आग लगने से पहले बुझाने के लिए सिस्टम अलर्ट : वनों से भरा पहाड़ी राज्य उत्तराखंड… जहाँ फायर सीजन से पहले इस बार प्रदेश का सिस्टम अलर्ट हो गया है। ग्रामीणों के साथ ही युवक मंगल, महिला मंगल दलों और सभी विभागों को वनों में लगने वाली आग की घटनाओं के लिए सतर्क रहने के निर्देश जारी किए गए हैं। फायर सीजन से पहले उत्तराखंड के विभिन्न जनपदों में वनाग्नि की रोकथाम के लिए मॉक अभ्यास किया जा रहा है। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण एवं उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने मॉक ड्रिल के तहत प्रदेश के अलग-अलग जिलों में विभिन्न स्थानों पर वनाग्नि नियंत्रण के लिए इंसीडेंट रिस्पांस सिस्टम (आई आर एस) की तैयारियों को परखा जा रहा है। उत्तराखंड में 15 फरवरी से फायर सीजन की हर साल शुरुआत हो जाती है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी उत्तराखंड आपदा प्रबंधन प्राधिकरण आईटी पार्क देहरादून में वन अग्नि नियंत्रण के लिए समुदाय केंद्रित मॉक ड्रिल में भाग लिया था।
दरअसल, उत्तराखंड सरकार वनों को आग से बचाने के लिए चाक-चौंबंद व्यवस्थाएं जुटाने में पहले से अलर्ट तो हो गई लेकिन हड़ताल पर जा रहे वन आरक्षी सरकार और विभाग की टेंशन जरूर बढ़ा रहे हैं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि हर साल फायर सीजन में वनों में आग लगने की घटनाएं होती हैं, जिससे वन संपदा के साथ ही पर्यावरण को नुकसान होता है। उन्होंने कहा कि प्रदेश का 71 फीसदी वनों से आच्छादित है, ऐसे में वनों में आग लगने की घटनाएं कम से कम हों और आग लगने के बाद उन पर कैसे नियंत्रण किया जाए इसके लिए मॉक अभ्यास किया गया है। मॉक ड्रिल का आयोजन प्रदेश के सभी जिलों में किया गया है। वनाग्नि रोकथाम के लिए भारत सरकार का गृह मंत्रालय, पीएम कार्यालय, एनडीएमए, एस डी आरएफ, सेना के साथ ही स्थानीय युवा, छात्र, जनप्रतिनिधि आदि को जागरूक किया जा रहा है। जो पिछले अनुभव रहे हैं उनसे सीख लेकर इस बार फायर सीजन में वनों में लगने वाली आग को कम से कम किया जाएगा। वनाग्नि की घटनाओं लिप्त लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी। वहीं, दूसरी ओर वन आरक्षियों ने अपनी मांगें पूरी होने तक पूरे प्रदेश में कार्य बहिष्कार शुरू कर दिया है और सभी कर्मचारी फायर सीजन में भी कोई काम नहीं करने की बात पर अड़े हुए हैं।
उत्तराखंड में 15 फरवरी से फायर सीजन शुरू हो गया है । हर साल प्रदेश के वनों में लगने वाली आग से भारी-भरकम नुकसान होता है, कई जीव जंतु और पेड़ पौधे जहां जलकर राख हो जाते हैं वहीं कई बार आग रिहायशी इलाकों को भी अपनी चपेट में ले लेती है। विगत वर्षों में कई बार वनाग्नि की भेंट कर्मचारी और स्थानीय लोगों की भी मौत की खबरें सामने आती रही हैं। हर साल सैकड़ों वनाग्नि की घटनाएं उत्तराखंड में होती हैं। कई बार तो वनों की आग इतनी भीषण हो जाती है कि एयर फोर्स की मदद भी आग बुझाने के लिए लेनी पड़ती है। पिछले साल ही प्रदेश के जंगलों में लगी आग के लिए एयरफोर्स के विमान की मदद लेनी पड़ी थी। इस साल सरकार फायर सीजन से पहले अलर्ट तो हो गई है, लेकिन सरकारी मुलाजिम हड़ताल पर जा रहे हैं। वनों की रखवाली से लेकर तमाम मामलों में वन विभाग के वन आरक्षी महत्वपूर्ण माने जाते हैं। सबसे पहले स्थानीय लोग इन्हीं कर्मचारियों के संपर्क में रहते हैं।
वन विभाग के प्रदेशभर में तैनात वन आरक्षी अपनी विभिन्न मांगों को लेकर हड़ताल पर हैं, ऐसे में वनों की आग पर सरकार कैसे काबू पाएगी, कह पाना मुश्किल है। वहीं, भाजपा के अनुसार राज्य ओर केंद्र सरकार वन कर्मचारियों के हितों के लिए कार्य कर रही है। इस संबंध में कांग्रेस सरकार पर ही हमलावर है और करोड़ों रुपये के हेलीकॉप्टर मंगवाकर आग बुझाने की बजाय वन आरिक्षयों की और भर्ती की जाए और उनकी मांगों को पूरा किया जाए।कहीं न कहीं वनों की आग पर्वतीय प्रदेश उत्तराखंड के लिए चिंता का विषय है। वनों में जब जब आग लगती है तो यहां की वन सम्पदा के साथ ही सैकड़ों जीव-जंतु भी इसकी चपेट में आ जाते हैं जो पर्यावरण के साथ सरकार के लिए अपूरणीय क्षति है। वनों में लगने वाली आग के लिए आम लोगों को भी सरकार की ओर से जागरूक किया जा रहा है। विभिन्न विभागों के अधिकारियों के साथ ही केंद्र सरकार भी वनों की आग को कम करने के लिए पहले ही अलर्ट मोड पर है। देखना होगा कि आग बुझाने की पुरानी नीति और संसाधनों के अभाव में सरकार की तैयारी किस फायर सीजन में वनों को बचाएगी और आग लगने वाली घटनाओं को कम कर पाएगी।