पार्थो सिल। क्या उत्तराखंड कांग्रेस के बड़े नेता हरदा के मंसूबो पर हाई कमान का परदा? सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार ये बात सौ आने सच हो सकती है क्योंकि इस राज्य की राजनीति में जो अब तक खोजी नारद ने कुछ ऐसा ही महसूस किया है।
उत्तराखंड कांग्रेस जो 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में अपने पुराने चावल हरीश रावत के दम पर सत्ता हासिल करने की जद्दोजहद में है पर एक अकेले हरीश रावत के कंधों के दम पर ऐसा भरोसा कांग्रेस हाईकमान का करना गले से नीचे नही उतरता। क्योंकि हरीश रावत के इर्द गिर्द और अपनी ही पार्टी में विरोधी इतने है कि उनसे पार पाना हरदा के बस की बात नही है। सूत्रों की माने 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस हाईकमान
अबकी बार हरदा की टक्कर में एक ऐसे व्यक्तित्व पर दांव खेल सकती है जो हरीश रावत से ज्यादा युवा, व्यवहारिक और हर मामले में स्मार्ट है। मिली जानकारी के अनुसार पार्टी हाईकमान ने विगत कुछ दिनों पहले उत्तराखंड के कुमांऊ के द्वार के प्रतिष्ठित व्यवसायी पार्टी के पुराने और स्थापित नेता से गोपनीय मीटिंग करी और 2022 में पार्टी को पूर्ण बहुमत लाने पर उक्त नेता को राज्य की कमान सौपने का मन भी बना लिया है। ऐसे में हरदा क्या 2012 की तरह राज्य की सत्ता पर काबिज़ होने का दांव हार जाएंगे क्या?
हरदा गणेश पूजन के बाद अपनी झोली भरी हुई महसूस करने का ख्वाब देख रहे है पर उनके सपनों पर ग्रहण लगाने के उनकी अपनी पार्टी के विपक्षी नेतागण और हाईकमान की उनके गढ़ के उक्त नेता से गोपनीय मीटिंग कुछ और इशारा कर रही है।
खोजी नारद के सूत्रों की माने तो कुमाऊं के द्वार से एक शिक्षक नेता पुत्र को 2022 में होने वाले चुनाव में टिकट का दावेदार माना जा रहा है पर इस बार पार्टी हाईकमान टिकट बदलने के साथ साथ मुख्यमंत्री के चेहरे पर नए युवा पर दांव खेलने की रणनीति तैयार कर चुका है। कौन है वो? जो हाईकमान के परदे के पीछे का खिलाड़ी है जो हरदा की लुटिया में छेद कर सकता है। खोजी नारद जल्द उठायेगा इस राज से परदा।
- Advertisement -
अपनी राजनीति की आखिरी पारी खेल रहे हरदा के साथ ऐसा कुछ अगर होता है तो, हरदा के मंसूबो पर पानी फिर सकता है। क्या ऐसे में वो सिर्फ मार्गदर्शक मंडल वाले नेता बनकर रह जाएंगे ? ये तो आने वाला वक़्त उनकी राजनीति की दिशा तय करेगा।
ऐसे में हरदा के लिए खोजी नारद द्वारा चार लाइन यही निकलेंगी………………….
खदर के लिए खाकी लाल हो जाती है
ख़बर भी सियासत की दलाल हो जाती है
ज़ुल्म ढाये जाते हैं आम जनता पर और
राजनीति बैठे-बिठाए मालामाल हो जाती है।