आज हम आपको बताएँगे कि कुम्भ की सबसे बड़ी पहचान नागा साधुओं के बारे में …. सनातन धर्म में साधु-संतों को ईश्वर की प्राप्ति का माध्यम माना जाता है. साधु-संतों की वेशभूषा अलग होती है और वे भौतिक सुखों का त्याग कर सत्य व धर्म के मार्ग पर निकल पड़ते हैं. आमतौर पर साधु-संत लाल, पीला या केसरिया रंगों के वस्त्रों में नजर आते हैं. लेकिन नागा साधु कभी भी कपड़े नहीं पहनते हैं. वे कपकपाती ठंड़ में भी हमेशा नग्न अवस्था में ही रहते हैं. वे अपने शरीर पर धुनी या भस्म लपेटकर घूमते हैं. नागा का अर्थ होता है ‘नग्न’. नागा साधु आजीवन नग्न अवस्था में ही रहते हैं और वे खुद को भगवान का दूत मानते हैं. जानते हैं नागा साधुओं के नग्न रहने के कारण और नागा साधु के जीवन से जुड़े रोचक तथ्यों के बारे में।
नागा साधु प्रकृति और प्राकृतिक अवस्था को महत्व देते हैं. इसलिए भी वे वस्त्र नहीं पहनते. नागा साधुओं का मानना है कि इंसान निर्वस्त्र जन्म लेता है अर्थात यह अवस्था प्राकृतिक है. इसी भावना का आत्मसात करते हुए नागा साधु हमेशा निर्वस्त्र रहते हैं.केवल नग्न अवस्था ही नहीं बल्कि शरीर पर भस्म और जटा जूट भी नागा साधुओं की पहचान है.हांड कंपाती और कड़कड़ाती ठंड में जहां लोगों की हालत बुरी हो जाती है, वहीं नागा साधु हर मौसम में बिना कपड़े के रहते हैं. ऐसे में कई लोगों के मन में यह सवाल होता है कि, क्या नागा साधुओं को ठंड नहीं लगती? दरअसल इसके पीछे का रहस्य है योग।
नागा साधु तीन प्रकार के योग करते हैं, जो ठंड से निपटने में उनके लिए मददगार साबित होता है. वे अपने विचारों और खानपान पर भी संयम रखते हैं. इसके पीछे यह भी तथ्य दिया जाता है कि, मानव का शरीर इस प्रकार बना है कि आप शरीर को जिस माहौल में ढालेंगे शरीर उसी अनुसार ढल जाएगा. इसके लिए एक चीज की जरूरत होती है और वह है अभ्यास. नागा साधुओं ने भी अभ्यास द्वारा अपने शरीर को ऐसा बना लिया है कि उन्हें ठंड नहीं लगती है।
नागा साधुओं के जीवन से जुड़े रोचक तथ्य
नागा साधु बनने की प्रक्रिया में 12 साल लग जाते हैं, जिसमें 6 साल को महत्वपूर्ण माना गया है. इस अवधि में वे नागा पंथ में शामिल होने के लिए वे जरूरी जानकारियों को हासिल करते हैं और इस दौरान लंगोट के अलावा और कुछ भी नहीं पहनते. कुंभ मेले में प्रण लेने के बाद वह इस लंगोट का भी त्याग कर देते हैं और जीवनभर नग्न अवस्था में ही रहते हैं।
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नागा साधु बनने की प्रक्रिया में सबसे पहले इन्हें ब्रह्मचर्य की शिक्षा प्राप्त करनी होती है. इसमें सफल होने के बाद उन्हें महापुरुष दीक्षा दी जाती है और फिर यज्ञोपवीत होता है. इसके बाद वे अपने परिवार और स्वंय अपना पिंडदान करते हैं. इस प्रक्रिया को ‘बिजवान’ कहा जाता है. यही कारण है कि नागा साधुओं के लिए सांसारिक परिवार का महत्व नहीं होता, ये समुदाय को ही अपना परिवार मानते हैं।
नागा साधुओं का कोई विशेष स्थान या मकान भी नहीं होता. ये कुटिया बनाकर अपना जीवन व्यतीत करते हैं. सोने के लिए भी ये किसी बिस्तर का इस्तेमाल नहीं करते हैं बल्कि केवल जमीन पर ही सोते हैं।
नागा साधु एक दिन में 7 घरों से भिक्षा मांग सकते हैं. यदि इन घरों से भिक्षा मिली तो ठीक वरना इन्हें भूखा ही रहना पड़ता है. ये पूरे दिन में केवल एक समय ही भोजन ग्रहण करते हैं।
नागा साधु हिन्दू धर्मावलंबी साधु होते हैं जोकि हमेशा नग्न रहने और युद्ध कला में माहिर के लिए जाने जाते हैं. विभिन्न अखाड़ों में उनका ठिकाना होता है. सबसे अधिक नागा साधु जूना अखाड़े में होते हैं. नागा साधुओं के अखाड़े में रहने की परंपरा की शुरुआत आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा की गयी थी।