प्रधानमंत्री ने नए गठबंधन को ‘ओके’ कह दिया। प्रधानमंत्री मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के बीच करीब तीन घंटे की बैठक प्रधानमंत्री आवास में हुई थी।
वह असामान्य बैठक थी। उनके सामने बिहार पर सर्वे की एक रपट भी थी, जो भाजपा ने कराया था। सर्वे का निष्कर्ष था कि 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा, अपने सभी घटक दलों समेत, 20-22 सीटें ही जीत सकती है।
सर्वे अयोध्या राम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा से पहले कराया गया था। सर्वे में यह भी सामने आया कि उसके प्रभाव से 5-7 सीटें ही बढ़ सकती हैं।
2019 में भाजपा ने जद-यू के साथ 40 में से 39 सीटें जीती थीं। जाहिर है कि विमर्श का बिंदु बिहार और नीतीश कुमार रहे होंगे! अंततरू यह तय हुआ कि विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ का सूत्रधार ही पाला बदल कर भाजपा से मिल जाए, तो चुनावी फायदा हो सकता है।
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कमोबेश अति पिछड़ा वर्ग के ‘सरप्लस वोट’ भी भाजपा के पक्ष में आ सकते हैं। लंबे विमर्श के बाद प्रधानमंत्री ने नए गठबंधन को ‘ओके’ कह दिया।
उसके बाद ही तय हो गया था कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक बार फिर ‘पलटी’ मार कर भाजपा से जुड़ेंगे। जो पटकथा लिखी गई थी, उसी के मद्देनजर नीतीश ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा राज्यपाल को सौंपा।
नतीजतन कथित महागठबंधन की सरकार ढह गई। इस्तीफा देने के बाद नीतीश ने मीडिया से पुष्टि की और कहा कि गठबंधन में काम नहीं हो पा रहा था।
यहां और वहां के लोगों को तकलीफ थी, लिहाजा हमने गठबंधन छोड़ दिया है। अब नया गठबंधन बन रहा है। आप खुद देखिएगा।
बहरहाल रविवार को ही नीतीश कुमार का एनडीए मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ग्रहण करना महज औपचारिकता थी।
उनके साथ भाजपा के दो उपमुख्यमंत्रियों ने भी शपथ ली है। सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा के नाम लिए गए। सम्राट बिहार भाजपा के अध्यक्ष भी हैं।
बिहार का राजनीतिक परिदृश्य पूरा ही बदल गया और लालू यादव, कांग्रेस खेमा मूकदर्शक ही बने रहे।
इस बार नीतीश का मोहभंग होने और पलटी मार कर एनडीए में लौटने में सिर्फ डेढ़ साल लगा। नीतीश अगस्त, 2022 में भाजपा को छोड़ कर लालू यादव खेमे में गए थे।
पलटी मारने की दलीलें नीतीश की वही रही हैं, जो 2022 और उससे पहले 2017 में थीं। आश्चर्य है कि भाजपा और राजद दोनों ही जद-यू को तोडऩे की साजिश रचती रहती हैं और नीतीश बार-बार उन्हीं के साथ सरकार बनाते रहे हैं।
दरअसल एक सवाल जनादेश, सरकार, पलटीमार राजनीति और लोकतंत्र को लेकर है। गौरतलब है कि 1995 से नीतीश कुमार ने विधायक का चुनाव ही नहीं लड़ा है।
वह लगातार विधान परिषद में रहे हैं। उनके दलों को भी बहुमत का जनादेश कभी भी नहीं मिला है। फिर भी वह 9वीं बार मुख्यमंत्री बने हैं।
यह देश का राजनीतिक रिकॉर्ड है कि एक ही नेता ने, एक ही कार्यकाल के दौरान, तीन-चार बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है। सवाल है कि नीतीश कुमार में ऐसा क्या आकर्षण है कि भाजपा और राजद दोनों ही उन्हें ‘पलटी’ मारने को समर्थन देते रहे हैं और उन्हें मुख्यमंत्री भी बनवा देते हैं?
क्या नीतीश बिहार के राजनीतिक समीकरणों की विवशता हैं कि बहुमत न होने के बावजूद वह मुख्यमंत्री बने हुए हैं? क्या यह पलटीमार राजनीति की अवसरवादिता नहीं है?
मौजूदा जनादेश 2020 में भाजपा-जदयू को मिला था, क्योंकि दोनों ने साझा तौर पर चुनाव लड़ा था। उसके बाद का घटनाक्रम देश के सामने है।
यह कैसा लोकतंत्र है कि बहुमत का जनादेश पाए बिना ही एक राजनेता लगातार कई सालों से बिहार का मुख्यमंत्री है?
भाजपा और राजद भी बराबर की जिम्मेदार हैं, क्योंकि बहुमत उनके पक्ष में भी नहीं रहा है। चूंकि बिहार में लंबे अंतराल से ‘जुगाड़ की सरकार’ काम कर रही है, तो वह रसातल की ओर नहीं जाएगा, तो क्या स्थिति होगी? बिहार आज देश का सबसे गरीब और पिछड़ा राज्य है।