मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने देहरादून निवासी विकेश नेगी द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह निर्देश जारी किया।
नेगी ने अपनी याचिका में कहा है कि देहरादून का एकमात्र पंजीकृत बूचड़खाना चार साल पहले बंद हो गया था।
देहरादून में बिना खाद्य सुरक्षा विभाग की जांच के दुकानों से पशु-पक्षी का मांस बेचा जा रहा है।
नेगी ने कहा कि एमसीडी और विभाग इस बात से अनभिज्ञ हैं कि बकरे और मुर्गे कहां काटे जा रहे हैं और मांस कहां से मंगाया जा रहा है।
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2018 के दौरान देहरादून में बूचड़खाने के बंद होने के बाद से, खाद्य सुरक्षा विभाग के परीक्षण के बिना ही शहर की दुकानों से मांस बेचा जा रहा है।
याचिकाकर्ता ने कहा है कि एमसीडी और विभाग जनता के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहा है।
मांस की गुणवत्ता को लेकर दोनों संस्थाएं एक-दूसरे पर दोषारोपण कर रही हैं।
नेगी ने कहा कि उन्होंने सूचना के अधिकार कानून के तहत दायर एक आवेदन के जवाब में याचिकाकर्ता ने अनुरोध किया है कि बूचड़खाने में काटे जाने से पहले जिन नियमों के तहत बकरियों और मुर्गों की जांच की जानी है, उन्हें लागू किया जाए।