पुरुषों के लिए न्याय कहां है ! : दिल्ली हाईकोर्ट ने 21 मई 2025 को एक महत्वपूर्ण टिप्पणी में कहा था कि भारतीय दंड संहिता की धारा 498A पत्नी के साथ क्रूरता का दुरुपयोग समाज में अविश्वास फैलाता है और इससे असली घरेलू हिंसा पीड़ितों की न्याय प्राप्ति कठिन हो जाती है. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि महिला द्वारा लगाए गए आरोप झूठे साबित होते हैं, तो उसे भी कानूनन परिणाम भुगतने होंगे।
अदालतों में भी पुरुषों को बराबर का सुनवाई का अवसर नहीं मिलता. उन्हें केवल दोषी मान लिया जाता है. कई बार निचली अदालतें सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का पालन तक नहीं करती. ऐसे में पुरुषों को इंसाफ मिलना और भी कठिन हो जाता है. इन हालातों से मानसिक रूप से टूटकर कई होनहार युवक आत्महत्या कर चुके हैं, जैसे कि एआई इंजीनियर अतुल सुभाष. यह सिलसिला लगातार बढ़ रहा है. दुर्भाग्य से हमारे कानूनों में पुरुषों पर होने वाली घरेलू हिंसा के लिए कोई सुनवाई या प्रावधान नहीं है।
सामान्य परिस्थिति का विश्लेषण करते हुए पत्नी प्रताड़ित कमाल अहमद ने कहा लिंग पक्षपातपूर्ण कानूनः अधिकतर महिला-संरक्षण कानून एकतरफा बनाए गए हैं, जिनमें पुरुषों के लिए कोई सुरक्षात्मक प्रावधान नहीं है. घरेलू हिंसा कानून सिर्फ महिलाओं के लिए है, जबकि पुरुषों पर हो रही घरेलू हिंसा की सुनवाई का कोई प्रावधान नहीं है।
इसी प्रकार मानसिक स्वास्थ्य और आत्महत्याएं लगातार अपमान, झूठे आरोप, सामाजिक बहिष्कार और आर्थिक शोषण के कारण कई पुरुष आत्महत्या जैसा गंभीर कदम उठाने को मजबूर हो जाते हैं. यह समाज के लिए एक खतरनाक संकेत है.इस दौरान पुरुष आयोग गठित किए जाने की पुरजोर मांग करते हुए प्रताड़ित पुरुषों ने बताया कि 24 अगस्त 2024 को सामाजिक संस्था संकल्प के माध्यम से सरकार को 10 बिंदुओं पर आधारित ज्ञापन सौंपा गया था, जिसमें महिलाओं द्वारा लगाए गए झूठे आरोपों में पुरुषों को निर्दोष पाए जाने पर क्षतिपूर्ति की मांग शामिल रही है।
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इसी तरह वह निरंतर पीड़ित पुरुषों को एकजुट करने से लेकर उनके हक अधिकार के लिए विधिपूर्वक आंदोलन करते हुए आएं हैं. इस दौरान कुल सात बिंदुओं पर शासन प्रशासन का ध्यानाकर्षण कराते हुए महिला कानूनों के दुरुपयोग पर रोक और दंडः झूठे मुकदमे दर्ज करने वाली महिलाओं और एकतरफा जांच करने वाले पुलिस अधिकारियों पर कठोर दंडात्मक कार्रवाई की जाए, झूठे मामलों में पुरुषों के लिए मुआवजा योजना लागू की जाए।
NRI पुरुषों के matrimonial मामलों के लिए विशेष न्यायालय (NRI Matrimonial Court) गठित किया जाए.
वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग और ई-कोर्ट को सभी मामलों में लागू किया जाए,
विशेषकर NRI और वरिष्ठ नागरिक आरोपियों के लिए घरेलू हिंसा कानून को लिंग-निरपेक्ष बनाया जाए, जिससे पुरुष भी कानूनी सुरक्षा पा सकें.
निचली अदालतों को उच्चतम न्यायालय के दिशा-निर्देशों का अनिवार्य पालन सुनिश्चित करने के सख्त निर्देश दिए जाएं.
NOC और पासपोर्ट संबंधी मामलों में न्यायालयों द्वारा अनावश्यक विलंब को रोका जाए की मांग की गई।