उत्तराखण्ड

उत्तराखंड में राज्य आन्दोंलनकारियों की सरकार कर सकती हैं मुराद पूरी:

सरकार इसके लिए अध्यादेश लाने जा रही हैं, और आगामी 10 फरवरी की मंत्रीमंडल की बैठक में इसका प्रस्ताव ला  सकता हैं।

सूत्रों के अनुसार इस महत्वपूर्ण विषय पर विचार करने के लिए गठित वन मंत्री सुबोध उनियाल की अध्यक्षता में गठित मंत्रीमंडलीय उप समिति ने आरक्षण बहाली का निर्णय ले लिया हैं।

उल्लेखनीय हैं कि राज्य में आन्दोलनकारियों को सरकारी नौकरियों में क्षैतिज आरक्षण पर विचार करने के लिए उत्तराखण्ड सरकार ने मंत्री सुबोध उनियाल की अध्यक्षता में मंत्रीमंडलीय उप समिति की थी।

उप समिति बृहस्पतिवार को विधानसभा में बैठक हुई थी और जिसमें सबसे पहले राज्य आन्दोलनकारियों के प्रत्यावेदनों को सुना गया हैं और सूत्रों के अनुसार मंत्रीमंडलीय उप समिति की ओर से आरक्षण बहाली का निर्णय लिया गया हैं
बताया गया हैं की आगामी कैबिनेट में इसका प्रस्ताव आ सकता हैं।

उल्लेखनीय हैं की पूर्ववर्ती एनडी तिवारी सरकार ने वर्ष 2004 में राज्य में आन्दोलनकारियों को विशेष श्रेणी में मानते हुए सरकारी नौकरियों में दस प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण देने का शासनादेश जारी किया था।

इसका लाभ लोक सेवा आयोग के दायरे में आने वाली नौकरियों एवं राज्यधीन सेवाओ में दिया गया हैं।

इसी शासनादेश के आधार पर सैकड़ों आन्दोलनकारियों को सरकारी नौकरियां मिली थी,लेकिन त्रिवेंद्र सरकार के कार्यकाल में उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय ने इस शासनादेश को रद्द कर दिया था।

इधर धामी सरकार ने वर्ष 2022 में इसका विधेयक पारित करके राज्यपाल को भेजा लेकिन राजभवन ने इसे आपत्ति लगाकर लौटा दिया था और वरिष्ठ आन्दोलनकारी रविन्द्र जुगरान के अनुसार इस पर यह आपत्ति लगाई गई थी कि यह सविधान के अनुच्छेद 14 एवं अनुच्छेद 16 का उल्लंघन हैं।

जुगरान ने कहा की क्षैतिज आरक्षण राज्य का विषय हैं सरकारों ने आन्दोलनकारियों को विशष श्रेणी मानते हुए इस आरक्षण को देना जारी रखा जो सविधान सम्मत था।

उत्तराखण्ड में राज्य आन्दोलनकारियों को सरकारी नौकरियों में 10 फीसदी क्षैतिज आरक्षण का लाभ बहाल करने के लिए राज्य की धामी सरकार ने एक बार फिर प्रयास शुरू कर दिए हैं इसी कड़ी में राज्य के मंत्री सुभोध उनियाल की अध्यक्षता में एक उप समिति का गठन कर दिया गया हैं।

यह कमेटी राज्य आन्दोलनकारियों को 10 फीसदी क्षैतिज आरक्षण का लाभ देने के लिए सभी पहलुओं की पड़ताल के बाद अपनी रिपोर्ट मंत्रीमंडल को देगी।

उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय की रोक के बाद राज्य आन्दोलनकारियों को अगस्त 2013 से सरकारी नौकरियों में आरक्षण का लाभ नहीं मिल पा रहा हैं।

मार्च 2018 में उच्च न्यायालय ने आन्दोलनकारियों को मिल रहे आरक्षण का लाभ से सम्बंधित शासनादेश नोटिफिकेशन और सर्कुलर को भी ख़ारिज कर दिया था।

इसके बाद सितंबर 2015 में तत्कालीन हरीश रावत सरकार ने राज्य में आन्दोलनकारियों को आरक्षण का लाभ देने के लिए विधानसभा में विधेयक पारित कर राजभवन को भेजा था लेकिन पीछले सात साल से यह विधेयक भी राजभवन में लंबित पड़ा रहा हैं।

इधर 22 सितंबर 2022 को मौजूदा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की पहल पर इस विधेयक को जरुरी संशोधन करने के लिए राजभवन से वापस मंगाया गया था और सरकार ने विधेयक के संशोधित ड्राफ्ट पर न्याय विभाग का परामर्श भी ले चुकी हैं.

राज्य में मंत्रिमंडल की बैठक में इस ड्राफ्ट पर चर्चा के बाद एक उप समिति गठित करने का निर्णय लिया गया था,  मंत्री सुबोध उनियाल सब कमेटी के अध्यक्ष और डॉ. कैबिनेट मंत्री चंदन रामदास और सौरभ बहुगुणा इसके सदस्य होंगे।

उत्तराखण्ड में लगभग 12 हजार चिन्हित राज्य आन्दोलनकारी हैं, जबकि आन्दोलनकारी कोटे से प्रदेश में लगभग 1700 व्यक्ति सरकारी नौकरियों में हैं।

वर्ष 2004 में एनडी तिवारी सरकार ने सात दिन से अधिक जेल में रहने वाले अथवा घायल आन्दोलनकारियों को जिलाधिकारियों के माध्यम से सीधी नौकरियां दी थी।

वही सात दिन से कम जेल में रहने वाले अथवा चिन्हित आन्दोलनकारियों को 10 फीसदी आरक्षण का लाभ दिया गया था और बाद में डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक सरकार में राज्य आन्दोलनकारियों को पेंसन की सुविधा और बीसी खंडूड़ी के कार्यकाल में आन्दोलनकारियों के आश्रितों को भी आरक्षण का लाभ दिया गया था।

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