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khojinarad HIndi News > उत्तराखण्ड > उत्तरकाशी > उत्तरकाशी धराली आपदा के पीछे के असली कारण
उत्तराखण्ड

उत्तरकाशी धराली आपदा के पीछे के असली कारण

धराली से करीब सात किलोमीटर ऊपर, समुद्र तल से छह हज़ार सात सौ मीटर की ऊंचाई पर स्थित एक ग्लेशियर डिपॉजिट की एक्सक्लूसिव तस्वीरें साझा की.

admin
Last updated: 2025/12/02 at 12:06 PM
admin
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4 Min Read
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Highlights
  • पाँच अगस्त को तेज और उच्च तीव्रता वाली बारिश यानी क्लाउडबर्स्ट हुआ.
  • यह मलबा हिमनदों और नदियों द्वारा जमा की गई परतों से बना था.
  • अगर ये अस्थिर हो जाएं, तो भारी बारिश के दौरान ये भूस्खलन और बाढ का कारण बन सकते हैं, यह हादसा साफ तौर पर दर्शाता है.

उत्तरकाशी धराली आपदा के पीछे के असली कारण :- नमस्कार, आप देख रहे हैं खोजी नारद और आज हम आपको दिखाने जा रहे हैं उत्तरकाशी धराली आपदा के पीछे के असली कारण, जो अब सैटेलाइट इमेज और जियोलॉजिकल रिपोर्ट से सामने आए हैं। पाँच अगस्त को उत्तरकाशी के धराली गांव में आई भयंकर बाढ और मलबे की तबाही के पीछे जो वजह सामने आई है, वह है ग्लेशियर डिपोजिट स्लाइड। यह खुलासा किया है भूटान के PHPA वन प्रोजेक्ट में सेवारत वरिष्ठ भारतीय जियोलॉजिस्ट इमरान खान ने।

उन्होंने धराली से करीब सात किलोमीटर ऊपर, समुद्र तल से छह हज़ार सात सौ मीटर की ऊंचाई पर स्थित एक ग्लेशियर डिपॉजिट की एक्सक्लूसिव तस्वीरें साझा की हैं। इस ऊंचाई पर मौजूद ग्लेशियर मलबे का एक बड़ा हिस्सा अचानक टूटकर नीचे घाटी की ओर गिरा, जिससे तेज रफ्तार से मलबे की लहरें नीचे बहने लगीं।

सैटेलाइट डेटा के मुताबिक, इस मलबे की ऊंचाई लगभग तीन सौ मीटर, और क्षेत्रीय विस्तार करीब एक दशमलव एक दो वर्ग किलोमीटर बताया गया है।

पाँच अगस्त को तेज और उच्च तीव्रता वाली बारिश यानी क्लाउडबर्स्ट हुआ

इससे हुए भारी सतही बहाव और अंदरूनी दबाव ने ग्लेशियर के भीतर मौजूद मिट्टी, पत्थर और बर्फ के असंगठित ढांचे को कमजोर किया और यह ढांचा अचानक टूट गया। मध्यवर्ती खडी ढलान और संकरे नाले की वजह से, मलबे की गति इतनी तेज़ थी कि वह सिर्फ एक मिनट से भी कम समय में धराली गांव तक पहुंच गया।

कोई चेतावनी, कोई रोकने का समय नहीं था। इमरान खान की रिपोर्ट बताती है कि यह मलबा हिमनदों और नदियों द्वारा जमा की गई परतों से बना था, जो काफी पुराना और अस्थिर था जब इस पर जल दबाव बढा, तो यह ढलान से अचानक खिसक गया, जिससे तबाही मच गई। ग्लेशियर जब खिसकते हैं, तो अपने साथ बर्फ, चट्टानें, मिट्टी, बजरी और रेत जैसी सामग्री नीचे लाते हैं, जब वे रुकते हैं या पिघलते हैं, तो यह सारा मलबा वहीं जमा हो जाता है, इन्हीं जमाओं को ग्लेशियल डिपॉजिट कहा जाता है।

अगर ये अस्थिर हो जाएं, तो भारी बारिश के दौरान ये भूस्खलन और बाढ का कारण बन सकते हैं, यह हादसा साफ तौर पर दर्शाता है कि हिमालय के ऊपरी क्षेत्रों में मौजूद ग्लेशियर और मलबे की स्थिति का पुनह वैज्ञानिक मूल्यांकन जरूरी है, खासकर वहां जहां जनसंख्या, तीर्थयात्री या पर्यटक बडी संख्या में आते हैं, वैज्ञानिकों की चेतावनी है कि अगर समय रहते इस तरह के अस्थिर ढांचों की पहचान नहीं की गई, तो भविष्य में भी ऐसी आपदाएं दोहराई जा सकती हैं, फिलहाल धराली में राहत और बचाव कार्य जारी है, लेकिन इस आपदा ने एक बडा सवाल खडा कर दिया है, क्या हम पहाडों की बदलती भूगर्भीय संरचना को गंभीरता से ले रहे हैं? खोजी नारद आपसे अपील करता है सतर्क रहें, और प्रकृति के साथ संतुलन बनाए रखने में योगदान दें।

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