भारत और मिस्र के बीच दोस्ती की जब भी बात होगी तब 50 के दशक की जरूर चर्चा होगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 24 से 25 जून तक मिस्र की यात्रा पर जाएंगे।
पीएम मोदी मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सीसी के निमंत्रण पर यह यात्रा कर रहे हैं। अल-सीसी ने भारत के गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत की थी।
उसी समय उन्होंने प्रधानमंत्री को मिस्र यात्रा के लिए आमंत्रित किया था। यह प्रधानमंत्री के तौर पर मोदी की मिस्र की पहली यात्रा होगी।
पिछले कुछ वर्षों में भारत और मिस्र के संबंध और भी बेहतर हुए हैं। मिस्र के साथ भारत के संबंध 50 के दशक से ही बेहतर रहे हालांकि बीच के कुछ वर्षों में इसमें थोड़ी दूरी रही।
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मिस्र भारत का बहुत अच्छा दोस्त है। इसकी शुरुआत तब से होती है जब मिस्र की कमान गमाल नासिर के हाथों में थी।
मिस्र भारत का बहुत अच्छा मित्र देश है। भारत और मिस्र के अच्छे संबंध गुटनिरपेक्ष आंदोलन की वजह से उस वक्त शुरू हुए जब मिस्र में कमान राष्ट्रपति गमाल अब्दुल नासिर के हाथों में थी।
उस वक्त भारत में पंडित जवाहर लाल नेहरू प्रधानमंत्री थे। लंदन और पेरिस ने नासिर के अरब राष्ट्रवाद को अफ्रीका में अपने हितों के लिए खतरा माना।
दूसरी ओर भारत ने नासिर के नेतृत्व को इस क्षेत्र में मित्रता के एक अवसर के रूप में देखा।
1956 में मिस्र की आर्थिक प्रगति नील नदी नदी पर निर्भर थी। इस नदी पर एक बांध जिसके निर्माण के लिए सोवियत संघ और अमेरिका दोनों ने मदद का ऑफर दिया।
लेकिन कुछ ही समय बाद मिस्र को आर्थिक तौर पर कमजोर मानते हुए यह पेशकश वापस ले ली गई।
अब्दुल नासिर इस फैसले से नाराज थे। क्योंकि दोनों ही नहर के जलमार्ग का उपयोग कर रहे थे।
नासिर ने मिस्र के स्वेज नहर का राष्ट्रीयकरण कर खुद ही बांध बनाने का फैसला कर लिया। पंडित नेहरू को इस योजना पर भरोसा नहीं था और उन्होंने भारत को इससे दूर रखा।
नेहरू की ओर से कोशिश थी कि इस टकराव को टाला जाए। भारत को खतरे का एहसास था। इजराइल ने मिस्र पर हमला बोल दिया। ब्रिटेन और फ्रांस भी उसके साथ खड़े हो गए।
इधर मिस्र के राष्ट्रपति अब्दुल नासिर का इरादा था कि वह आखिरी दम तक लड़ेंगे। युद्ध के दौरान ही राष्ट्रपति अब्दुल नासिर एक रात घर से निकले और उनकी गाड़ी भारतीय राजदूत के घर के आगे आकर खड़ी होती है।
उस वक्त वहां भारतीय राजदूत थे अली यावर जंग। अली यावर और अब्दुल नासिर के बीच अच्छे संबंध थे। जब नासिर भारतीय राजदूत के आवास में दाखिल होते हैं उस वक्त उन्होंने मिलिट्री पोशाक पहनी थी।
अब्दुल नासिर ने बताया कि उन्होने युद्ध के मोर्चे में जाने का इरादा कर लिया है। यह सुनकर अली यावर जंग सकते में आ गए।
नासिर के युद्ध में जाने का मतलब संकट और गहरा जाएगा। भारतीय राजदूत की ओर से देर रात नेहरू को यह जानकारी दे पाना मुश्किल था।
अली यावर को समझ नहीं आ रहा था क्या करें लेकिन उन्होंने पूरी रात अब्दुल नासिर को अपनी बातों में उलझाए रखा।
इसके बाद ऐसा संयोग बना कि अगली सुबह ब्रिटेन और इजराइल ने युद्ध विराम की घोषणा कर दी।
इस बीच नेहरू ने इस संकट को दूर करने के लिए मध्यस्थता के कई प्रयास किए। इसमें नेहरू-आइजेनहावर फॉर्मूला अहम था।
आइजनेहावर पश्चिमी देशों को मनाने में सफल हुए तो वहीं नेहरू एशियाई देशों को।
निर्गुट रहने के कारण भारत को इसका फायदा हुआ और विश्व में उसकी साख बढ़ी। आज भी यह कूटनीति के लिए प्रासंगिक है।
पिछले कुछ वर्षों में भारत और मिस्र के रिश्तों में काफी सुधार हुआ है। दोनों देश करीब आए हैं और कई मुद्दों पर दोनों देशों ने एक दूसरे का साथ दिया है।
कोरोना के वक्त भी देखने को मिला जब भारत में ऑक्सीजन सिलेंडर की कमी थी उस वक्त वहां से ऑक्सीजन सिलेंडर और दवाएं भेजी गईं।
वहीं भारत की ओर से मिस्र को गेहूं भेजा गया। कुछ कंपनियों ने हाल ही में मिस्र में निवेश किया है।एजुकेशन, आईटी और डिफेंस सेक्टर में भारत को मिस्र की जरूरत है।
भारत के लिए मिस्र अफ्रीका में निवेश का जरिया बन सकता है। उत्तरी अफ्रीका में मिस्र मजबूत सैन्य ताकत है।
कई मुद्दों पर मिस्र ने भारत का साथ भी दिया है। भारत के खिलाफ पाकिस्तान ने इस्लामिक देशों के एक सम्मेलन में कुछ महीने पहले प्रस्ताव लाया लेकिन मिस्र की आपत्ति की वजह से वह पास नहीं हो पाया।
पिछले कुछ वर्षों में यह दोस्ती और आगे बढ़ी है और पीएम मोदी के इस दौरे पर दुनिया के कई देशों की नजर है।