लेकिन फिर भी कोई डॉक्टर मरीज को ढंग से अटेंड नहीं करने आता था। जिसपर मरीज शिव बालक प्रसाद की हालत बिगड़ती जा रही थी। परिजन बार-बार डॉक्टर को बुलाने की बात कहते रहे।
हॉस्पिटल संचालक, रेनू और उसके पति नितिन और नितिन के भाई अमन खुद ही मरीज को देख रहे थे। आखिर में डॉक्टर और चिकित्सीय सुविधायें उपलब्ध नहीं होने के कारण मरीज की मृत्यु हो गई।
इसके बाद भी निजी अस्पताल के संचालक नितिन और अमन द्वारा मृतक के मुंह में ऑक्सीजन मास्क लगाकर इलाज का नाटक किया जा रहा था। दवा और इंजेक्शन के नाम पर धोखे से रुपए ऐंठे जा रहे थे।
मृतक मरीज के बेटे ने क्या बताया?
देवरिया निवासी मृतक मरीज के बेटे रामईश्वर ने बताया कि अचानक पिता जी को चक्कर आया और वह गिर गए। उन्हें हम लोग सदर अस्पताल ले गए।
वहां पर एक घंटा इलाज चला और उसके बाद रेफर कर दिया। जिसपर उन्हें सरकारी एंबुलेंस से बीआरडी मेडिकल कॉलेज ले आए।
यहां जैसे ही पिता को व्हीलचेयर से उतारा तो प्राइवेट एंबुलेंस चलाने वाला एक व्यक्ति मिला।
उसने पर्चा वगैरह देखा तो बोला कि यहां पर जगह खाली नहीं है। आप गोरखनाथ अस्पताल जाइए।
फिर हम लोग उसकी प्राइवेट एंबुलेंस से गोरखनाथ गए तो वहां पर भी एडमिट नहीं किया। कहा कि फातिमा अस्पताल में लेकर जाओ।
इसपर प्राइवेट एंबुलेंस वाला बोला कि वहां भी डॉक्टर नहीं मिलेगा।
चलो एक प्राइवेट हॉस्पिटल में लेकर चलते हैं अच्छा इलाज होगा।
24 घंटा डॉक्टर मिलेगा। एंबुलेंस चालक की बात मानकर तीमारदार मरीज को लेकर ईशू अस्पताल चले गए। जहां इलाज के नाम लाखों रुपये ऐंठ लिए। मौत के बाद भी इलाज करने का नाटक करते रहे।
मृतक के बेटे के रामईश्वर मुताबिक, पहले अस्पताल स्टाफ ने 5000 रुपये लिए, फिर 20 हजार, बाद में 50 हजार तक के बिल बनाए।
हम लोगों को नहीं बताया गया कि पिता जी मर चुके हैं। उन्हें ऑक्सीजन सपोर्ट, वेंटीलेटर पर रखा गया था। जब छापा पड़ा तो पता चला कि हमारे पिता मर चुके हैं। बावजूद इसके उनका इलाज किया जा रहा है।
रामईश्वर ने आगे कहा कि जो होना था वह तो हो गया। हम लोग क्या कर सकते हैं। लेकिन अब दोषियों को कड़ी सजा मिलनी चाहिए। हम बस यही चाहते हैं। वहां पर दो-तीन और मरीज थे, उनसे भी कई लाख रूपये लेकर इलाज किया गया था।