ओम पर्वत पर पहली बार बर्फ हुई गायब : ओम पर्वत, जिसे दुनिया का आठवां अजूबा माना जाता है, अब बर्फविहीन हो चुका है। यह पर्वत, जो अपनी बर्फ से ढकी चोटी पर लिखे हुए ‘ॐ’ के लिए प्रसिद्ध है, अब बिना बर्फ के एक नई चिंता का कारण बन गया है। इस अद्वितीय दृश्य के बिना ओम पर्वत, जो धार्मिक आस्था और प्राकृतिक सुंदरता का प्रतीक है, अब पर्यावरणीय संकट की गंभीर समस्या का सामना कर रहा है।
धार्मिक और प्राकृतिक महत्व
ओम पर्वत, हिमालय के उत्तराखंड क्षेत्र में स्थित है, और यह भगवान शिव की भूमि के रूप में जाना जाता है। इसकी बर्फ से ढकी चोटी पर बने ‘ॐ’ का दृश्य भक्तों और पर्यटकों के लिए अत्यंत आकर्षक और धार्मिक महत्व का होता है। यह पर्वत नाबीदांग से स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है, और इसकी बर्फ से ढकी चोटी हर कोई को मोहित कर देती है। धार्मिक आस्था के कारण, यह स्थल कई भक्तों और पर्यटकों के लिए एक पवित्र स्थान है।
बर्फ के बिना ओम पर्वत
हाल ही में, स्थानीय लोगों और पर्यावरण प्रेमियों ने गौर किया, कि ओम पर्वत की बर्फ पूरी तरह से समाप्त हो चुकी है। गुंजी और अन्य गांवों के निवासियों के अनुसार, यह पहली बार है जब ओम पर्वत पर बर्फ का कोई अवशेष नहीं है। कुछ लोग दावा करते हैं कि 2016 में भी पर्वत पर बर्फ की मात्रा बहुत कम थी, लेकिन इस बार की स्थिति सबसे अधिक चिंताजनक है।
ओम पर्वत के बर्फविहीन होने के पीछे कई संभावित कारण हैं। ग्लोबल वार्मिंग, सड़क निर्माण, और अत्यधिक पर्यटन इस संकट के प्रमुख कारक माने जा रहे हैं।
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1. ग्लोबल वार्मिंग : वैश्विक तापमान में वृद्धि के कारण हिमालय क्षेत्र में बर्फ का तेजी से पिघलना जारी है। इस क्षेत्र की बर्फ की परतें लगातार पतली होती जा रही हैं, जिससे पर्वत पर बर्फ का अस्तित्व संकट में पड़ गया है।
2. सड़क निर्माण और वाहनों की आवाजाही : इस क्षेत्र में सड़कों का निर्माण और वाहनों की भारी आवाजाही से पर्यावरण पर गंभीर असर पड़ा है। गुंजी जैसे गांवों में सड़क डामरीकरण के लिए हाटमिक्स प्लांट लगाए गए हैं, और ओम पर्वत के पास लोडर मशीनों से सड़क काटी गई है। इस प्रकार के निर्माण कार्यों से प्राकृतिक तंत्र में असंतुलन उत्पन्न हो गया है।
3. अत्यधिक पर्यटक भीड़ : ओम पर्वत की बढ़ती पर्यटक भीड़ ने भी बर्फ की परतों पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। पर्यटकों की बढ़ती संख्या और उनकी गतिविधियाँ पर्वत के प्राकृतिक स्वरूप को प्रभावित कर रही हैं।
ओम पर्वत के बर्फविहीन होने से पर्यावरण प्रेमी और वैज्ञानिक चिंता में हैं। इस संकट के समाधान के लिए आवश्यक है कि स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर ठोस कदम उठाए जाएं। ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव को कम करने के लिए, सड़क निर्माण और पर्यटन की गतिविधियों को नियंत्रित करने की आवश्यकता है।