तू हिन्दू बनेगा न मुसलमान बनेगा , इंसान की औलाद है इंसान बनेगा …. इस गीत के बोल आज भी हमें एक संदेश देते है। लेकिन विडंबना ये है कि आज शहर हो या गाँव साथी हों या पडोसी हम सबसे पहले मज़हब और जाति देखकर बात करते हैं , रिश्ते जोड़ते हैं। सच्चाई भी यही है कि देश दुनिया में आए दिन सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं सामने आती रहती हैं, इससे लोगों की धार्मिक भावनाएं आहत होती हैं, लेकिन आज हम आपको एक ऐसी जगह के बारे में बताने जा रहे हैं, जो जाति और धार्मिक झगड़ों से कोसों दूर है, यह गांव राजस्थान के नागौर जिले में है, जिसका नाम इनाणा गांव है, जहां लोग अपने नाम के आगे अपनी जाति नहीं लगाते, बल्कि गांव के नाम को ही अपना सरनेम मानते हैं और इनानिया लगा लेते हैं।
गांव में नाम को सरनेम बनाने को लेकर लोगों का कहना है कि हम अपने गांव का नाम इसलिए लगाते हैं, ताकि हमारे बीच सौहार्द बना रहे, वहीं इस गांव में न तो कोई शराब की दुकान है और न ही कोई गुटखा-पान मसाला की दुकान है, हालांकि यहां मुस्लिम समुदाय के लोग बहुत कम हैं, लेकिन वे यहां एक समाज की तरह मिलजुलकर रहते हैं। 1358 में शोभराज के बेटे इंदर सिंह ने नागौर के इस गांव को बसाया था, यहां 12 जातियां 12 खेड़ा में रहती थीं, इन सभी ने मिलकर इनाणा का निर्माण किया।
यह नाम इंदर सिंह से लिया गया था और तब से लोग अपनी जाति के स्थान पर इनाणियां लिखते हैं। कहा जाता है कि इंदर सिंह के दो भाई थे, दोनों ही गौरक्षक थे। उनमें से एक हरूहरपाल गायों की रक्षा करते हुए शहीद हो गए थे, जिन्हें गांव में कुलदेवता के रूप में पूजा जाता है। इस गांव में ब्राह्मण, नायक, जाट, खाती, मेघवाल, कुम्हार, तेली, लोहार, महाजन और गोस्वामी जैसी जातियां हैं, ये सभी अपने नाम के साथ इनाणियां लिखते हैं। इस गांव में डीजे पर प्रतिबंध है और 20 सालों से यहां कोई डीजे नहीं बजा है। लोगों का कहना है कि डीजे की आवाज से मूक जानवरों को परेशानी होती है।