देश के अनसुलझे केस हों , बलात्कार हत्या या कोई उलझा हुआ अपराध , पुलिस आखिर में आरोपी का नार्को टेस्ट कराने को ही अंतिम विकल्प मानती है जहाँ उसको सच का पता चलता है। ताज़ा मामला कोलकाता में डॉक्टर की रेप और हत्या मामले में भी नार्को का ज़िक्र सामने आया था। लेकिन आखिर क्या है नार्को टेस्ट, कैसे और कब होता है, क्यों इस टेस्ट में सच उगल देते हैं अपराधी? आइए आज आपको बताते हैं।
क्या होता है नार्को टेस्ट?
नार्को टेस्ट (Narco Test) किसी खूंखार अपराधी से सच उगलवाने के लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रिया है। इसमें अपराधी को ‘ट्रुथ सीरम’ नाम से आने वाली साइकोएक्टिव दवा इंजेक्शन के रूप में दी जाती है। इसमें सोडियम पेंटोथोल, स्कोपोलामाइन और सोडियम अमाइटल जैसी दवाएं होती हैं। ये दवा खून में पहुंचते ही वो शख्स को अर्धचेतना में पहुंच देती है। इसके जरिए किसी के भी नर्वस सिस्टम में घुसकर उसकी हिचक कम कर दी जाती है, जिसके बाद वो शख्स स्वाभविक रूप से सच बोल देता है।
कब होता है नार्को टेस्ट?
जब अपराधी के खिलाफ जांच एजेंसियों को पर्याप्त सबूत नहीं मिलते तो उस स्थिति में नार्को टेस्ट की सलाह दी जाती है। इसके अलावा, उस स्थिति में भी इसे कराया जाता है, जब सबूत अपराधी को लेकर साफ तस्वीर बयां नहीं कर पाते। ऐसे में कोर्ट इस बात की अनुमति देता है कि नार्को टेस्ट होगा या नहीं। इसके बाद किसी सरकारी अस्पताल में यह टेस्ट किया जाता है।
कौन करता है नार्को टेस्ट?
नार्को टेस्ट फॉरेंसिक एक्सपर्ट, जांच एजेंसियों के अधिकारी, डॉक्टर और मनोवैज्ञानिकों की टीम मिलकर करती है। इस दौरान अर्धचेतन अवस्था में गए शख्स से सवाल-जवाब किए जाते हैं। चूंकि केमिकल की वजह से इंसान की तर्क शक्ति और हिचक कम हो जाती है, इसलिए वो हर एक घटना का सच उगल देता है। बता दें कि इस खुलासे की वीडियो रिकार्डिंग भी की जाती है, ताकि उसे सबूत के तौर पर पेश किया जा सके।
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नार्को टेस्ट के लिए क्या है कानून?
कानून के मुताबिक, जिस शख्स का नार्को टेस्ट किया जाना है, उसकी सहमति बेहद जरूरी होती है। ऐसा इसलिए क्योंकि बिना सहमति के यह टेस्ट किसी की निजी स्वतंत्रता का उल्लंघन हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक, नार्को एनालिसिस, ब्रेन मैपिंग और पालीग्राफ टेस्ट किसी भी व्यक्ति की सहमति के बिना नहीं कराए जा सकते।
नार्को टेस्ट में क्यों सच बोलते हैं अपराधी?
सोडियम पेंटोथोल का इंजेक्शन लगने के बाद व्यक्ति हिप्नोटिक (सम्मोहक) अवस्था में चला जाता है। ऐसे में उसका संकोच पूरी तरह खत्म हो जाता है, जिससे इस बात की संभावना काफी बढ़ जाती है कि वो ज्यादातर सच ही बोलेगा। आमतौर पर सचेत अवस्था में व्यक्ति सच नहीं बोलता और बातों को घुमा-फिरा देता है। लेकिन दवाओं के प्रभाव से जब वो अर्धचेतन अवस्था में होता है, तो सब सच उगल देता है।