हरीश रावत जो भी कहते है उसके मायने बहुत कुछ होते है, उत्तराखंड में 70 सदस्यीय विधानसभा में विधान परिषद की मांग को लेकर राजनीति गरमाने की कोशिश भले ही हो रही हो लेकिन विधिक और राज्य की माली हालत और व्यवहारिक दृष्टिकोण से इस मांग के औचित्य पर सवाल भी उठाए जा रहे हैं।
पूर्व मुख्यमंत्री एवं प्रदेश कांग्रेस चुनाव अभियान समिति अध्यक्ष हरीश रावत ने विधान परिषद के गठन को राजनीतिक अस्थिरता खत्म करने से जोड़कर तूल देने की कोशिश की है। 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर कांग्रेस का यह चुनावी दांव कितना कारगर रहेगा, यह तो आने वाला समय ही बताएगा। सत्तारूढ़ दल भाजपा ने पलटवार करते हुए इसे रावत का चुनावी तुष्टिकरण का एजेंडा करार दे दिया है। प्रदेश में कांग्रेस के चुनाव अभियान की बागडोर संभाल रहे पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने बीते दिनों इंटरनेट मीडिया पर अपनी पोस्ट में उत्तराखंड में 21 सदस्यीय विधान परिषद के गठन की पैरवी की। पूर्व मुख्यमंत्री का कहना है कि राज्य बनने के पहले दिन से ही राजनीतिक अस्थिरता हावी है। राजनीतिक दलों में आंतरिक संतुलन और स्थिरता को लेकर उठते सवालों को आधार बनाकर उन्होंने विधान परिषद के गठन के मुद्दे को उछाल दिया है। हालांकि इस मांग को लेकर रावत अपने विरोधियों के निशाने पर भी आ गए हैं।
दरअसल यह माना जा रहा है कि हरीश रावत विधान परिषद के बहाने शहरी निकायों, पंचायतों, कलाकारों, साहित्यकारों समेत सीधे निर्वाचन प्रक्रिया से चुनकर विधानसभा में नहीं पहुंचने वालों को साधने की कोशिश में जुटे हैं। यह मांग वह पहले भी उठा चुके हैं। 2002 के पहले विधानसभा चुनाव में उन्होंने विधान परिषद की मांग उठाई थी। यह अलग बात है कि 2002 में ही प्रदेश में कांग्रेस की पहली निर्वाचित सरकार बनने के बावजूद यह मांग फुस्स हो गई। इसके बाद तीसरे विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस ने सरकार बनाई। हरीश रावत स्वयं तीन वर्ष मुख्यमंत्री रहे, लेकिन वह भी विधान परिषद के गठन के संबंध में पहल नहीं कर पाए थे।
अब 2022 के चुनाव से पहले इस मुद्दे को फिर तूल देने की कोशिश हो तो रही है, लेकिन संविधान व विधायी व्यवस्था के जानकार इस मांग के औचित्य पर ही सवाल खड़े कर रहे हैं। उनका स्पष्ट कहना है कि उत्तराखंड जैसे राज्य में विधान परिषद का गठन संभव नहीं है। यहां विधानसभा की सदस्य संख्या 70 है। विधान परिषद के गठन के लिए करीब 120 सदस्यों की विधानसभा होना आवश्यक है। राज्य की कमजोर आर्थिक स्थिति की दृष्टि से भी इस मांग को उपयुक्त नहीं माना जा रहा है। उनका यह भी कहना है कि राज्य में विधानसभा के ही सीमित सत्र संचालित हो रहे हैं। विधानसभा की महत्वपूर्ण समितियां अपेक्षा के अनुरूप क्रियाशील दिखाई नहीं दे रही हैं, ऐसे में विधान परिषद का गठन सफेद हाथी से ज्यादा साबित नहीं होने वाला।
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पूर्व सीएम और प्रदेश कांग्रेस चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष हरीश रावत ने बताया कि विधान परिषद के गठन से राज्य में नेतृत्व विकास भी होगा। राज्य बनने के बाद से ही राजनीतिक अस्थिरता हावी रही है। ऐसा रास्ता निकालना पड़ेगा, ताकि सत्तारूढ़ दल या विपक्ष में राजनीतिक स्थिरता रहे। इससे राज्य के भीतर एक परिपक्व राजनीतिक धारा भी विकसित होगी।
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक ने कहा कि कांग्रेस को यह डर सता रहा है कि अगले चुनाव में उसकी सरकार नहीं बनने जा रही है, इसलिए हरीश रावत ऐसी बात कर रहे हैं। विधान परिषद के गठन की उनकी मांग के पीछे राजनीतिक तुष्टिकरण की मंशा तो नहीं है। उत्तराखंड विधानसभा के सेवानिवृत्त प्रमुख सचिव महेश चंद्र ने बताया , उत्तराखंड में विधान परिषद का गठन विधिक रूप से भी संभव नहीं है। विधानसभा के सत्र बेहद सीमित तरीके से हो रहे हैं। विधानसभा की समितियां भी क्रियाशील होनी चाहिए। विधान परिषद के स्थान पर इस गंभीर विषय पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
अब अगर हरदा ने इस मुद्दे को फिर से हवा दी है, तो जरूर इसके पीछे उनके मन में कुछ गूढ़ उथल पुथल चल रही होगी उनका ये तुरुप का इक्का उनकी विपक्षी पार्टी भाजपा को कितना धूल फंका पाता है ये देखने वाली बात होगी।