यहां विश्व की 60 प्रतिशत वैक्सीन और 20 प्रतिशत जैनेरिक दवाएं बनती हैं परंतु इनमें मिलावट का धंधा तेजी पकड़ रहा है।
प्राणरक्षक दवाएं भी मिलावटी एवं नकली बनने लगी हैं।
इसी के दृष्टिगत नकली दवाओं के निर्माण पर रोक लगाने के लिए दवा कंपनियों के विरुद्ध चलाए जा रहे विशेष अभियान के अंतर्गत ‘ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया’ ने 20 राज्यों में कई दवा निर्माता कंपनियों के औचक निरीक्षण के बाद 18 कंपनियों के लाइसैंस रद्द करने के अलावा 26 कंपनियों को ‘कारण बताओ नोटिस’ भी जारी किया है।
जिन कंपनियों के विरुद्ध अभियान चलाया जा रहा है उनमें हिमाचल प्रदेश की 70, उत्तराखंड की 45 और मध्य प्रदेश की 23 कंपनियां शामिल हैं।
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हाल ही में अमरीका के ‘सैंटर्स फार डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवैंशन’ (सी.डी.सी.) ने पश्चिम अफ्रीकी देश ‘गांबिया’ में गत वर्ष बच्चों की मौतों तथा भारत में बने कफ सिरप के बीच गहरे सम्बन्ध की बात कही थी।
उज्बेकिस्तान ने भी घटिया कफ सिरप को लेकर एक भारतीय दवा कंपनी पर गड़बड़ी के आरोप लगाए थे।
इसी प्रकार अमरीका में भारत निर्मित आईड्राप्स के इस्तेमाल से परेशानी की शिकायत भी मिली थी।
यही नहीं, लेबनान तथा यमन स्थित स्वास्थ्य अधिकारियों ने हैदराबाद स्थित एक दवाई कंपनी की बनाई हुई ।
कैंसर की दवा के कुछ ‘बैचों’ में घातक बैक्टीरिया पाए जाने के बाद इसका इस्तेमाल रोक दिया है।
लोग दवाओं का सेवन प्राणों की रक्षा के लिए करते हैं।
अत: दवा निर्माताओं द्वारा अधिक लाभ के लालच में नकली और घटिया दवाएं बाजार में उतार कर लोगों की जान खतरे में डालना हत्या जैसे अपराध से कम नहीं।
नकली दवाओं के ये धंधेबाज न सिर्फ धन के लालच में लोगों की जान से खेल रहे हैं बल्कि दूसरे देशों में देश की बदनामी का कारण भी बन रहे हैं।
ऐसे कृत्यों में शामिल होने वाले अपराधियों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई करके उन्हें उचित दंड देने तथा ऐसे समाज विरोधी तत्वों को पकडऩे के लिए अभियान और तेज करना चाहिए।